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“आओ बाबा-बाबा खेलें” ; झाडफूंक के साये में अंधविश्वास का जकडता मकडाजाल

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अनिल अनूप की खास रिपोर्ट

दीन-धर्म के नाम पर दुकान चमकाने वालों की कमी नहीं। आस्था के नाम पर तरह-तरह के हथकंडे आज़माकर अपने अनुयायियों को प्रभावित करने वाले ही आजकल ‘बाबा’ कहलाते हैं। ऐसे बाबा अपने भक्तों को समझा देते हैं कि जादू, टोना, करतब, करनी या भूत-प्रेत बाधा से ग्रसित लोगों का जीवन दुखमय हो जाता है और इसका निवारण करने की शक्ति उनके पास है।

उनके छोड़े गए एजेंट बताते हैं कि फ़लां बाबा के पास आपके भूत-प्रेत भगाने सहित रोज़ी-रोज़गार, शादी विवाह या फिर हर तरह की समस्या का उपाय है। विश्वभर में ऐसा कोई नहीं जो किसी न किसी समस्या से जूझ न रहा हो। निजी, पारिवारिक, व्यावसायिक समस्याएं हर व्यक्ति के जीवन का अभिन्न अंग हैं। अंधविश्वासी और परेशान हाल लोग ऐसे में फ़र्ज़ी बाबाओं के झांसे में आ ही जाते हैं। और ऐसा नहीं है कि ग़रीब तबक़ा ही इसका शिकार है, धन्नासेठ भी ग़रीबों से अधिक ऐसे बाबाओं की शरण में पहुँचते हैं।

धर्म के नाम पर धंधा करने और रैकेट चलाने वाले फ़र्जी बाबाओं की करतूत ने अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को कुछ सख़्त फ़ैसले लेने पर मजबूर कर दिया है ताकि देश की जनता और श्रद्धालू समाज इनके चंगुल में न फंसे और सचेत रहे। पहल अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने की है।

आसाराम बापू, बाबा रामपाल के साथ-साथ राम रहीम के रहस्यमयी डेरा सच्चा सौदा का असली और घिनौना चेहरा लोगों के सामने आने के बाद अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने फर्जी बाबाओं की सूची जारी कर 14 बाबाओं को फ़र्जी घोषित किया है।

इस सूची में कई स्वयंभू बाबाओं के नाम हैं। इस सूची में आसाराम उर्फ आशुमल शिरमानी, सुखविंदर कौर उर्फ राधे मां, सचिदानंद गिरी उर्फ सचिन दत्ता, गुरमीत राम रहीम, ओम बाबा उर्फ विवेकानंद झा, निर्मल बाबा उर्फ निर्मलजीत सिंह, इच्छाधारी भीमानंद उर्फ शिवमूर्ति द्विवेदी, स्वामी असीमानंद, ओम नम: शिवाय बाबा, नारायण साईं, रामपाल, खुशी मुनि, बृहस्पति गिरि और मलकान गिरि के नाम शामिल हैं।

अखाडा़ परिषद ने न सिर्फ़ उन्हें फ़र्जी घोषित किया बल्कि सरकार से आग्रह किया है कि जैसे आसाराम, रामपाल, राम-रहीम पर कार्रवाई की गई ठीक उसी प्रकार उनके द्वारा जारी लिस्ट में शामिल अन्य बचे फ़र्जी बाबाओं पर कार्रवाई कर उन्हें जेल में डाला जाए।

ऐसे कथित मौलानाओं को इस्लाम और शरीयत कानून की जानकारी शून्य के बराबर होती है। बोर्ड ऐसे मौलवियों के ख़िलाफ़ शिकंजा कसने को तैयार है जो मुस्लिम समुदाय और इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं।

बोर्ड ही नहीं बल्कि आम मुसलमान भी इस पक्ष में है कि फ़र्ज़ी बाबाओं और मौलानाओं के ख़िलाफ़ सख़्ती ज़रूरी है क्योंकि टीवी पर बहस के नाम पर बुलाए जा रहे मौलाना और मौलवियों की कोई विश्वसनीयता नहीं है।

एक अदद झालरदार, ऊंची, आड़ी, तिरछी, जालीदार टोपी पहनकर और दाढ़ी बढ़ाकर टीवी परिचर्चा में शामिल होने वाले ऐसे कथित मौलाना मुस्लिम समुदाय को बदनाम कर रहे हैं। उनकी सतही बहस से ही साबित हो जाता है कि इनके पास इस्लाम और शरिया का कोई ज्ञान नहीं है। वे बजाए इस्लाम की सही नुमाईंदगी करने के कभी किसी पार्टी, किसी संगठन या किसी व्यक्ति विशेष के पैरोकार अधिक नज़र आते हैं।

देश में अनेक तथाकथित फर्जी बाबाओं पर बलात्कार, महिला शोषण, समलिंगी दुष्कर्म, सेक्स रैकेट चलाने और देश की भोली-भाली जनता को ठगने के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे हिन्दू-मुस्लिम फ़र्जी बाबाओं द्वारा किए जाने वाले कुकर्म एवं धर्म विरोधी कार्यों से न सिर्फ़ हिंदू धर्म और संत समाज की बदनामी हुई है बल्कि मुस्लिम समाज को भी शर्मिंदगी उठानी पड़ी है।

