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आज का मुद्दा

प्रभु राम के प्राण-प्रतिष्ठा पर चिल्ल-पों करने वाले अपनी गिरेबाँ में झांकते क्यों नहीं

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अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

अयोध्या में प्रभु राम का प्राण-प्रतिष्ठा समारोह विशुद्ध रूप से ‘धार्मिक’ है। राम मंदिर से करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी है, लेकिन इस समारोह से भाजपा को ‘राजनीतिक लाभ’ होना निश्चित है। धार्मिक और राजनीतिक के अंतर को समझना अनिवार्य है। एक सांस्कृतिक, आध्यात्मिक आयोजन को ‘राजनीतिक’ करार देना अपरिपक्वता है। महज कोसते रहने से कांग्रेस को कुछ भी हासिल नहीं होगा। महात्मा गांधी ने ‘राम राज्य’, ‘हिंद स्वराज’ को व्यापक स्तर पर परिभाषित किया था, लेकिन वह भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने के खिलाफ थे। उनके दर्शन, उनकी आस्था और उनके राष्ट्रवाद को भारत ने गहराई से समझा और स्वीकार किया, नतीजतन वह ‘महात्मा’ बन पाए। कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद राहुल गांधी को यह आत्मसात करते हुए अयोध्या पर अपने विचार देने चाहिए। कांग्रेस की राजनीति और धार्मिकता को पुन: परिभाषित करना चाहिए। भाजपा की तरह बनना अथवा भाजपा के राष्ट्रीय, आस्थामयी मुद्दे की सपाट आलोचना करना भाजपा को ही सशक्त करना होगा। राहुल गांधी ने इस बार धर्म को जिस तरह परिभाषित किया है और राम मंदिर को आरएसएस-भाजपा का ‘राजनीतिक कार्यक्रम’ करार दिया है, उसने कांग्रेस को ही उघाड़ कर रख दिया है। शायद राहुल को जानकारी नहीं होगी अथवा उनके सलाहकार भी अनाड़ी होंगे कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अपनी हत्या से कुछ दिन पहले कहा था कि यदि कोई बाबरी मस्जिद को छूने की कोशिश करेगा, तो पहले उसे उन्हें मारना होगा। यह भी महत्त्वपूर्ण प्रसंग है कि राजीव गांधी ने 1989 में कांग्रेस का चुनाव-प्रचार फैजाबाद (तब अयोध्या का नाम) से शुरू किया था। कांग्रेस अध्यक्ष रहीं सोनिया गांधी ने 1998 से 2004 के बीच कई बार बयान दिए थे कि बाबरी मस्जिद का विध्वंस नहीं होना चाहिए था। यदि गांधी परिवार का कोई सदस्य सक्रिय राजनीति में होता, तो मस्जिद को ढहाने नहीं देता।

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सोनिया गांधी ने यह भी कहा कि जब भी बाबरी मस्जिद की याद आती है, तो आंखों में आंसू आ जाते हैं। बहरहाल अब मस्जिद बनाम मंदिर के ऐसे बयान बेमानी हैं, क्योंकि संविधान पीठ के निर्णय के बाद भव्य राम मंदिर बन रहा है, लेकिन राहुल गांधी ने जिस तरह धर्म की व्याख्या की है और प्रभु राम की प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा को महज एक राजनीतिक कार्यक्रम करार दिया है, वह उनका दोगलापन है। इसका भी एक तार्किक आधार है। राहुल गांधी बीते दिनों जब केदारनाथ धाम की यात्रा पर गए थे, तो उन्होंने ऐसा वस्त्र धारण किया था, जिस पर ओउम लिखा हुआ था। राहुल गांधी गुजरात चुनाव के दौरान 27 मंदिरों में गए, पूजा-पाठ किए, रुद्राक्ष धारण किए, मस्तक पर चंदन और अन्य लेप लगाए, तो उसे क्या कहेंगे? वह धर्म था अथवा धर्म के जरिए राजनीति करने का व्यवहार था! मध्यप्रदेश चुनाव के दौरान वह कमलनाथ के साथ एक मंदिर से बाहर आए थे, तो पूरी तरह धार्मिक लिबास और श्रृंगार में थे। ऐसे अवसरों पर उनका धर्म राजनीति से अलग क्यों नहीं रह पाता? राहुल गांधी को अपने कथन और व्यवहार में फर्क नहीं करना चाहिए, क्योंकि जनता उसी के आधार पर नेता और पार्टी की राजनीति को आंकती है। राम मंदिर को लेकर बहुत लंबा आंदोलन चला है और संघर्ष किया गया है। उसमें आरएसएस, विहिप और भाजपा के नेता और कार्यकर्ता ही शामिल थे। असंख्य लोगों ने बलिदान भी दिए।

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चूंकि अब संविधान पीठ के निर्णय से राम मंदिर बनाया जा रहा है, तो इस पर राजनीति करने से राहुल क्या हासिल करेंगे? उनके माता-पिता भी मस्जिद की चिंता करते रहे हैं, लेकिन जिन लुटेरों ने सनातन संस्कृति को नुकसान पहुंचाया और हजारों मंदिर, पूजास्थल ध्वस्त किए गए, उनकी चिंता कौन करेगा? यदि कांग्रेस राम मंदिर का सम्मान नहीं करना चाहती, तो फिर संघ परिवार को कोसने के मायने क्या हैं? क्या उससे मुस्लिम वोट बैंक पुख्ता होगा? महात्मा गांधी जैसे कांग्रेस के आदिपुरुष की राजनीति भी ऐसी नहीं थी। यह ऐसा समारोह है, जिसमें 50 से अधिक देशों के प्रतिनिधि शामिल होंगे, हालांकि वे हिंदू राष्ट्र नहीं हैं।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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