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November 2, 2024 5:54 am

शरद यादव सिर्फ राजनीतिज्ञ ही नहीं, उनके पास शब्दों की भी बेमिसाल कला थी….

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अनिल अनूप की खास पेशकश 

समाजवादी नेता शरद यादव न सिर्फ अच्छे नेता, बल्कि अच्छे वक्ता भी थे। करीब पचास सालों तक राजनीतिक पारी खेलने के बाद गुरुवार रात उनका निधन हो गया। शरद यादव को एक ऐसे राजनेता के तौर पर याद किया जाएगा जिन्होंने सिर्फ सरकारों को बनाने और गिराने तक ही अहम भूमिका नहीं निभाई बल्कि वो अपने अक्खड़ स्वभाव और सीधे बेबाक बोल के लिए भी जाने जाते रहे। संसद के अंदर जब बोलने खड़े होते थे तो विपक्ष के दांत खट्टे कर देते थे। कालाधन, नोटबंदी, अरविंद केजरीवाल और विजय माल्या को लेकर संसद में शरद यादव के दिए भाषण ऐतिहासिक रहे हैं।

नोटबंदी पर शरद यादव का भाषण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर 2016 के शाम आठ बजे पांच सौ और एक हजार रुपये के नोटबंद कर दिए थे। मोदी के इस फैसला को लेकर शरद यादव ने जमकर आलोचना की थी। शरद यादव ने राज्यसभा में कहा था, ‘मुझे नहीं लगता है कि अरुण जेटली को पता है नोटबंदी का। इनको बताया था कि नहीं बताया था। इनको पता होता तो ये हमारे मित्र हैं तो हमको जरूर बताते। अब इन्होंने हमको तो बताया नहीं।

तत्कालीन आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल का नाम लेते हुए कहा कि ये उर्जित पटेल का दस्तखत नोट पर है, जोकि 2 महीने पहले हैं, जबिक प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि हमने छह महीने पहले चुपचाप ये काम कर लिया, हम छह महीने से लगे थे। अकेले लगे थे, आपको साथ लेकर लगे थे या उर्जित पटेल के साथ या फिर रघुराम राजन के साथ लगे थे। किसके-किसके साथ लगे थे। सदन में एक वाकये का जिक्र करते हुए तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली से कहा कि हमने दो बार आपकी दोस्ती के चलते भारत बंद कराया था, लेकिन इस बार तो आपने पूरा भारत बंद करा दिया। भारत बंद करके पूरा भारत लाइन में खड़ा कर दिया।

शरद यादव देश के बड़े समाजवादी नेता रहे। उन्होंने बिहार की राजनीति में एक अलग पहचान बनाई। वह देश के पहले ऐसे नेता बने, जिन्हें तीन अलग-अलग राज्यों से सांसद चुने जाने का मौका मिला। आइए जानते हैं कि शरद यादव के परिवार में कौन-कौन है? 

जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव ने गुरुवार रात फोर्टिस अस्पताल में आखिरी सांस ली। 75 साल के शरद यादव लंबे समय से किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे। गुरुवार रात सांस लेने में दिक्कत हुई तो परिवार के सदस्यों ने उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया। जहां, इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। बेटी सुभाषिनी यादव ने शरद यादव के निधन की सूचना सोशल मीडिया के जरिए दी। 

शरद यादव देश के बड़े समाजवादी नेता रहे। उन्होंने बिहार की राजनीति में एक अलग पहचान बनाई। वह देश के पहले ऐसे नेता बने, जिन्हें तीन अलग-अलग राज्यों से सांसद चुने जाने का मौका मिला। आइए जानते हैं कि शरद यादव के परिवार में कौन-कौन है? 

