अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
ताजमहल जिस जगह बना है पहले वहां तेजोमहालय नाम का महादेव का मंदिर था। ऐसा दावा किया जाता है, कि शाहजहां ने मंदिर तोड़कर उसकी जगह ताजमहल बनवाया था। इसको लेकर एक आवाज फिर से उठी है। अयोध्या में बीजेपी के मीडिया प्रभारी रजनीश सिंह ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में एक याचिका दायर की है। इसमें उन्होंने मांग की है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को ताजमहल के 22 कमरे खोलने की इजाजत दी जाए, जिससे यह पता चल सके कि वहां हिंदू मूर्तियां और शिलालेख छिपे हैं या नहीं।
ताजमहल के 22 कमरों को खोलने को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में भाजपा नेता डॉ. रजनीश सिंह ने याचिका दायर की है। याचिका दायर होने के बाद इन 22 कमरों के रहस्य को लेकर लोगों में उत्सुकता है। अगर याचिका स्वीकार होती है और भविष्य में इन 22 कमरों को खोला जाता है, तो क्या इन कमरों से कोई ऐसा रहस्य निकलेगा जो चौंकाने वाला होगा? आज कोर्ट में सुनवाई होनी है। लेकिन एक्सपर्ट की माने तो 22 बंद दरवाजों को खोलना आसान नहीं होगा। ऐसी अनोखी इमारत से छेड़छाड़ के लिए जरूरी होंगे सैकड़ों करोड़ रु और हाईलेवल एक्सपर्सट्स की कई टीमें। ताज क्योंकि वर्ल्ड हैरीटेज है इसलिए यूनेस्को भी इस पूरे मामले में दखल देगा।
विरासत को खतरा, यूनेस्को का दखल और बेतहाशा खर्च
सेंट्रल स्टडीज ऐंड हेरिटेज मैनेजमेंट रिसोर्सेज, पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट अहमदाबाद में ऑनरेरी डायरेक्टर देबाशीष नायक कहते हैं, ”ताजमहल वर्ल्ड हेरिटेज है, ऐसे में उसके ढांचे से छेड़छाड़ करने के लिए यूनेस्को से डिस्कस करना पड़ेगा। लॉजिक देना पड़ेगा। उसके बाद आप दरवाजे खोल सकते हैं।”
लेकिन क्या यह संभव है कि अगर कोर्ट एएसआई को उन दरवाजों को खोलने का निर्देश दे और याचिकाकर्ता का दावा ठीक निकले तो भी वह वर्ल्ड हेरिटेज रहे? वे कहते हैं, यह दूर की कौड़ी है। लेकिन अगर हेरिटेज इमारत का ऑब्जेक्टिव चेंज होगा तो यूनेस्को दखल तो देगा। फिर उसके बाद वह इस पर निर्णय लेगा।
दूसरी तरफ बीएचयू की हिस्ट्री प्रोफेसर और आर्कियोलॉजिस्ट बिंदा कहती हैं, ”ताजमहल का आर्किटेक्चर बेहद अनूठा है। आप देखिए कि उस पर लिखी कुरान की आयतों को आप जिस भी डायरेक्शन से देखें तो वे दिखाई देती हैं।
इसका मतलब है कि तब के कारीगरों और एक्सपर्ट्स ने इंसानी विजन को समझकर उसका वैज्ञानिक विश्लेषण करने के बाद आयतें इस ढंग से लिखी होंगी की दूर से और हर एंगल से वे दिखाई दें। ऐसे में अगर दरवाजे खोलने का निर्णय लिया गया तो पहले बेहद सावधानी और एक्सपर्ट्स की टीम के साथ काम करना होगा।”
वे आगे कहती हैं, “टीम भी कई स्तरों पर गठन करने की जरूरत होगी, पहली आर्काइव को खंगालने के लिए, दूसरी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम और फिर ऐसी टीम भी जो केमिस्ट्री यानी केमिकल्स की जानकार हो। अगर जरा सा भी कोई स्ट्रक्चर क्षतिग्रस्त हुआ तो उसे मेंटेन करना आसान नहीं होगा। इन सबके लिए सैकड़ों करोड़ के फंड की जरूरत होगी।
तो अगर ताजमहल के दरवाजे खोलने का निर्णय हुआ तो सबसे पहले फंड एलोकेट करना होगा। वह कोई छोटा-मोटा फंड नहीं होगा। कई काम फंड की कमी से बीच में ही अटक जाते हैं।”
