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ऋषि मुनियों की तपस्थली में बाबा दुग्धेश्वरनाथ की वैदिक महत्ता और विशेषता आपको चौंका देगी

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मोहन द्विवेदी की प्रस्तुति

बाबा दुग्धेश्वरनाथ को महाकालेश्वर के द्वादश ज्योर्तिलिंगों का उपलिंग कहा जाता है। द्वादश उपलिंगों की स्थापना के बाद उपज्योर्तिलिंगों की स्थापना की गई। इनमें रुद्रपुर के बाबादुग्धेश्वर नाथ की पहली स्थापना मानी जाती है। 11वीं शताब्दी में अष्टकोण में बने इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग की लंबाई धरातल से लगभग 15 फीट नीचे तक है। रुद्रपुर में बाबा दुग्धेश्वर नाथ का उल्लेख एलेक्जेंडर ने गोरखपुर गजेटियर में भी किया है।

‘छोटी काशी’ के नाम से मशहूर उत्तर प्रदेश खे देवरिया जिले के रुद्रपुर स्थित बाबा दूधेश्वर नाथ का शिवलिंग महाकालेश्वर उज्जैन का उप ज्योतिर्लिंग माना जाता है। 

रुद्रपुर कस्बे और मंदिर का इतिहास सैंकड़ों साल पुराना है। यह स्थान दधिची और गर्ग ॠषियों की तपोस्थली भी माना जाता है। बाबा दुग्धेश्वरनाथ अनादि स्वयं भू-चंडलिंग हैं। इस सप्तकोसी इलाके में 11 अन्य शिवलिंग भी हैं। सावन और अधिक मास में यह पूरा क्षेत्र ही शिवमय हो जाता है। गोरखपुर गजेटियर में भी इसका उल्लेख मिलता है और चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपनी यात्रा में इसका वर्णन किया है ।

साथ ही चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपनी यात्रा में इसका उल्लेख किया है। मान्यता है कि इस शिवलिंग के स्पर्श मात्र से ही कष्ट दूर हो जाते हैं। पद्म पुराण में महादेव के बारे में लिखा गया है, ‘महाकालस्य यल्लिंगम दुग्धेशमिति विश्रुतम।’

स्वयंभू शिवलिंग के रूप में है बाबा दूधेश्वर नाथ

देवरिया जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर रुद्रपुर कस्बे को सतासी स्टेट के नाम से जाना जाता है। इस नगर को सतासी स्टेट के राजा वशिष्ठ सेन ने बसाया था। 

नगर के एक किनारे पर देवाधिदेव महादेव बाबा दूधेश्वर नाथ का मंदिर स्थित है। बताया जाता है कि 20 एकड़ के एरिया में स्थित इस मंदिर का निर्माण राजा ने कराया था और वह स्वयं यहां पूजा किया करते थे। 

धर्म ग्रंथों में दो तरह के शिवलिंग (वाणलिंग तथा चंड लिंग) माने गए हैं। बाबा दुग्धेश्वरनाथ अनादि स्वयं भू-चंडलिंग हैं। नीसक पत्थर से बने यहां के शिवलिंग को महाकालेश्वर उज्जैन का उपज्योर्तिलिंग माना जाता है।

दधीचि और गर्ग ऋषि की तपस्थली के रूप में है मान्यता

देवाधिदेव भगवान शिव के नाम से मशहूर पवित्र नगरी रुद्रपुर के समीप स्थित तमाम गांव भगवान शिव के नाम से बसे हैं। रुद्रपुर के आसपास के कई गांव भगवान शिव के नाम से जाने जाते हैं। जैसे- रुद्रपुर, गौरी, बैतालपुर, अधरंगी, धतुरा, बौड़ी गांव। 

सावन और अधिक मास में क्षेत्र शिवमय हो जाता है। भगवान शिव के महिमा से यह क्षेत्र प्रभावित रहा है। भक्त अपनी मनोकामना को लेकर बारह महीने यहां जलाभिषेक करते हैं लेकिन फाल्गुन मास में महाशिवरात्रि के दिन बड़ी संख्या में भक्त जलाभिषेक करने आते हैं।

