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24 December 2024 9:06 am

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बा-कमाल दो लडकों की जोड़ी…. ऊपर से मोहब्बत का पैगाम लेकिन अंदरूनी कडवाहट के बीच की राजनीति

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में सात साल बाद एक बार फिर वह संयोग दिखा, जब यूपी के दो लड़के यानी अखिलेश यादव और राहुल गांधी एक साथ दिखाई दिए। खुली जीप पर सवार दोनों नेताओं ने कांग्रेस- समाजवादी पार्टी के गठबंधन को जमीन पर उतारने की कोशिश की। संदेश देने का प्रयास किया गया कि साथ आ गए हैं, निचले स्तर के लोग भी साथ आ जाएं। 

हालांकि, इसी दौरान आगरा के सीनियर कांग्रेसी नेता और प्रदेश उपाध्यक्ष उपेंद्र सिंह ने पार्टी छोड़ने का ऐलान किया। भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली। इस प्रकार दो लड़कों की जोड़ी के साथ आने के बाद निचले स्तर पर दोनों के बीच का मनमुटाव सामने आने लगा है। 

दोनों दलों के नेताओं के ने भले ही ऊपर में आगरा से मोहब्बत का पैगाम दिया, निचले स्तर पर बढ़ी कड़वाहट को खत्म करना मुश्किल साबित होगा। वहीं, भाजपा ने पहली बार 2017 की बाजी जीती थी। इस बार की चुनौती अगल होने वाली है।

2017 में कांग्रेस- सपा गठबंधन हो या 2019 में सपा- बसपा गठबंधन, दोनों ही मौकों पर अखिलेश को इस प्रकार की स्थिति का सामना करना पड़ा है। 

2017 में जब दोनों नेता साथ आए थे तो यूपी में अखिलेश को सरकार बचानी थी। 2024 में जब साथ आए हैं तो यूपी में राजनीति जमीन बचानी है। 

भाजपा ने पहले ही मिशन 80 का संकल्प लेकर दोनों दलों की राजनीतिक जमीन पर कब्जे का ऐलान कर दिया है। ऐसे में अब दोनों नेताओं की चुनौती जमीनी स्तर पर गठबंधन ले जाकर भीड़ को वोट में कंवर्ट करने की है। साथ ही, अखिलेश यादव और राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती मायावती की आने वाली है। 

बहुजन समाज पार्टी विपक्ष में रहकर तीसरा कोण हमेशा बनाएगी। यह पार्टी अलग चुनावी मैदान में उपस्थिति दर्ज कराकर विपक्ष के वोट शेयर में बड़ी सेंधमारी की ताकत रखती है।

यूपी में जारी है राजनीतिक उलटफेर

लोकसभा चुनाव 2024 की तारीखों का एलान होना अभी बाकी है। इससे पहले बड़ा राजनीतिक उलटफेर देखने को मिल रहा है। किसी दल का मौजूदा सांसद पार्टी छोड़कर सत्ताधारी दल के साथ जा रहा है तो कही दो दिल फिर से मिल रहे हैं। कुछ ऐसा ही नजारा रविवार को दिखाई दिया है। 

अम्बेडकरनगर से बीएसपी सांसद रितेश पांडेय ने बीजेपी का दामन थाम लिया है। वहीं 2017 विधानसभा चुनाव में यूपी को ये साथ पसंद है के नारे के साथ आए यूपी के दो लड़के (अखिलेश-राहुल) एक बार फिर साथ आ गए हैं। ताज नगरी आगरा इस साथ का गवाह बना। दोनों नेता मिले और खूब बड़ा संदेश देने की कोशिश भी की।

भाजपा ने बोला हमला

यूपी के दो लड़कों के साथ आने पर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने हमला बोल दिया है। भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा कि यूपी की जनता ने इस प्रयोग को पहले भी देखा है। यह भ्रष्टाचार और अपराध का साथ है। यह अपनी अपनी विरासत को बचाने का प्रयास है। यह साथ अपनी अपनी संपत्तियां, जिसे गरीबों को लूट कर अर्जित किया गया है उसे बचाने का प्रयास है। जनता इन सारी बातों को समझ रही है। इसलिए काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ेगी। 

भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि अखिलेश राहुल के साथ आ जाने से बीजेपी की सीटों पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। क्योंकि इनका गठबंधन जमीनी स्तर पर नहीं हो पता है। उनके कार्यकर्ता ट्रांसफर नहीं हो पाते हैं।

राकेश त्रिपाठी ने कहा कि दोनों दल बहुत ही अहंकारी है। दोनों दालों के नेताओं ने जिस तरह से मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाषा का प्रयोग किया है, उसकी टीस कार्यकर्ताओं के भीतर है। ऊपर नेता मिलने का स्वांग रच लेते है लेकिन नीचे कार्यकर्ता नहीं मिल पाते हैं। इसलिए जनता के मिलने का सवाल ही नहीं उठता है।

