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November 21, 2024 11:01 pm

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उत्तर प्रदेश की राजनीति में उभरते नए समीकरण: मायावती-अखिलेश की “थैंक्यू पॉलिटिक्स” और जातीय गणित

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सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाल ही में कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं हुई हैं जो 2027 के विधानसभा चुनावों के संभावित राजनीतिक समीकरणों को उजागर करती हैं। ये घटनाएं तब शुरू हुईं जब समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता अखिलेश यादव ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की नेता और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का समर्थन किया। 

हाल में हुए लोकसभा चुनावों में सपा ने अच्छा प्रदर्शन किया, जबकि मायावती की बसपा कोई खास प्रदर्शन नहीं कर सकी। बसपा, जो 2019 के चुनावों में 10 सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही थी, इस बार शून्य पर आ गई। इस स्थिति में, मायावती अब अपने राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करने के लिए नए समीकरण खोजने की कोशिश कर रही हैं। 

बीते दिनों, एक बीजेपी विधायक ने मायावती के खिलाफ बयान दिया, जिसे अखिलेश यादव ने गलत बताया और सोशल मीडिया पर मायावती का समर्थन किया। इसके जवाब में मायावती ने अखिलेश यादव का आभार व्यक्त किया, जिससे यूपी की राजनीति में नई चर्चा शुरू हो गई। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मायावती और अखिलेश यादव के बीच यह ‘थैंक्यू पॉलिटिक्स’ जातीय समीकरणों के फायदे को ध्यान में रखते हुए हो रही है।

वरिष्ठ पत्रकार मनीष मिश्रा के अनुसार, दोनों पार्टियों की विचारधारा अलग है, लेकिन जातीय गणित को साधने के लिए ये दोनों नेता एक-दूसरे का समर्थन कर रहे हैं। मायावती का एक समय में बहुत मजबूत दलित वोट बैंक था, जो अब खिसक चुका है। वहीं, अखिलेश यादव अब उस दलित वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं, जो पिछले दो चुनावों में बीजेपी की ओर खिसक गया था। 

मायावती की स्थिति को लेकर पत्रकारों का मानना है कि वह अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने के लिए कभी बीजेपी के प्रति नरम रुख दिखाती हैं, तो कभी सपा के साथ आने के संकेत देती हैं। मायावती एक समय दलितों की प्रमुख नेता मानी जाती थीं, लेकिन अब चंद्रशेखर आजाद जैसे नेता उनके समकक्ष खड़े हो गए हैं, जो दलितों के नए नेता बन सकते हैं।

जहां तक अखिलेश यादव की बात है, वह चाहते हैं कि मायावती उनके साथ आएं, जिससे वह बीजेपी से खिसके दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में कर सकें। लेकिन अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि मायावती और अखिलेश यादव का गठबंधन होगा या नहीं। फिलहाल, मायावती के साथ न आने से भी अखिलेश को फायदा ही हुआ है।

अंततः, यूपी की राजनीति में नए समीकरण उभरते दिख रहे हैं, और आने वाले विधानसभा चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि ये समीकरण किस दिशा में आगे बढ़ते हैं।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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