आप हिस्ट्री की प्रोफेसर हैं, आपको क्या लगता है, आखिर यह 22 दरवाजे बंद क्यों हैं? इस सवाल पर प्रो. बिंदा कहती हैं, “देखिए कोणार्क मंदिर का भी कुछ हिस्सा बंद था, लेकिन उसके पीछे वजह यह थी कि वह डैमेज हो रहा था। अगर उसे पर्यटकों के लिए खोले रखा जाता तो वह और भी डैमेज हो जाता। अब ताजमहल के बंद दरवाजों के पीछे रहस्य क्या है, यह तो उनके खुलने के बाद ही पता चलेगा।
लेकिन मेरी चिंता बस यह है कि अगर कोई विवाद है तो उसे सुलझाया जाए, लेकिन वैश्विक धरोहरों और दुनिया के लिए मिसाल बने आर्किटेक्चर से छेड़छाड़ न हो। अगर कुछ करना भी है तो फिर ऐसे हो कि विवाद भी सुलझ जाए और वह इमारत अपने मूल रूप में भी बनी रहे।”
याचिकाकर्ता ने कहा- भविष्य के विवाद से बचने के लिए पर्दा उठना जरूरी
रजनीश सिंह ने कहा, “मैं केवल शंका का समाधान चाहता हूं। जो सच होगा, वह सामने आएगा। वे 22 दरवाजे खुलेंगे तो पता चलेगा कि वह मकबरा है या मंदिर। मैं अभी से कोई दावा नहीं करता। उन्होंने यह भी साफ किया कि उनकी याचिका का पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है। यह उनकी व्यक्तिगत याचिका है।”
ताजमहल की पहचान पर उठाए गए 5 गंभीर आरोप
- पिटिशन में हवाला दिया गया है कि कई किताबों में ये जिक्र है कि 1212 एडी में राजा परमारदी देव ने तेजो महालय बनवाया था, जो बाद में जयपुर के राजा मान सिंह को विरासत में मिला था। बाद में यह राजा जय सिंह को मिला। बाद में शाहजहां ने तेजो महालय को तुड़वाकर इसे मकबरा बना दिया था।
- किसी भी मुगल कोर्ट पेपर या क्रॉनिकल, यहां तक कि औरंगजेब के समय में भी ताजमहल का जिक्र नहीं है। मुस्लिम महल शब्द का इस्तेमाल कभी नहीं करते। किसी भी मुस्लिम कंट्री में इस शब्द के होने के प्रमाण नहीं हैं।
- औरंगजेब काल के तीन दस्तावेज हैं- आदाब-ए-आलमगिरी, यादगारनामा और मुरक्का-ए-अकबराबादी। इनमें दर्ज 1652 एडी के एक पत्र में औरंगजेब ने मुमताज के मकबरे की मरम्मत के निर्देश दिए। उसमें साफ लिखा है कि मकबरे की हालत ठीक नहीं है। वह कई जगह से रिस रहा है। दरारें पड़ चुकी हैं। मकबरे को 7 माले का बताया गया है।
यानी साफ है कि मकबरा औरंगजेब के समय में काफी पुराना हो चुका था, अगर शाहजहां ने बनवाया होता तो कुछ ही सालों बाद यह इतना पुराना नहीं पड़ गया होता।
- शाहजहां की वाइफ का नाम मुमताज महल बताया गया है। इसीलिए इसका नाम ताजमहल भी रखा गया। लेकिन अगर कोई ऑथेंटिक डाक्यूमेंट्स खंगाले तो पता चलेगा कि मुमताज का नाम मुमताज उल जमानी लिखा गया है।
- इस कब्र को 1631 में बनाना शुरू किया गया और 1653 में यह बनकर तैयार हुई। यानी 22 साल इसके निर्माण में लगे। एक कब्र को बनाने में इतना वक्त लगना भी शंका खड़ी करता है।
ताजमहल को लेकर विवाद की शुरुआत इतिहासकार पीएन ओक की किताब ट्रू स्टोरी ऑफ ताज (True Story of Taz) से शुरू हुआ था। किताब में ताजमहल के शिव मंदिर होने से संबंधित कई दावे किए थे। कुछ इतिहासकारों का यह भी दावा है कि ताजमहल में मुख्य मकबरे व चमेली फर्श के नीचे 22 कमरे बने हैं, जिन्हें बंद कर दिया गया है। चमेली फर्श पर यमुना की तरफ बने बेसमेंट में नीचे जाने के लिए दो जगह सीढ़ियां बनी हुई हैं। करीब 45 साल पहले सीढ़ियों से नीचे जाने का रास्ता खुला था।
Author: samachar
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