1947 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में शरद यादव का जन्म हुआ था। गांव का नाम बबाई है। पिता नंद किशोर यादव किसान थे और मां सुमित्रा यादव गृहिणी। शरद के बड़े भाई रविशंकर यादव थे। नौ अप्रैल 2017 को रविशंकर यादव का निधन हो गया था। 

अपने परिवार के लिए इतनी संपत्ति छोड़ गए शरद यादव

चुनाव के दौरान 2019 में जो हलफनामा दाखिल किया था, उसके मुताबिक उनकी चल और अचल दोनों संपत्तियां करीब आठ करोड़ रुपये है। उन्होंने 1974 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा था और पहली बार मध्य प्रदेश की जबलपुर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे। शरद यादव के निधन के बाद उनके परिवार में पत्नी डॉक्टर रेखा यादव, बेटा शांतनु बुंदेला और एक बेटी सुभाषिनी राजा राव हैं।

चुनावी हलफनामे में किया था संपत्ति का खुलासा

दिवंगत जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव की नेटवर्थ (Sharad Yadav Net Worth) की बात करें तो साल 2019 के मुताबिक, आठ करोड़ रुपये की कुल संपत्ति में 1,58,78,690 रुपये की चल संपत्ति है. इसमें 90,000 रुपये कैश, विभिन्न बैंकों में जमा 1,27,40,578 रुपये, नेशनल सेविंग्स स्कीम और पोस्टल सेविंग में 10,73,000 रुपये हैं। इसके अलावा 2,46,612 रुपये की LIC और दूसरी इंश्योरेंस पॉलिसीज और 17,28,500 रुपये के गहने हैं।

शरद यादव के नाम चार घर

शरद यादव चल संपत्ति से कहीं ज्यादा अचल संपत्ति के मालिक थे, जिसमें एग्रीकल्चर और नॉन-एग्रीकल्चर लैंड के साथ ही उनका घर भी शामिल है। कुल मिलाकर हलफनामे के मुताबिक उनकी अचल संपत्ति 6,56,55,000 रुपये की है। इसमें 1,06,60,000 रुपये की खेती योग्य जमीन, 1,01,70,000 रुपये कीमत की नॉन-एग्रीकल्चर लैंड शामिल है। वहीं उनके घरों की बात करें तो उनके चार घर हैं, जिनकी कुल कीमत 4,48,25,000 रुपये है। इसमें गुरुग्राम में इस्लामपुर सोहना रोड पर 1,55,00,000 रुपये कीमत का एक फ्लैट और DLF Phase-2 में 2,20,00,000 रुपये का एक घर शामिल है।

उनके परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटा और एक बेटी है। उनके बेटे का नाम शांतनु बुंदेला और बेटी का नाम सुभाषिनी राजा राव हैं। उनके बेटे शांतनु ने अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन से की है। शरद यादव की बेटी राजनीति का भी हिस्सा रह चुकी हैं। उन्होंने साल 2020 में बिहार के विधानसभा के चुनाव होने से पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से जुड़ी थी। सुभाषिनी ने आरजेडी के टिकट पर बिहारीगंज विधानसभा सीट से चुनाव भी लड़ा था। लेकिन बहुमत न मिल पाने की वजह से वह इस सीट से चुनाव हार गई थी।

न कोई कार, न ही लोन

चुनावी हलफनामे में खास बात ये है कि दिवंगत नेता के पास करोड़ों की संपत्ति होने के बावजूद उनके पास कोई भी कार नहीं थी। इसके अलावा उनके नाम पर कोई लोन भी नहीं चल रहा है। अचल संपत्ति के तौर पर शरद यादव के नाम कोई भी कमर्शियल बिल्डिंग या लैंड नहीं है। मध्य प्रदेश के होशांगाबाद में जन्मे देश के इस दिग्गज नेता को जनता दल की सियासत का चाणक्य भी कहा जाता है।

