google.com, pub-2721071185451024, DIRECT, f08c47fec0942fa0
साक्षात्कार

रेणु की जुल्फों का सफर: इश्क, रश्क और बयालीस की बंदिशें ; इमलियों के झूले से जेल की सलाखों तक

IMG-20250425-WA1484(1)
IMG-20250425-WA0826
IMG-20250502-WA0000
Light Blue Modern Hospital Brochure_20250505_010416_0000
IMG_COM_202505222101103700

गीता पुष्प शॉ

4 मार्च, ‘मैला आंचल’ और ‘परती परिकथा’ जैसी रचनाओं के रचयिता फणीश्वर नाथ रेणु की जयंती है। भरत यायावर द्वारा संपादित रेणु रचनावली के खण्ड-4 में फणीश्वर नाथ रेणु के लम्बे बालों से जुड़ा एक रोचक अंश है। हम यह अंश राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित रचनावली से साभार प्रकाशित कर रहे हैं।

 छेड़ो न मेरी जुल्फें, सब लोग क्या कहेंगे!

सन् बयालीस के आन्दोलन में मुझे जेल (सेल) के भीतर रखा गया। जेलखाने के कंबलों में चीलर भरी थीं। बदन में चीलर और बालों में जूओं का साम्राज्य छा गया। इतनी जूं कि कल्पनातीत! पहली बार अनुभव हुआ था कि जूं कैसी होती है और कान पर कैसे रेंगती है! तब जितनी जूं पकड़ी थीं, सभी कान पर ही पकड़ीं थीं।

जेल से छूटने पर जूओं से छुटकारे का सीधा जवाब-मुंडन करवा लिया ! [बाद में जूं भले सिसकती रही हो-तेरी जुल्फों से जुदाई तो नहीं मांगी थी, कैद मांगी थी, रिहाई तो नहीं मांगी थी !]

अपने बालों से जुड़ी कितनी ही कथा-परीकथाएं सुना रहे हैं श्रीमती गीता पुष्प शॉ को रेणु जी।

रेणु की केशराशि से रश्क

रेणुजी की धनी, काली, घुँघराली नाजों से पली केशराशि से कई को रश्क है और कई को इश्क। मैंने सोचा, चलकर उनका इंटरव्यू लिया जाये, सुन्दरतम केश सज्जा का रहस्य पूछा जाये, ताकि महिला जगत को कुछ लाभ हो सके (लम्बे बालों वाला पुरुषवर्ग तो लाभ उठाएगा ही)।

एक इतवार की सुबह उनके घर जा धमकी- मैं गीता पुष्प शॉ, अपने पतिदेव राबिन शॉ पुष्प के साथ। रेणुजी घरेलू किस्म का जूड़ा बाँधकर बैठे हुए थे। वैसे, कभी कभी रिबन भी बाँधते हैं, या रबर बैंड लगाते हैं। बाल धोने की तैयारी कर ही रहे थे बोले, बड़ा ठण्डा मौसम है। सामान जमा करके छत पर धूप में जाकर बाल धोऊँगा।” हम कोठे पर आ गये। उन्होंने सामान जमाया, “हाँ, तो कैसा इंटरव्यू लेंगी?”

मैंने जरा संकोच से कहा, “जी जरा… जरा… पूछना है।” तभी पड़ोस का लाउडस्पीकर चीख उठा-“छेड़ो न मेरी जुल्फे सब लोग क्या कहेंगे जब गीत खत्म हो गया, तो किसी तरह बोले, “गीता जी, आज तक जाने कितने ही इंटरव्यू दे चुका हूँ लेकिन जुल्फों के सम्बन्ध में ये मेरा पहला इंटरव्यू होगा कहीं लोग कुछ कहेंगे तो नहीं ? ‘खैर, पूछिए ।” और वे बाल धोने लगे। मैंने सवाल शुरू किए और वे जवाब देते चले गए। “आप कितने दिनों में बाल धोते हैं ?”

“सप्ताह में एक बार, इतवार को, क्योंकि तब नल में पानी देर तक आता है। बाल सुखाने की भी फुरसत रहती है।”

“रेणुजी, वैसे तो सभी मर्द जिस साबुन से नहाते हैं, उसी से सिर धो लेते हैं। आप किस साबुन का इस्तेमाल करते हैं।””मैं साबुन से सिर नहीं धोता। वैसे मेरे चेहरे की सुन्दरता का राज है-मार्गो सोप।””अच्छा ! फिर आप बाल किससे धोते हैं ?”

“जब पटना में रहता हूँ, तो शैंपू से, कभी-कभी सैलून में जाकर भी शैंपू करवा लेता हूँ। देहात में रहता हूँ, तो बेसन से बाल धोता हूँ।”

“तेल कौन-सा लगाते हैं ?”

“अरे बाप रे! तेल का नाम मत लीजिए। तेल से तो मुझे एलर्जी है। खाना खाते समय अगर हाथ में भी तेल लग जाता है, तो कई बार साबुन से हाथ धोता हूँ।”

“अच्छा, ये इतने सारे ब्रश और कंधियाँ किसलिए हैं ?”

