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सलेमपुर

सिनेमा से समाज तक: पूर्वांचल के रंगमंच का सूरज वाईशंकर मूर्ति का निधन, “सांस्कृतिक संगम” शोक में डूबा

पूर्वांचल के रंगमंच को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले वाईशंकर मूर्ति नहीं रहे, सांस्कृतिक जगत में शोक की लहर

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पूर्वांचल के प्रसिद्ध रंगकर्मी और सांस्कृतिक संगम सलेमपुर के संस्थापक वाईशंकर मूर्ति का हैदराबाद में निधन। उन्होंने पूर्वी उत्तर प्रदेश की लोकसंस्कृति को देश-विदेश में मंच प्रदान किया।

अर्जुन वर्मा की रिपोर्ट

देवरिया। पूर्वांचल की सांस्कृति चेतना को जागृत करने वाले 72 वर्षीय रंगकर्मी वाईशंकर मूर्ति का हैदराबाद में कोरोना से निधन हो गया। वे सलेमपुर के निवासी थे और अपने बेटे के पास घूमने हैदराबाद गए थे। वहीं अचानक तबीयत बिगड़ने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। उनके निधन से पूर्वी उत्तर प्रदेश के कला, साहित्य और संस्कृति जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। यह क्षति अपूरणीय है, जिसकी भरपाई फिलहाल संभव नहीं दिख रही है।

वर्षों की साधना रंगमंच के नाम

वाईशंकर मूर्ति मूल रूप से तेलंगाना राज्य के हैदराबाद के कुकुरपल्ली के निवासी थे। वर्ष 1979 में रोजगार की तलाश में मुंबई पहुंचे और उत्तर भारतीयों से संपर्क बढ़ा। इसके पश्चात वर्ष 1983 में उन्होंने टूरिंग टाकीज से अपने करियर की शुरुआत की। आजमगढ़, फैजाबाद और हरदोई जैसे शहरों में टूरिंग सिनेमा के माध्यम से लोगों को सिनेमा से जोड़ा।

इस दौरान सलेमपुर पहुंचने पर उन्होंने इसे अपना स्थायी ठिकाना बना लिया। वर्ष 1988 में मेनका सिनेमा हॉल और 2002 में योगी थिएटर की स्थापना कर क्षेत्र में कला और रंगमंच की बुनियाद डाली।

संस्थाओं से जुड़ाव और सांस्कृतिक संगम की स्थापना

संस्कृति के प्रति उनके अनुराग ने उन्हें 1996 में संस्कार भारती से जोड़ा, जहां उन्हें अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली। इसी बीच रंगकर्मी मानवेंद्र त्रिपाठी से हुई मुलाकात उनके जीवन का एक नया मोड़ साबित हुई। दोनों ने मिलकर 2004 में सांस्कृतिक संगम सलेमपुर की स्थापना की, जो आगे चलकर पूर्वांचल का प्रमुख रंगमंचीय मंच बन गया।

नाटकों की देश-विदेश में प्रस्तुति

सांस्कृतिक संगम के बैनर तले उन्होंने “मेघदूत की पूर्वांचल यात्रा” नामक नाटक की परिकल्पना की, जिसका मंचन अब तक 175 बार भारत सहित अमेरिका, सूरीनाम, ट्रिनीदाद एंड टोबैगो और गुयाना जैसे देशों में हो चुका है। इसके अलावा “ढाई आखर प्रेम का”, “सईयां भए कोतवाल”, “हरिश्चंद्र तारामती”, “कफन”, “बूढ़ी काकी”, “ईदगाह”, “ठाकुर का कुआं” जैसे नाटकों का भी सफल मंचन हुआ।

रंगमंच के माध्यम से समाजसेवा

वाईशंकर मूर्ति सिर्फ कलाकार नहीं, बल्कि समाजसेवी भी थे। उन्होंने जरूरतमंदों की बेटियों की पढ़ाई से लेकर बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था कर समाज में अपनी भूमिका निभाई। सैकड़ों युवाओं को रंगमंच के जरिए मंच प्रदान किया, जो आज टीवी, धारावाहिकों और फिल्मों में अपनी पहचान बना चुके हैं।

मंच पर भूमिका में “वाईशंकर मूर्ति”

श्रद्धांजलि

सांस्कृतिक संगम के सह-संस्थापक मानवेंद्र त्रिपाठी ने कहा, “वाईशंकर मूर्ति पूर्वांचल की आत्मा थे। उन्होंने लोकसंस्कृति को मंच पर जीवंत कर दिया। उनका जाना हमारी सांस्कृतिक विरासत के एक स्तंभ का टूटना है। लेकिन उनका कार्य उन्हें अमर बना गया।”

उनका अंतिम संस्कार गुरुवार को हैदराबाद में किया जाएगा। उनका जाना पूर्वांचल के रंगमंच, कला और साहित्यिक जगत के लिए एक युग का अंत है।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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