प्रखर समाजवादी शरद यादव के निधन के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि वो मर्माहत हैं। नीतीश ने ट्वीट संदेश में कहा है कि उनके शरद जी के साथ बहुत गहरे संबंध थे। वही गहरे संबंध जिसके दंश की चर्चा उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी श्रद्धांजलि में की। नीतीश की पार्टी जनता दल (यूनाईटेड) के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष कुशवाहा अपने भावुक संदेश में कहते हैं .. शरद जी जैसी मौत भगवान किसी को न दे। अंतिम समय उनको अपनों ने भी छोड़ दिया। वो लोग आज-आज बड़े-बड़े पदों पर बैठे हैं। हालांकि कुशवाहा ने नीतीश कुमार का नाम नहीं लिया। डॉक्टर राम मनोहर लोहिया और जय प्रकाश नारायण के साथ समाजवाद की जो पौध तैयार हुई उसमें नीतीश अलग किस्म के समाजवादी निकले। शरद जहां दोस्तों के दोस्त और दुश्मनों के भी दोस्त बने वहीं नीतीश कुमार कुर्सी को केंद्र मान पॉलिटिक्स करते रहे और बाधक तत्वों को निपटाते रहे। बिहार का समाज भले जात-पात में फंसा रहा पर राजनीतिक सोच हमेशा व्यापक रही। इसीलिए बिहार की धरती को समाजवाद से सींचने शरद जैसे नेता मध्य प्रदेश से वहां पहुंचते हैं। लोहिया और जेपी के समय से ही ये सिलसिला शुरू हुआ। जेबी कृपलानी 1950 के दशक में भागलपुर से जीत कर आगे बढ़े। फिर सीतामढ़ी से जीते। गुजरात के अशोक मेहता को मुजफ्फरपुर की जनता ने संसद भेजा। बाद में महाराष्ट्र से आए क्रांतिकारी सोच के जॉर्ज फर्नांडिस ने मुजफ्फरपुर को अपना राजनीतिक घर बना लिया। हालांकि वो नालंदा से भी चुनाव लड़ते रहे। फेहरिस्त लंबी है- मीनू मसानी, मधु लिमये, सरोजनी नायडू, चंद्रशेखर और न जाने कितने और। पर जेपी और जननायक कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद राजनीति के केंद्र में सत्ता हो गई। नीतीश ने जॉर्ज के साथ जो किया वो भी पता है और शरद यादव के साथ क्या हुआ वो भी। लेकिन आज इसकी चर्चा जरूरी है।

लालू को शरद का सपोर्ट

सामाजिक बदलाव के लिए सत्ता जरूरी है, इसे मानते हुए शरद यादव ने 1989 में लालू को गद्दी तक पहुंचाने में जी जान लगा दी। जब मांडू के राजा और पीएम वीपी सिंह ने रामसुंदर दास को सीएम बनाने के लिए जॉर्ज फर्नांडिस और सुरेंद्र मोहन को पटना भेज दिया तब हरियाणा के ताऊ देवीलाल ने मुलायम सिंह यादव और शरद यादव को पटना भेजा। टास्क था तीसरे यादव यानी लालू को विधायक दल का नेता बनवाना। तब लालू ने चंद्रशेखर और नीतीश को भी अपने पाले में ले लिया। वही सीएम बने। फिर लालू ने जब समाजवाद को भ्रष्टाचार से सींचना शुरू किया तो शरद और नीतीश ने मोर्चा खोला। जेडीयू के संस्थापक अध्यक्ष शरद यादव ने नीतीश को सीएम की कुर्सी पर बिठाने के लिए लालू को उनके घर में घुस कर मात दी। तब एक नारा गजब चर्चित था -जब तक रहेगा समोसे में आलू , तब तक रहेगा बिहार में लालू। इस मिथक को शरद ने 1999 में तोड़ दिया। रोम में पोप और मधेपुरा में गोप का नारा देने वाले लालू को शरद ने वहीं से पटखनी दे दी। ये जीत1995 के विधानसभा चुनाव में मिली मात के बाद राजनीति से संन्यास लेने की सोच रहे नीतीश के लिए बूस्टर डोज की तरह थी।

नीतीश के लिए लालू को हराया

इसी बूस्टर डोज के बाद नीतीश बिहार की राजनीति में चमकते गए। उधर शरद यादव अटल जी की कैबिनेट में शामिल हुए पर दिल्ली में एनडीए का संयोजक रहते हुए नीतीश का हाथ मजबूत करते रहे। 2005 में हुए दूसरे चुनाव में नीतीश बिहार की कुर्सी पर काबिज हो ही गए। तब शरद यादव राज्यसभा में थे क्योंकि 2004 का चुनाव वो हार गए थे। 2009 में वो फिर लालू को हराकर लोकसभा पहुंचे लेकिन इस बीच कभी कुर्सी की चिंता उन्होंने नहीं की। नहीं तो वो बिहार में भी मंत्री बन सकते थे। इसी चुनाव में खांटी समाजवादी जॉर्ज का टिकट नीतीश ने काट दिया। निर्दलीय लड़े लेकिन हार गए। अगर नीतीश ने टिकट दिया होता तो अटलजी और कमलनाथ के बाद दस बार लोकसभा पहुंचने वाले नेता बन जाते। शरद आहत थे लेकिन नीतीश को नेता मान चुप रहे। इस बीच यूपीए की सरकार पर उन्होंने जबर्दस्त दबाव डाला जिसके चलते 2011 में सामाजिक-आर्थिक जनगणना हुई जिसकी रिपोर्ट कभी सामने आई ही नहीं। आज अगर नीतीश कुमार बिहार में जातीय जनगणना करा रहे हैं और मोदी की पॉप्युलारिटी में सेंध लगा ओबीसी चैंपियन बनना चाहते हैं तो उसकी बुनियाद भी शरद यादव ने रखी थी।