“बालों में तेल नहीं डालता न, इसलिए वे जल्दी उलझ जाते हैं। जब बाल बनाता हूँ, तो सबसे पहले ब्रश से झाड़ता हूँ, फिर बड़ी कंघी से, फिर मोटी कंघी से और अन्त में फिनिशिंग टच-इस छोटी कंघी से।”

“तो यह बात है। अब मैं समझी कि इतनी देर क्यों लगती है।”

दिनकर जी जब थे, तो नीचे से ही चिल्लाते-“अरे, जल्दी नीचे उतरो, कितनी देर लगाते हो सिंगार-पटार में रेणु।”

उड़े जब-जब जुल्फें तेरी उर्फ इमलियों का झूलना

“मेरे बचपन में कई देवी-देवताओं के नाम पर मनौतियाँ मानी गयी थीं । मनौती पूरी होने पर मुंडन होता है। कई वर्षों से बाल बढ़ते-बढ़ते सिर में जटाओं की भरमार हो गयी थी। किसी तरह जटाजूट को बाँधकर रखा जाता।

“उस समय पाँच-छह वर्ष का था। लोग कहते- ‘ए रिनुआ, हवा चलती है, तो पेड़ में लगी इमलियाँ कैसे झुलती हैं ? जरा दिखाओ तो, लेमनचूस देंगे।’ और लेमनचूस के लालच में मैं सिर नचाकर, जटाएँ हिलाकर दिखाता-“ऐसे !”

घूँघरवाला मेरा, नाजों का पाला मेरा उर्फ पहला मुंडन

“पहली बार दस वर्ष की आयु में मेले में ले जाकर मुंडन करवाया गया। हमारे साथ घर का नाई भी गया। तभी पहली बार नाई के साक्षात दर्शन हुए। बूढ़ा नाई। मुँह से दुर्गन्ध। उसका उस्तरा इतना भोथरा था कि उससे शायद खुरपी का काम भी नहीं लिया जा सकता था। चार बाल काटता था, तो पच्चीस बाल नोचता था। वह पहला मुंडन इतना भयानक लगा, कि तब से नाई के नाम से ही भाग खड़ा होता | बाल बढ़ जाने पर टीचरों से खूब डॉट पड़ती, तब कहीं वर्ष में एक बार मुश्किल से बाल कटाता।

तेरी जुल्फों से जुदाई तो नहीं माँगी थी उर्फ दूसरा मुंडन

“सन् बयालीस के आन्दोलन में मुझे सेल के भीतर रखा गया। जेलखाने के कम्बलों में चीलरें भरी थीं। बदन में चीलर और बालों में जुओं का साम्राज्य छा गया। इतनी जुएँ कि कल्पनातीत। पहली बार अनुभव हुआ था कि जूँ कैसी होती हैं और कान पर रेंगती हैं। तब जितनी जुएँ पकड़ी थीं, सभी कान पर ही पकड़ी थीं ।”जेल से छूटने पर जुओं से छुटकारे का सीधा जवाब-मुंडन करवा लिया ।”

(बाद में जुएँ भले सिसकती रही हों-तेरी जुल्फों से जुदाई तो नहीं माँगी थी, कैद माँगी थी रिहाई तो नहीं माँगी थी।)

सौतन के लम्बे-लम्बे बाल उर्फ ‘एक्सक्यूज मी मैडम’

“एक बार मैं दिल्ली से पटना आ रहा था। ठण्ड की रात थी। नीचे की बर्थ पर रजाई ढाँप-ढाँप कर सो रहा था। सामने की बर्थ पर कोई श्रीमती जी सोई थीं। उनके श्रीमान ऊपर की बर्थ पर। श्रीमान को शायद डायबिटीज का रोग था। रात को मिनट-मिनट पर बत्ती जलाकर कहते-“एक्सक्यूज मी मैडम।” नीचे उतरते और बाथरूम जाते। उनकी देखादेखी ऊपर की बर्थ वाले दूसरे सज्जन भी बार-बार बाथरूम जाने लगे। हर बार बत्ती जलती । फिर “एक्सक्यूज मी मैडम”, कहा जाता। उनकी श्रीमती जी मन-ही-मन कुढ रही थीं, “बड़ी एक्सक्यूज माँगी जा रही है इन लम्बे बालों वाली मैडम से हूँ!” और वे मुँह फेरकर सो गयीं। सुबह हुई, तो ऊपर वाले सज्जन फिर बोले-“एक्सक्यूज मी मैडम, रात आपको बहुत परेशान किया। मैंने जवाब नहीं दिया। मुस्कराता रहा।

“कानपुर स्टेशन पर सभी चाय लेने लगे। मैं भी रजाई फेंककर चाय लेने लपका अब तो डिब्बे के सब लोग भौंचक। वे सज्जन झेंप गये। “अरे ! रात भर हम आपको मैडम समझते रहे।” श्रीमान की श्रीमती जी ने लम्बे बालों वाली सौतन की जगह लम्बे बालों वाले मर्द को देखा तो चैन की साँस ली।”

सजनवा बैरी हो गए हमार उर्फ बालों की खिंचाई

चलते-चलते मैंने रेणुजी से पूछ ही लिया, “यूँ तो आपने बड़े प्यार से अपनी जुल्फों को पाला है | बड़ा प्यार किया है। पर क्या कभी आपको तकलीफ भी हुई है लम्बे बालों से?”

रेणुजी एक आह भरकर बोले, “जी हाँ ! सन् बयालीस में जब सेल में बन्द था, तो पुलिस वाले बड़ी बेरहमी से इन्हीं जुल्फों को पकड़कर खींचते थे और दीवार पर सिर दे मारते थे। बहुत दर्द सहा था, तब इन्हीं जुल्फों के कारण और लम्बे बाल रखने का दुःख हुआ था तभी पहली बार।”

(फणीश्वर नाथ रेणु से जुड़ा यह अंश और तस्वीरें राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित फणीश्वर नाथ रेणु रचनावली से साभार प्रकाशित किया गया है।) 

395 पाठकों ने अब तक पढा
samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

[embedyt] https://www.youtube.com/embed?listType=playlist&list=UU7V4PbrEu9I94AdP4JOd2ug&layout=gallery[/embedyt]
Tags

samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close
Close