जहां तक मुस्लिम समाज के बाबाओं की बात है वहाँ भव्य बाबाओं की अपेक्षा छोटे-मोटे स्तर पर लूट और फ़रेब का बड़ा कारोबार अधिक चलता है। असली आलिम और फ़र्ज़ी बाबाओं के बीच बड़ी बारीक सी लकीर होती है जिसे विषम परिस्थितियों और हालात से मजबूर और परेशान मुसलमान समझ नहीं पाता। जब तक उसकी समझ में कुछ आए वह लुट चुका होता है।

मुस्लिम समाज में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जिनका यह मानना है कि तमाम बीमारी और परेशानी का हल सिर्फ़ तावीज़, गंडा और बाबा की झाड़फूंक में है। साथ ही उनके आदर्श बाबा ही जो उन्हें इस परेशानी से निजात दिला सकते हैं। बीमारी चाहे दिमागी हो या जिस्मानी, किसी डॉक्टर के इलाज से अगर सही न हो तो ऐसे लोग उसका हल सिर्फ़ झाड़-फूंक और तावीज़-गंडे मे तलाशते हैं।

उर्दू मे तावीज़ उसे कहते हैं जो बाँहों पर बांधा या गले में लटकाया जाए जिससे बीमारी, आसेबी और बुरी नज़र से बचा जा सके। अरबी में जिसे तमीमा कहते हैं जिसका अर्थ पनाह चाहना होता है।

परेशानी के आलम में बाबा के पास पहुंचे श्रद्धालुओं को यही बाबा तावीज़ बनाकर देते हैं। ख़ैर और बरकत को हासिल करने के लिए भी मौलवियों की शरण में जाना आम बात है।

परेशानी चाहे पारिवारिक हो, आर्थिक हो या या किसी रिश्तेदार की या कारोबारी, लोगों के अक़ीदे मे ये शामिल है कि उनकी तमाम परेशानी और मुश्किलात का हल पलक झपकते ही मौलवी हज़रात दूर कर देंगे।

इस विषय में क़ुरआन की सीख से मुसलामानों की दूरी ही उन्हें बाबाओं के चंगुल में ले जाती है। क़ुरआन के अनुसार अल्लाह फ़रमाता है– “यदि तुम उनसे पूछो कि “आकाशों और धरती को किसने पैदा किया?” तो वे अवश्य कहेंगे, “अल्लाह ने।” कहो, “तुम्हारा क्या विचार है? यदि अल्लाह मुझे कोई तकलीफ़ पहुँचानी चाहे तो क्या अल्लाह से हटकर जिनको तुम पुकारते हो वे उसकी पहुँचाई हुई तकलीफ़ को दूर कर सकते हैं? या वह मुझ पर कोई दयालुता दर्शानी चाहे तो क्या वे उसकी दयालुता को रोक सकते हैं?” कह दो, “मेरे लिए अल्लाह काफ़ी है। भरोसा करनेवाले उसी पर भरोसा करते हैं।”-(अल-क़ुरआन – सूरह ज़ुमर 39/38) अगर अल्लाह, उसके नबी और क़ुरआन पर मुसलमान का पक्का यक़ीन है तो क्या ये आयत उन तमाम लोगों के लिये एक चुनौती नहीं है जो झाड़-फूंक, तावीज़-गंडे के लिए फ़र्ज़ी बाबाओं की शरण में जाते हैं?

क्या उनको अल्लाह की तरफ़ से एक करारा जवाब नहीं है कि अल्लाह के सिवा कोई परेशानी से निजात नहीं दे सकता चाहे वो किसी भी तरह की हो? किसी वली सिफ़त बुज़ुर्ग का सानिध्य, उसकी दुआएं, उसकी शफ़क़त, उसका मश्वरा, उसकी सरपरस्ती जायज़ कही जा सकती है, लेकिन जब उसी बुज़ुर्ग को अगर (नऊज़-ओ-बिल्लाह) ख़ुदा के बराबर दर्जा दे दिया जाए तो क्या उचित होगा? अव्वल तो सच्चे आलिम-ए-दीन ऐसी किसी भी ख़ुराफ़ात से खुद को दूर रखते हैं। और जो ऐसी जहालत को बढ़ावा दे वह पीर-ओ-मुर्शिद या हमदर्द बाबा नहीं बल्कि मजबूरी का फ़ायदा उठाने वाले लुटेरे हैं जिन्हें पहचानने की ज़रुरत है।

ट्रिपल तलाक़ मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में ढंग से न रख पाने के कारण आलोचनाओं का शिकार होने वाला ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस बार सराहनीय पहल कर तो रहा है लेकिन उसे अपने क़दम फूँक-फूँक कर रखने होंगे क्योंकि अंधभक्ति के शिकार अनेक मुस्लिम तबक़े ज़रूर उनका विरोध करेंगे। लेकिन फ़र्ज़ी बाबाओं से निजात मुस्लिम समाज के लिए निहायत ज़रूरी है।

इस्लाम के जय्यद आलिम, सूफ़िज़्म के समर्पित पैरोकार और क़ुरआन-ओ-हदीस की शिक्षा के सच्चे अलमबरदार हमेशा से मुस्लिम समाज के आदर्श थे, हैं और रहेंगे। लेकिन फ़र्जी बाबाओं ने अपनी करतूतों से उनकी साख़ पर भी बट्टा लगाने में कोई कमी नहीं रखी है। इसलिए ज़रूरी है कि सम्मानित उलेमा और सूफ़ी हज़रात और इस्लाम की आबरू से खेलने वाले ऐसे फ़र्जी मौलवी-मौलाना-बाबाओं की शिनाख़्त कर उन पर कार्रवाई हो और इस्लाम की सही शिक्षा और सच्ची तस्वीर समाज के सामने लाई जा सके।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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