नीतीश ने किया जॉर्ज वाला हाल

जब मोदी विरोध के नाम पर नीतीश 2013 में भाजपा से अलग हुए तो शरद यादव ने उनका पूरा साथ दिया। शरद वैचारिक तौर पर बिखरे हुए जनता परिवार को भी जोड़ना चाहते थे। लालू के साथ नीतीश को लाकर 2015 में बिहार जीतने से उनका हौसला और बढ़ा। उन्होंने मुलायम समेत बाकी राज्यों में जनता दल से निकलकर बनी पार्टियों को एकजुट करने की कोशिश की जो परवान नहीं चढ़ पाई। इसी बीच नीतीश ने लालू को छोड़ कर 2017 में भाजपा से हाथ मिला लिया। शरद यादव में नीतीश जैसी हिम्मत नहीं थी। अंदर का समाजवाद शायद बचा था। उन्होंने इसका विरोध किया। फिर तय था कि उनका हश्र भी जॉर्ज वाला ही होना है। नीतीश ने पहले उन्हें राज्यसभा में नेता पद से हटाया, फिर राज्यसभा की सदस्या से अयोग्य साबित करा दिया। जब शरद सुप्रीम कोर्ट गए तो नीतीश ने उनके पीछे रामचंद्र प्रसाद सिंह यानी आरसीपी सिंह को लगा दिया। शरद हार गए। आरसीपी उनकी जगह राज्यसभा में नेता बनाए गए। और फिर नीतीश ने आरसीपी के साथ क्या किया ये भी आपको मालूम है।

बेरहम निकले नीतीश

राज्यसभा की सदस्यता जाने के बाद शरद यादव बहुत आहत हुए। अलग पार्टी बनाई। उन्होंने तीन साल तक पटना का रुख नहीं किया। 2020 में पटना आए तो पुराने साथी लालू से मिले। फिर अपनी पार्टी का विलय आरजेडी में कर दिया। 1974 में जबलपुर उपचुनाव जीत कर इंदिरा की नींद हराम करने वाले शरद की पहचान दिल्ली में सात तुगलक रोड से भी होती थी। ये 22 साल से उनका आशियाना था। पर निर्मम नीतीश ने उसे भी खाली कराने ठान ली। जब इस घर से निकले तो कहा – मकान बदलने से राजनीति नहीं बदलेगी। अगर लालू यादव चाहते तो राज्यसभा भेज सकते थे। लेकिन उच्च सदन का टिकट कैसे तय होता है ये हम सब जानते हैं। उनकी लिस्ट में शरद के लिए जगह नहीं थी। शरद यादव चुपचाप अपनी बेटी के घर रहने छतरपुर चले गए। एक बात जो फिर दोहराना चाहूंगा वो ये कि लालू ने अपनी राजनीति भाजपा विरोध के नाम पर की तो ताल ठोक कर की। कभी समझौता नहीं किया। लेकिन नीतीश ने तमाम सिद्धांतों को तिलांजलि दे दी। इधर-उधर करते हुए आज वो फिर उसी लालू की पार्टी के साथ राज चला रहे हैं। वो सतीश कुमार, जॉर्ज, अली अनवर, शरद, आरसीपी के बाद अगले शिकार की तलाश में है जो पार्टी में खिलाफ मन बना रहा है। वो कौन है वो भी आप समझ सकते हैं। इसका ऐलान जल्दी ही हो सकता है।

लेखक स्वतंत्र रूप से लेखन और समाचार दर्पण 24 का तीन वर्षों से स्वतंत्र संपादन और संचालन कर रहे हैं।
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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."