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मिथिला, 2025 की ओर…उम्मीदें और सियासी समीकरण : राबड़ी देवी के नेतृत्व में तेजस्वी यादव की रणनीति

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अनिल अनूप की खास रिपोर्ट

2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में राजद (राष्ट्रीय जनता दल) ने अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन मुख्यमंत्री बनने का तेजस्वी यादव का सपना अधूरा रह गया। मिथिलांचल क्षेत्र में पार्टी का खराब प्रदर्शन इस असफलता का प्रमुख कारण था। मिथिला की 49 विधानसभा सीटों में से राजद और उसके गठबंधन को सिर्फ 10 सीटें ही मिल पाईं। यह परिणाम गठबंधन की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा और एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) ने राज्य में अपनी सरकार बना ली।

मिथिलांचल में प्रदर्शन: 2020 के आंकड़े

मिथिलांचल बिहार के सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक क्षेत्रों में से एक है, जिसमें दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सीतामढ़ी और सहरसा जैसे जिले आते हैं। यह क्षेत्र सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से बेहद प्रभावशाली है।

2020 के चुनाव में राजद और महागठबंधन ने यहां कमजोर प्रदर्शन किया:

राजद को सिर्फ 10 सीटें मिलीं।

एनडीए ने क्षेत्र में भारी बढ़त बनाई और यहां अपनी पकड़ मजबूत रखी।

मिथिला में कई क्षेत्रों में राजद के पुराने गढ़ भी इस बार विपक्षी खेमे में चले गए।

मिथिला में मिली हार का असर महागठबंधन के पूरे प्रदर्शन पर पड़ा और तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री पद से चूक गए।

राबड़ी देवी की एंट्री: रणनीति में बदलाव

2025 के चुनाव को देखते हुए तेजस्वी यादव ने मिथिलांचल में पार्टी की कमान अपनी मां और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को सौंप दी है। यह कदम न केवल पार्टी के भीतर महिला नेतृत्व को बढ़ावा देता है, बल्कि क्षेत्र में राबड़ी देवी की सादगी और जुड़ाव को भुनाने की रणनीति का हिस्सा भी है।

राबड़ी देवी का मिथिलांचल में नेतृत्व करना कई कारणों से महत्वपूर्ण है:

1. पारंपरिक जुड़ाव: राबड़ी देवी को पार्टी कार्यकर्ताओं और आम जनता के बीच “अपनी” नेता के रूप में देखा जाता है। उनका सीधा और पारिवारिक अंदाज मिथिला की जनता के साथ संवाद स्थापित करने में मदद कर सकता है।

2. महिला वोट बैंक: मिथिलांचल में महिला मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है। राबड़ी देवी महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बन सकती हैं, जो राजद के लिए फायदेमंद होगा।

3. यादव-मुस्लिम समीकरण: राबड़ी देवी क्षेत्र में पार्टी के पारंपरिक यादव-मुस्लिम समीकरण को मजबूत करने का प्रयास कर रही हैं। साथ ही, गैर-यादव ओबीसी और दलित वोटरों को भी जोड़ने की कोशिशें तेज हुई हैं।

नई रणनीतियां और प्रमुख मुद्दे

राबड़ी देवी की अगुवाई में पार्टी ने मिथिला में जमीनी स्तर पर काम करना शुरू कर दिया है। उनकी रणनीतियां इस बार विशेष रूप से इन मुद्दों पर केंद्रित होंगी:

1. स्थानीय विकास: मिथिलांचल में बुनियादी सुविधाओं की कमी को उजागर करते हुए राजद विकास के मुद्दे पर एनडीए सरकार को घेरने की कोशिश करेगा।

2. बेरोजगारी: युवा मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए रोजगार और पलायन जैसे मुद्दों पर जोर दिया जा रहा है।

3. सांस्कृतिक पहचान: मिथिला की सांस्कृतिक पहचान और मैथिली भाषा के मुद्दे को उठाकर स्थानीय भावनाओं को भुनाने का प्रयास किया जा रहा है।

चुनावी गणित: गठबंधन और संगठन पर फोकस

राबड़ी देवी ने क्षेत्र के लिए विशेष फोकस के तहत पार्टी संगठन में बदलाव किए हैं। बूथ स्तर पर मजबूत संगठन तैयार किया जा रहा है। महागठबंधन में मिथिला के प्रभावशाली नेताओं को साथ लाने की कोशिश की जा रही है।

तेजस्वी यादव ने मिथिला की जिम्मेदारी अपनी मां को सौंपकर यह संकेत दिया है कि पार्टी इस बार मिथिला क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए हरसंभव कोशिश करेगी।

चुनौती और उम्मीदें

मिथिलांचल में बीजेपी और जेडीयू की मजबूत पकड़ को तोड़ना राजद के लिए बड़ी चुनौती है। इसके अलावा, एनडीए सरकार ने इस क्षेत्र में कई विकास परियोजनाएं शुरू की हैं, जिनसे उनकी स्थिति मजबूत हो सकती है।

हालांकि, राबड़ी देवी के नेतृत्व में राजद को उम्मीद है कि उनकी छवि, सांस्कृतिक जुड़ाव और जमीनी स्तर पर काम करने से मिथिला में पार्टी के प्रदर्शन को बेहतर किया जा सकता है।