मंदिर के बारे में एक प्रमाण मिलता है कि ईसा से लगभग 332 वर्ष पूर्व महाराजा दीर्घवाह के पुत्र व्रजभान जिन्हें ब्रह्मा तथा वशिष्ठ सेन कहा गया, अपने कुछ सैनिकों के साथ अयोध्या से पूर्व की ओर चल पड़े और रुद्रपुर में डेरा डाल दिए। उस समय यह क्षेत्र जंगलों से आच्छादित था। 

जंगली जानवरों के भय से व्रजभान तथा उनके सैनिक मचान बनाकर रहते थे। चार सैनिक पूरी रात नीचे पहरा देते थे। 

एक दिन पहरा दे रहे एक सैनिक ने देखा कि एक गाय ब्रह्म बेला में एक स्थान पर चुपचाप खड़ी है। गाय के थन से अपने आप दूध गिर रहा है। कुछ देर बाद गाय चली गई। सैनिक ने सुबह घटना का जिक्र अपने साथियों से किया, लेकिन किसी को उसकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। 

दूसरी रात भी यही घटना घटी तो सैनिक ने अपने साथियों को जगाया। सभी ने यह दृश्य देखा और उस स्थान पर गए। दूध सनी मिट्टी नीचे तक गई थी। करीब दस फीट नीचे देखा तो वहां एक शिवलिंग मिला, जिससे ज्योति निकल रही थी। 

राजा व्रजभान को यह बात पता चला और उन्होंने वहां खुदाई शुरू करा दी। ज्यों-ज्यों खुदाई होती गई शिवलिंग नीचे जाता रहा। अंत में खुदाई बंद कर दी गई। 

राजा ने वहां से पेड़ों को कटवाकर उस स्थान को साफ करवाया और वेदपाठी ब्राह्मणों द्वारा उस शिवलिंग का रुद्राभिषेक कराया, जिसका नाम दुग्धेश्वरनाथ रखा गया। व्रजभान ने वहां अपना किला बनवाया और अपना राज्य भी स्थापित किया।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह स्थान दधिचि तथा गर्ग मुनि की तपोस्थली रहा है। क्षेत्र में भगवान शिव के नाम पर रुद्रपुर, गौरी, धतूरा, बौड़ी, औपमची, शिवपुर, हरगुपुर, अधरंगी आदि गांव बसे हैं।

धर्मग्रंथों में दो प्रकार के शिवलिंग माने गए हैं। वाणलिंग तथा चंडलिंग। बाबा दुग्धेश्वरनाथ अनादि स्वयंभू चंड शिवलिंग हैं। इसीलिए यहां की सारी व्यवस्था गोसाई जी लोगों के जिम्मे है। रुद्रपुर भगवान शिव के सप्तकोसी में करीब 11 अन्य शिवलिंग भी हैं।

बाबा दुग्धेश्वरनाथ महादेव को महाकालेश्वर के द्वादश ज्योर्तिलिंगों का उपलिंग माना गया है। बौद्ध धर्म के अवसान बेला में जगतगुरु शंकराचार्य द्वारा द्वादश ज्योर्तिलिंगों की स्थापना के बाद उप ज्योर्तिलिंगों की स्थापना की गई, जिसमें रुद्रपुर बाबा दुग्धेश्वर नाथ की प्रथम स्थापना मानी जाती है। इस संबंध में पदम पुराण में उल्लेखित है : 

खड्ग धारद दक्षिण तस्तीर्थ परमपावनम दुग्धेश्वरमिति ख्याति सर्वपाप: प्राणाशकम यत्र स्नान च, दानम च जप: पूजा तपस्या सर्वे मक्षयंता यंति दुग्धतीर्थ प्रभावत:।

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Author:

Kamlesh Kumar Chaudhary

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