इतिहासखबरें वालीवुड कीमनोरंजन
Trending

इस दौर का नायक प्यार तो करता था लेकिन…..भारतीय हिन्दी सिनेमा का आदर्शवादी दौर (२)

अनिल अनूप

{पाठकों, पिछले सप्ताह हमने आपको सिर्फ हिंदी सिनेमा का इतिहास ही नहीं सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक मूल्यों का लेखा जोखा बताया था। भारत में हिन्दी सिनेमा के उद्भव से लेकर इसके क्रमबद्ध विकास की यात्रा के प्रमुख अंश हमने दर्शाए थे। आइए इस विकास काल के अगले चरण में जानते हैं इस महान कलाकार राजकपूर के साथ भारतीय हिन्दी सिनेमा के विकास की कहानी……}

IMG_COM_20230613_0209_43_1301

IMG_COM_20230613_0209_43_1301

IMG_COM_20230629_1926_36_5501

IMG_COM_20230629_1926_36_5501

1950 का हिंदी फ़िल्मों का दशक हिंदी फ़िल्मों का आदर्शवादी दौर था । आवारा, मदर इंडिया, जागते रहो, श्री 420, झाँसी की रानी, परिनिता, बिराज बहू, यहूदी, बैजू बावरा और जागृति जैसी फिल्में इसी दौर में बनी । यह दौर गुरुदत्त,बिमल राय,राज कपूर,महबूब खान,दिलीप कुमार,चेतन आनंद,देव आनंद और के.ए.अब्बास का था । यह वह समय था जब हिंदी सिनेमा के नायक को सशक्त किया जा रहा था । भारतीय समाज का आदर्शवाद इस दशक के केंद्र में था। सामाजिक भेदभाव, जातिवाद, भ्रष्टाचार, गरीबी, फासीवाद और सांप्रदायिकता जैसी समस्याओं को लेकर फिल्में इस दौर में बनायी जाने लगीं। आज़ादी को लेकर जो सपने और जिन आदर्शों की कल्पना समाज ने की थी, वह फिल्मों में भी नज़र आ रहा था । बिमल राय के निर्देशन में बनी “दो बीघा जमीन” इस दौर की महत्वपूर्ण फ़िल्म है ।

राज कपूर अभिनय के साथ – साथ फिल्मों के निर्माण और निर्देशन का भी कार्य कर रहे थे । इस दौर का नायक प्यार तो करता था लेकिन पारिवारिक दबाव, सामाजिक प्रतिष्ठा और सामाजिक प्रतिबद्धता के आगे वो प्यार को कुर्बान कर देता था । बिमल राय की “देवदास” और गुरुदत्त की “प्यासा” इसी तरह की फिल्में थीं । प्रेम के संदर्भ में इन नायकों में साहस का अभाव था । सामाजिक नैतिकता का आग्रह अधिक प्रबल था । साल 1954 में पी.के. आत्रे की फिल्म श्यामची आई (1953) को प्रेसिडेंट गोल्ड मेडल से नवाजा गया। 1951 में बनी “आन’ फ़िल्म में 100 वाद्य यंत्रों का उपयोग हुआ । यह अपने तरह का नायाब प्रयोग था ।

1954 में सोवियत संघ में भारतीय फिल्म महोत्सव का आयोजन किया गया जहां राजकपूर की फिल्म आवारा बड़ी हिट साबित हुई। आवारा 1951 में बनी थी । 1954 में वी शांताराम की झनक झनक पायल बाजे भी रिलीज हुई । हिंदी की कई श्रेष्ठ फिल्में इसी दौर में निर्मित हुई । हिंदी फ़िल्मों में नायक के निर्माण का यह दौर आदर्शों से समझौता नहीं कर रहा था । फिल्मों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कारों की शुरुआत भी 1954 से ही हुई। अभिनेता देवानंद की “सीआईडी” और “फंटूश” इसी दशक की कामयाब फ़िल्मों में रहीं। राजकपूर और नर्गिस की एक फिल्म “ चोरी-चोरी” भी प्रदर्शित हुई ।

साल 1957 में आयी महबूब खान की फिल्म मदर इंडिया रिलीज हुई।यह 1940 में बनी फ़िल्म “औरत” का रीमेक थी । इस दशक की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म तो यह बनी ही, साथ ही प्रतिष्ठित ऑस्कर के लिए फॉरेन लैंग्वेज फिल्म कैटगरी में नॉमीनेट होने वाली पहली भारतीय फिल्म बनी। इसी फ़िल्म के लिए अभिनेत्री नरगिस को कार्लोवी फ़िल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार पाने वाली पहली भारतीय अभिनेत्री बनीं । यह फ़िल्म हिंदी सिनेमा के लिए महत्वपूर्ण पड़ाव था । दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला की फिल्म “नया दौर” भी इसी दशक में रिलीज हुई । साल 1957 में एक और फिल्म रिलीज हुई – गुरुदत्त की “प्यासा” । इस फ़िल्म को टाइम मैग्जीन ने विश्व की 100 सबसे बेहतरीन फिल्मों में शुमार किया है। दो आंखें बारह हाथ, पेइंग गेस्ट, मधुमती, चलती का नाम गाड़ी, यहूदी, फागुन, हावड़ा ब्रिज, दिल्ली का ठग, अनाड़ी, पैगाम, नवरंग, धूल के फूल जैसी फिल्में इस दशक की महत्वपूर्ण फिल्में रहीं। कामयाब फ़िल्मों का यह दशक हिंदी सिनेमा के इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण है ।

1960 का हिंदी फ़िल्मों का दशक 1950 के दशक से काफ़ी अलग था । राज कपूर ने जिस प्रेम का ट्रेंड शुरू किया था वह अपने पूरे शबाब पे था ।1960 में रिलीज हुई ऐतिहासिक फिल्म मुगले आजम। फिल्म में लीड रोल में थे दिलीप कुमार और मधुबाला। के आसिफ निर्देशित इस फिल्म को बनने में 10 सालों का वक्त लगा था। ये फिल्म अब भी बॉलीवुड की सबसे मशहूर और बेहतरीन फिल्मों में से एक मानी जाती है। । मुगले आजम 05 अगस्त 1960 को देश के 150 सिनेमा घरों में एक साथ प्रदर्शित होनेवाली पहली हिंदी फ़िल्म थी । बरसात की रात, कोहीनूर, चौदवी का चांद, जिस देश में गंगा बहती है, दिल अपना और प्रीत पराई जैसी फिल्मों ने भी बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई की। 1961 में प्रदर्शित फिल्म जंगली से शम्मी कपूर “चाहे कोई मुझे जंगली कहे गीत गाकर” याहू स्टार बने वही बतौर अभिनेत्री सायरा बानु की यह पहली फिल्म थी। (….अगले हफ्ते जारी……)

Tags

samachar

"ज़िद है दुनिया जीतने की" "हटो व्योम के मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं"
Back to top button
Close
Close
%d bloggers like this: