विवेक चौबे की रिपोर्ट
बद अच्छा, बदनाम बुरा और उससे भी बुरी बेईमानी। अपने झारखंड में इस विधा के जानकार बताते हैं बेईमानी के अलग-अलग प्रकार। स्थानीय स्तर की बेईमानी में फंसने का हाल तो सभी देख रहे हैं। धर लिए जाने का खतरा सिर पर रहता है। नहीं समझ में आए तो पूछिए मैडम से। यहीं सबकुछ किया और यहीं सारा दिख भी गया। चालाक तो वे हैं जो सात समुंदर पार कुछ ऐसा बनाकर छोड़ आएं कि पीढ़ियां रखेगी याद, लेकिन लोगों की नजर से दूर। रातोंरात 56 की उम्र में 36 के नजर आने वाले हाकिम ऐसे ही स्मार्ट थोड़े हुए हैं। हुजूर ने जो किया, यहां से बाहर किया। अब देश-दुनिया से इनसे ज्यादा कोई थोड़े ही ज्ञान लेकर आया है। उसी ज्ञान से अर्जित किया है सारा। अब ज्ञान छलक रहा है तो पब्लिक को भी देर-सवेर हो ही जाएगी जानकारी।
मैडम का गुस्सा सचिवालय की चाय दुकान पर आजकल चुस्की के साथ बताया जा रहा है। अब जिले वाला मजा तो मुख्यालय में मिलने से रहा। विभाग भी मेहनत वाला है और हरियाली भी दूर-दूर तक आती नहीं नजर, तो इनका गुस्सा होना भी गलत नहीं। उसकी तो खैर ही नहीं, जो समझाने की गुस्ताखी करे। सीधे सुना देती हैं कि किसी लायक हो नहीं, ऐसा कलम चलाएंगे सीआर होगा जाएगा खराब। सबसे ज्यादा दिक्कत में तो बेचारा चाय पिलाने वाला है। कभी चीनी कम तो कभी चीनी ज्यादा। डपट देती हैं कि शुगर का पेसेंट बनाकर ही छोड़ोगे। बेचारा हाथ जोड़कर खिसक लेता है। वैसे इसका इलाज भी शातिर बताते हैं कि जबतक जिले में नहीं जाएंगी, तबतक ऐसा ही चलता रहेगा। फिलहाल दिन फिरने की उम्मीद भी नहीं, वैसे एक शुभचिंतक लगा है मोर्चे पर, हो सकता है बात बन जाए।
खुशी पहले बुधवार की
खुश है जमाना, आज पहली तारीख है वाली खुशी में अब कोई दम रहा नहीं। वैसे भी प्रबुद्ध लोगों ने पहले ही कह दिया है कि पहली तारीख तो होता है पूर्णिमा का चांद, जो एक दिन चमककर पूरा महीना छोड़ जाता है अपने सामने। अपने झारखंड में चक्का वाले विभाग में तो खुशी का दूसरा ही फार्मूला है। यहां खुशी दस्तक देती है हर महीने की पहली बुधवार को। बारी-बारी से सबकी बारी आती है और चारों तरफ दौड़ जाता है उत्साह। पहला बुधवार बीतने के बार फिर शुरू होता है असली हिसाब-किताब। आखिरकार जमे रहने के लिए मलाई में पूरा दूध तो जरूरी है। बस यही मंत्र है असली खुशी का। वैसे इसकी खुशबू में जो होते हैं सराबोर, वहीं जानते हैं असली मजा। जब महीना बीतने को होता है तो फिर बुधवार के इंतजार में दिन गिनते हैं।
दीपावली और हड़ताल
अब हाय-हाय करने वालों को कोई कैसे समझाए कि ये महीना नहीं है हड़ताल का। भले ही लाख काम रुक जाए लेकिन दीपावली-दशहरा का डिब्बा-लिफाफा रुका तो किसको-किसको देंगे जवाब। राजस्व कर्मियों के हड़ताल को लेकर हाकिम की यही चिंता है। वे इसे छिपाते भी नहीं और बताते भी है कि ऐसे नहीं किया जाता। आपलोगों को तो समझ है ही नहीं। हर साल मुंह उठाए आ जाते हैं इसी समय। करना ही है हड़ताल तो जून में करो। कोई त्योहार का टाइम नहीं है। अब आएगा नहीं तो भला जाएगा क्या? जिनके हाथ में जिम्मा वे जिंदाबाद-मुर्दाबाद में जुटे हैं। कोशिश भी की गई कि वादों की चाशनी से इन्हें सराबोर किया जाए, लेकिन ये हैं कि टस से मस नहीं हो रहे। अब हाकिम को यही डर सता रहा है कि इसी फेर में कही उनकी दीपावली खराब हुई तो सोना उगलने वाली नदी का स्त्रोत सूख जाएगा।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."