2017 के नारे आज भी ताजा

दरअसल, यह कोई पहला मौका नहीं है जब अखिलेश और राहुल एक साथ आए हैं। इससे पहले दोनों ही दलों के नेता 2017 विधानसभा चुनाव में ‘यूपी को ये साथ पसंद है, साइकिल और ये हाथ पसंद है, तरक्की की ये बात पसंद है।’ के नारे के साथ एक साथ आए थे। राहुल के साथ आने पर अखिलेश यादव ने कहा था कि हम और राहुल साइकिल के दो पहिए हैं, राहुल और मैं देश को खुशहाली और तरक्की के रास्ते पर ले जाएंगे और प्रदेश को भी। जबकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस गठबंधन की तुलना गंगा-यमुना के मिलन से की थी। लेकिन फिर भी कोई खास कमाल नहीं दिखा पाए थे। हाल ये हुआ कि उस समय की सत्ताधारी समाजवादी पार्टी सत्ता बेदखल हो गई थी।

2012 में बहुमत के साथ सरकार बनाने वाली समाजवादी पार्टी 2017 में सिर्फ 47 सीटों पर ही चुनाव जीत पाई थी। जबकि कांग्रेस को 7 सीट पर संतोष करना पड़ा था। इस चुनाव में राहुल-अखिलेश ने रोड शो करके केंद्र की मोदी सरकार पर जमकर हमला बोला था। वहीं, आगरा में अखिलेश यादव और राहुल गांधी के एक बार फिर से साथ आने पर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेताओं का जोश हाई है।

यूपी कांग्रेस का बड़ा दावा

यूपी कांग्रेस के प्रभारी अविनाश पांडेय ने कहा कि I.N.D.I.A. गठबंधन एक मजबूत विपक्षी ताकत के रूप में देश में उभर रहा है। विभिन्न राज्यों में गठबंधन और सीट बंटवारा पूरा होने के साथ यह भी स्पष्ट होता जा रहा है कि भाजपा के खिलाफ अधिकतर राज्यों में विपक्ष का एक ही उम्मीदवार होगा। यूपी कांग्रेस के प्रभारी ने दावा किया कि इंडिया अलायन्स देश के 60 फीसदी वोट की ताकत रखता है।

यूपी में चुनौती है अलग

अखिलेश और राहुल के साथ आने के बाद भी 2024 लोकसभा चुनाव में यूपी में दोनों दलों के सामने चुनौती बड़ी है। लोकसभा चुनाव 2014 के बाद से अब तक जितने भी लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव हुए हैं, उसमें भाजपा का प्रभाव बढ़ा है। यूपी में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की स्थिति ठीक नहीं दिख रही है। 

यूपी से कांग्रेस लोकसभा में एक सीट पर सिमट चुकी है। 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अपनी अमेठी सीट भी बीजेपी के हाथों हार चुकी है। बीजेपी प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को 50 हजार वोटों के अंतर से चुनाव हराया था। वहीं, विधानसभा में कांग्रेस के सिर्फ दो विधायक है। यूपी विधान परिषद में कांग्रेस का कोई भी सदस्य नहीं है।

सपा की स्थिति है बेहतर, चुनौती समान

कांग्रेस की तुलना में समाजवादी पार्टी मजबूत स्थिति में है। मौजूदा दौर में समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी की भूमिका में है। 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 5 सीटें जीती थी। 

2019 लोकसभा चुनाव में सपा ने बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में सपा 5 और बहुजन समाज पार्टी ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की। 2017 विधानसभा चुनाव में सपा ने 47 सीटें जीती थी। हालांकि, 2022 विधानसभा चुनाव में यह संख्या 111 पहुंच गया है। लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस के लिए रायबरेली सीट को बचाना और अमेठी को बीजेपी के मुंह से छीन कर लाना कड़ी चुनौती होगी।

समाजवादी पार्टी के लिए अपनी जीती हुई सीटों को बचाने के साथ ही बसपा और बीजेपी की जीत वाली सीटों को जीतना एक बड़ी चुनौती होगी। इसके साथ ही, आगामी विधानसभा चुनाव तक गठबंधन को बरकरार रखना भी सपा और कांग्रेस के लिए एक कड़ी चुनौती ही है। 

कांग्रेस की तमाम कोशिशों के बाद भी विपक्षी गठबंधन मायावती को नहीं साध सकी। ऐसे में भले राहुल- अखिलेश दो ध्रुवीय चुनाव का दम भर रहे हों। बहुजन समाज पार्टी फर्क पैदा कर सकती है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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