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हाथरस

गैंगरेप पीड़िता का ये वो घर जहां वक्त दो साल पहले सितंबर माह में अटका हुआ है;  कहानी जो आपको थर्रा देगी

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

हाथरस बूलीगढी।  तीन कमरे, आंगन, दालान और छत से बना मकान! 7 लोग यहां तकरीबन 7 सौ दिनों से बंद हैं। 14 सितंबर 2020 को इसी घर से कुछ सौ मीटर दूर एक खेत में युवती की लहूलुहान देह उसकी मां को मिली। 15 दिन बाद अस्पताल में उसकी मौत हो गई। परिवार का आरोप है कि गांव के ही 4 सवर्ण युवकों ने उसका बलात्कार किया था।

वहीं गांव के बहुत-से परिवार फुसफुसाते हुए इसे ऑनर किलिंग बताते हैं। इस जिक्र पर मृतका के भाई कहते हैं- CBI जांच भी हो गई। इसके बाद भी कोई ऐसी बात करे, तो क्या कर सकते हैं! हैवान सबको हैवानियत की नजर से ही देखेगा।

तीसेक साल के इस जवान की आवाज शांत है। थकान और ऊब से आई शांति। इस सवाल का जवाब वे शायद हजार बार दे चुके, और हजार बार देना बाकी है।

भाई से बातचीत चल ही रही थी तभी हाथ का काम निबटाकर आंचल से मुंह पोंछते हुए मृतका की भाभी आती हैं। मंझोले कद वाली इस महिला के छुए-अनछुए कई दर्द हैं। दुलारी ननद गईं, साथ में मन का एक कोना सूखा कर गईं।

वे याद करती हैं- अगस्त के आखिर में बेटी हुई और थोड़े दिन बाद दीदी के साथ हादसा हो गया। मैं अस्पताल जाने के लिए खूब रोई, लेकिन कोविड के मारे सबने मना कर दिया। फिर कभी अपनी ननद को देख ही नहीं पाई।

पास ही वो बच्ची खेल रही है। गोबर से लिपे आंगन में यहां-वहां डोलती इस बेटी ने बाहर की दुनिया नहीं देखी। वो तीन-चार कमरों के इस मकान को ही संसार जानती है। उसे नहीं पता कि घर के लोग बाहर जाकर नौकरी भी करते हैं। वो बाजार-पार्क भी जाते हैं। वो ये भी नहीं जानती कि उसकी सबसे बड़ी बहन उनके साथ क्यों नहीं रहती।

मृतका की आखिरी याद! हां! मैं जचकी (हाल में संतान को जन्म दिया) से थी, तो सारे काम दीदी (मृतका) ही करतीं। उस सुबह खेत जाने से पहले चाय देते हुए कहा कि मुझे सपना आया है, गांव में आग लग गई और सब यहां-वहां भाग रहे हैं। मैंने टोककर अच्छा सपना बताने को कहा, तो वो हंसती हुई चली गईं। लौटते में अम्मा (सास) के लिए दवा भी लानी थी। वही आखिरी बार उनको देखा।

अब इमरजेंसी में बाहर जाना ही पड़े, तो खेत से नजर नहीं हटती। लगता है कि दीदी अभी कहीं दिख जाएंगी। आवाज देते हुए अच्छा सपना सुनाएंगी।

इंटरव्यू के बीच में मृतका की अस्थियों का जिक्र आता है, जो इंसाफ के बाद ही नदी में प्रवाहित होंगी। हम देखने की इच्छा जाहिर करते हैं, तो हाथ से बरजते हुए बड़े भाई कहते हैं- वो हम नहीं दिखा सकते। जब न्याय होगा, तभी उसकी अस्थियां भी बाहर आएंगीं।

रातोंरात, बिना किसी रस्म के आग के हवाले कर दी गई। मृतका की लगाई तुलसी ही वो आखिरी चीज है, जो इस घर में लहलहा रही है। उसे देखते हुए मां बताती हैं- बड़े नेग-धरम वाली थी मेरी बेटी। तुलसी में पानी दिए बिना मुंह में कौर नहीं डालती थी। अभी नवरात्रि आ रही है। बाकी लोग फल-फूल खा लेते, वो ऐसे ही नौ दिन काटती थी।

बोलते-बोलते रो पड़ती हैं। ठुड्डी से नीचे सरक आए आंचल के नीचे भी सुबकियां दिख रही हैं। उस मां की सुबकियां, जिसकी बेटी की लाश उसे बताए बिना जला दी गई। उस मां की रुलाई, जो आखिरी वक्त पर अपनी मरी हुई बेटी का माथा नहीं चूम सकी।

घर से निकलकर हम घटनास्थल पर पहुंचते हैं। सामने चारा रखने की कुटिया बनी है। उसी कोने में दो साल पहले लड़की की लहूलुहान देह मिली थी।

अब वहां खून का कोई निशान नहीं। चीखें भी कबकी हवा में घुल चुकीं। तब उसे चोट पहुंचाते हाथ भी अब गायब हैं। सामने वो जमीन है, जो अपनी हरियाली से हादसे की हर याद मिटा देना चाहती है। जमीन के बारे में पता लगता है कि गांव के ही किसी शख्स के रिश्तेदार की है। शुरुआत में सन्नाटा रहा, अब बुआई-कटाई सब होती है।

बहन के गैंगरेप को दो साल बीते। तब से हम घर पर हैं- होम अरेस्ट! जवान हैं, लेकिन नौकरी पर नहीं जा सकते। बेटियों को स्कूल नहीं भेज सकते। तीज-त्योहार आए- चले गए। न कोई बधाई आई, न आंसू पोंछने वाले हाथ। बहन की अस्थियां इंतजार में हैं। हमारी जिंदगियां इंतजार में हैं। इंसाफ मिले, तो वक्त आगे बढ़े।

ये वो घर है, जहां वक्त दो साल पहले के सितंबर में अटका हुआ है। चेहरे पर मास्क लगाए युवक कई बातें कहता है। कुछ कैमरे पर, कुछ पीछे। जब हम बात कर रहे हैं, CRPF के हथियारबंद जवान साथ खड़े हैं।

नवंबर 2020 में गेरू और गोबर से लिपा ये अधकच्चा मकान एकदम से छावनी में बदल गया। लोगों को सुरक्षा की जरूरत थी। क्यों! क्योंकि यहीं पर दलित समुदाय की वो युवती रहती थी, कथित गैंग रेप के बाद जिसकी मौत हो गई। बात यहीं नहीं रुकी। रातों-रात उसकी लाश जला दी गई। परिवार की गैर-मौजूदगी में।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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