मिथिलांचल, बिहार का एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्र है, जिसकी विशिष्ट पहचान मैथिली भाषा, साहित्य और परंपराओं से जुड़ी है। यह क्षेत्र विकास, रोजगार, शिक्षा, और सांस्कृतिक संरक्षण से संबंधित कई मांगों को लेकर दशकों से संघर्षरत है। इन मांगों का समाधान केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति और संसाधनों के प्रभावी उपयोग से ही संभव है।

मिथिलांचल की प्रमुख मांगे

मिथिलांचल क्षेत्र में विकास की कमी और प्रशासनिक उपेक्षा के कारण लंबे समय से अलग मिथिला राज्य की मांग उठती रही है। मिथिला राज्य का गठन क्षेत्रीय विकास और सांस्कृतिक संरक्षण के लिए एक मजबूत कदम माना जाता है।

अलग राज्य का गठन एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है, जिसमें केंद्र सरकार और अन्य राजनीतिक दलों की सहमति आवश्यक है। हालांकि, इस कदम से मिथिलांचल को अपने संसाधनों का बेहतर उपयोग करने का अवसर मिल सकता है।

मैथिली भाषा का संरक्षण और प्रचार ; मांग का कारण

मैथिली, जो संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है, को शिक्षा और प्रशासनिक स्तर पर अपेक्षित मान्यता नहीं मिली है। क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण के लिए इसे स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल करने और सरकारी कार्यालयों में उपयोग में लाने की मांग है।

इसे लागू करना व्यावहारिक है, लेकिन इसके लिए राज्य सरकार को ठोस नीतियां बनानी होंगी। शिक्षकों की नियुक्ति और पाठ्यक्रमों का पुनर्गठन आवश्यक होगा।

बाढ़ और जल प्रबंधन की मांग के कारण

कोसी, कमला, और गंडक नदियों के कारण मिथिला क्षेत्र हर साल बाढ़ की चपेट में आता है, जिससे जान-माल का भारी नुकसान होता है। बाढ़ नियंत्रण और जल प्रबंधन के लिए दीर्घकालिक योजना की मांग है।

बाढ़ रोकने के लिए प्रभावी डैम, बैराज, और जल निकासी परियोजनाओं की आवश्यकता है। यह कार्य संभव है, लेकिन इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग की जरूरत होगी। अंतरराष्ट्रीय सहयोग (नेपाल के साथ) भी अनिवार्य है।

औद्योगिक विकास और रोजगार सृजन

मिथिला क्षेत्र में उद्योगों की भारी कमी है, जिसके कारण युवा पलायन करने को मजबूर हैं। विशेष रूप से कृषि आधारित उद्योगों और हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

यह संभव है, लेकिन इसके लिए बुनियादी ढांचे में सुधार, निवेशकों को प्रोत्साहन, और स्थानीय संसाधनों का बेहतर उपयोग करना होगा।

शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार

मिथिलांचल में उच्च शिक्षा के संस्थानों और आधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी है। बेहतर स्कूल, कॉलेज, और अस्पतालों की स्थापना की मांग जोर पकड़ रही है।

इसके लिए राज्य सरकार को प्राथमिकता के साथ नीतियां लागू करनी होंगी। केंद्र सरकार से वित्तीय मदद और निजी क्षेत्र की भागीदारी से इसे साकार किया जा सकता है।

पर्यटन और सांस्कृतिक विकास

मिथिलांचल का समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर पर्यटन को बढ़ावा देने का बड़ा अवसर प्रदान करता है। मधुबनी पेंटिंग, दरभंगा राज, सीता जन्मभूमि जैसे स्थलों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित करने की आवश्यकता है।

यह संभव है, बशर्ते स्थानीय सरकारें पर्यटन के लिए बुनियादी ढांचा विकसित करें और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करें।

कृषि सुधार और सिंचाई सुविधाएं

मिथिलांचल मुख्य रूप से कृषि आधारित क्षेत्र है, लेकिन सिंचाई की सुविधाएं अपर्याप्त हैं। किसानों को समर्थन मूल्य और उन्नत तकनीकों की भी कमी है।

सरकार द्वारा सिंचाई परियोजनाओं और कृषि सब्सिडी के माध्यम से इसे लागू किया जा सकता है। यह रोजगार और उत्पादन दोनों को बढ़ावा देगा।

व्यावहारिकता की चुनौती और संभावनाएं

मिथिलांचल की अधिकांश समस्याएं राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और संसाधनों के अनुचित वितरण के कारण बनी हुई हैं। प्रभावी नेतृत्व और दीर्घकालिक दृष्टि से इनमें सुधार संभव है।

वित्तीय संसाधन

राज्य और केंद्र सरकार को पर्याप्त वित्तीय आवंटन करना होगा। निजी और विदेशी निवेश को भी प्रोत्साहित किया जा सकता है।

सामाजिक जागरूकता

क्षेत्र के लोगों को अपनी मांगों और अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा। सामुदायिक भागीदारी से विकास योजनाओं को सफल बनाया जा सकता है।

संघीय ढांचा

बिहार सरकार और केंद्र सरकार के बीच बेहतर समन्वय और सहयोग से ही अधिकांश मांगों को पूरा किया जा सकता है।

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Author:

हटो व्योम के मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं

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