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आज का मुद्दा

तो अधिकारियों की लापरवाही से निकाय चुनाव में फंसा पेंच और सरकार की हो गई किरकिरी…

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अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट 

5 दिसबंर 2022 को स्‍थानीय निकाय चुनाव का नोटिफिकेशन जारी हुआ था। जिसमें ट्रिपल टेस्ट के बगैर ही ओबीसी आरक्षण लागू कर दिया था। मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इसे रद्द कर दिया। एससी/एसटी वर्ग को छोड़कर बाकी सभी सीटों पर सामान्य सीट करने का आदेश दिया है।

इस पर विपक्ष हमलावर हो गई। ‌सपा मुखिया अखिलेश यादव, शिवपाल यादव, बसपा सु्प्रीमो मायावती और सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर सहित सभी विपक्षी पार्टियों ने सरकार को घेरा है।

अखिलेश यादव बोले-भाजपा ने पिछड़ा का हक छीना है

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा, “आरक्षण बचाने की लड़ाई में पिछड़ों और दलितों को एक साथ आना होगा। पहले पिछड़ों का पहले आरक्षण हो, इसके बाद चुनाव हो। भाजपा आरक्षण विरोधी है। अब ओबीसी आरक्षण पर ‌घड़ियाली आंसू बहा रही है। आज भाजपा ने पिछड़ों के आरक्षण का हक छीना है। कल भाजपा बाबा साहब के दिए गए दलितों के आरक्षण को भी छीन सकती है।”

शिवपाल यादव ने ट्वीट करके कहा कि सामाजिक न्याय की लड़ाई को इतनी आसानी से कमजोर नहीं होने दिया जा सकता है। आरक्षण पाने के लिए जितना बड़ा आंदोलन करना पड़ा, उससे बड़ा आंदोलन उसे बचपने के लिए करना पड़ेगा। कार्यकर्ता तैयार रहें।

“बीजेपी की गलती की सजा ओबीसी समाज जरूर देगी”

बसपा सुप्रीमो मायावती ने ट्वीट किया, “यूपी में बहुप्रतीक्षित निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग को संवैधानिक अधिकार के तहत मिलने वाले आरक्षण को लेकर सरकार की कारगुजारी का संज्ञान लेने सम्बंधी माननीय हाईकोर्ट का फैसला सही मायने में भाजपा व उनकी सरकार की ओबीसी एवं आरक्षण-विरोधी सोच व मानसिकता को प्रकट करता है।

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यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पूरी निष्ठा व ईमानदारी से अनुपालन करते हुए ट्रिपल टेस्ट द्वारा ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था को समय से निर्धारित करके चुनाव की प्रक्रिया को अन्तिम रूप दिया जाना था, जो सही से नहीं हुआ। इस गलती की सजा ओबीसी समाज बीजेपी को जरूर देगा।”

ओबीसी आरक्षण पर सरकार गंभीर नहीं

सुभसपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने कहा, “निकाय चुनाव पर उच्‍च्‍ा न्यायालय के फैसले का अध्ययन कर रहे हैं। सरकारें ओबीसी आरक्षण के सही बंटवारे पर गंभीर नहीं है। प्रदेश सरकार उच्‍च्‍ा न्यायालय के फैसले के क्रम में 31 जनवरी तक त्रिस्तरीय प्रकिया के तहत आरक्षण तय करे। पिछड़ों के आरक्षण के लिए हमारी पार्टी सुप्रीम कोर्ट जाएगी।”

निकाय निदेशालय की नहीं ली गई मदद

आरक्षण को लेकर हर बार स्थानीय निकाय निदेशालय की अहम भूमिका रहती थी। सूत्रों का कहना है कि इस बार उसकी मदद नहीं ली गई। अधिकतर नए अधिकारी लगे हुए थे, इसीलिए चूक हो गई।

कहां हुई अधिकारियों से चूक

निकाय चुनाव में सीटों के आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2010 में फैसला दिया था। इसमें यह साफ कर दिया गया था कि आयोग का गठन करते हुए अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए वार्डों और सीटों का आरक्षण किया जाएगा। इसके बाद भी इसकी अनदेखी की गई।

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कई अफसरों पर गिर सकती है गाज

सूत्रों का कहना है कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद उच्च स्तर पर नाराजगी जताई गई है। बताया जा रहा है कि इसके लिए जल्द ही जिम्मेदारी तय की जाएगी। इसके आधार पर कार्रवाई की जाएगी। सूत्रों का कहना है कि इसमें नगर विकास विभाग के कुछ अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है, लेकिन उच्च स्तर पर मामले की लीपापोती की जा रही है।

अक्तूबर में होनी थी अधिसूचना

यूपी में निकाय चुनाव की अधिसूचना अक्तूबर में हो जानी चाहिए थी। साल 2017 में 27 अक्तूबर को निकाय चुनाव के लिए अधिसूचना जारी कर दी गई थी। उस समय तीन चरणों में चुनाव हुआ था और मतगणना 1 दिसंबर 2017 को हुई थी। इस बार निकाय चुनाव में विभागीय स्तर पर देरी हुई। वार्डों और सीटों के आरक्षण दिसंबर में हुआ।

5 दिसंबर को मेयर और अध्यक्ष सीटों पर आरक्षण जारी किया

पांच दिसंबर को मेयर और अध्यक्ष की सीटों का प्रस्तावित आरक्षण जारी किया गया। इस पर सात दिनों में आपत्तियां मांगी गई थीं। नगर विकास विभाग यह मान कर चल रहा था कि 14 या 15 दिसंबर तक वह राज्य निर्वाचन आयोग को कार्यक्रम सौंप देगा, लेकिन इस बीच मामला हाईकोर्ट में जाकर फंस गया।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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