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रायपुर

‘कमल’ की डंडी तोडकर ‘हाथ’ का थामा था दामन…बदलते हालत में हाथ का छूटा साथ…तो हाशिये पर आए नंदकुमार साय

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रघु यादव मस्तूरी की रिपोर्ट

रायपुर: सियासत में समय, काल, परिस्थितियां कैसे बदल जाती हैं, इसका जीता-जागता चेहरा हैं नंदकुमार साय। जी हां, नंदकुमार साय, जिन्होंने अप्रैल महीने की आखिरी तारीख को जब ‘कमल’ की डंडी तोड़कर कांग्रेस का ‘हाथ’ थामा था, तो कहा था कि ‘मैं अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे लोगों के साथ रहा हूं। अटल-आडवाणी के दौर की जो बीजेपी थी, वो पार्टी अब उस रूप में नहीं है। परिस्थितियां बदल चुकी हैं। लेकिन ये परिस्थितियां कितनी बदल चुकी हैं, तब तो समझ नहीं आया था, लेकिन अब आठ महीने बाद खुद नंदकुमार साय को भी बहुत अच्छे से समझ आ गया है।

बीजेपी तब नंदकुमार साय को मनाने की कोशिश करती, इससे पहले ही उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उपस्थिति में धूम-धड़ाके से कांग्रेस ज्वाइन कर ली थी। कांग्रेस ने उन्हें छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम का अध्यक्ष बनाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया।

दरअसल, जब नंदकुमार साय ने कांग्रेस का हाथ थामा, तब कांग्रेस धर्मांतरण, सिलगेल में कैंप को लेकर चल रहे आंदोलन और हसदेव अरण्य आदिवासियों से जुड़े संवेदनशील मामले में बैकफुट पर थी। उसे 32 फीसदी आदिवासी आबादी वाले छत्तीसगढ़ विधानसभा में 90 में से 29 आदिवासी सीटों की फिक्र हो रही थी। लिहाजा चुनाव से ठीक पहले नंदकुमार साय के लिए उसने रेड कारपेट बिछा दी। नंदकुमार साय का चेहरा हर बड़े कार्यक्रम और मंच में कांग्रेस के दिग्गज चेहरों के बीच दिखने लगा था। लेकिन बात तब बिगड़ गई, जब विधानसभा की टिकट मांग रहे नंदकुमार साय को कांग्रेस ने पूरे प्रदेश में कहीं भी टिकट नहीं दी।

विष्णुदेव साय के खिलाफ लड़ना चाहते थे चुनाव

कांग्रेस का दामन थामने के बाद नंदकुमार साय कुनकुरी विधानसभा से चुनाव लड़ना चाहते थे। कुनकुरी विधानसभा से ही विष्णुदेव साय विधायक चुनकर आए हैं और प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए हैं। अगर कांग्रेस उन्हें टिकट दे देती, तो वे विष्णुदेव साय के खिलाफ मैदान में होते। लेकिन तब की परिस्थितियां बदल गईं, जिसकी वजह से आज की परिस्थितियां भी बदल गईं।

क्या फिर बदल गईं परिस्थितियां?

कांग्रेस की चौखट छोड़ने से पहले नंदकुमार साय ने बीजेपी की दहलीज पर भी दस्तक दी। दरअसल, कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने से ठीक पहले नंदकुमार साय ने नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से मुलाकात की। हालांकि दोनों के बीच मुलाकात के दौरान बातें क्या हुईं, इसका खुलासा नहीं हो रहा है। लेकिन इस्तीफा आने के बाद सियासी गलियारों में फिर से ये बातें होने लगी हैं कि क्या नंदकुमार साय के लिए फिर से परिस्थितियां बदल गई हैं?

ऐसे हाशिये पर गए साय

किसान परिवार में 1 जनवरी 1946 को जन्मे नंदकुमार साय 1973 में नायब तहसीलदार के पद पर चयनित हुए लेकिन नौकरी पर नहीं गए। 1977 में पहली बार अविभाजित मध्य प्रदेश की विधानसभा के लिए चुने गए नंदकुमार साय तीन बार विधायक और तीन बार सांसद रहे हैं। इसके अलावा पार्टी ने उन्हें दो बार राज्यसभा सांसद भी बनाया। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद वे विधानसभा में पहले विपक्ष के नेता बने।

अविभाजित मध्यप्रदेश के साथ छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके नंदकुमार साय को लगता था कि उनके अलावा कोई और आदिवासियों का झंडाबरदार नहीं। लेकिन दौर बदलता गया और अब पार्टी के भीतर विष्णुदेव साय, रामविचार नेताम, केदार कश्यप, रेणुका सिंह, लता उसेंडी जैसी शख्सियतें बीजेपी की सियासत के चेहरे बनते गए। 2003 में राज्य में हुए पहले विधानसभा चुनाव में नंदकुमार साय बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे। लेकिन पार्टी ने उन्हें अजीत जोगी के खिलाफ मरवाही से टिकट देकर मैदान में उतारा और हारकर वे रेस से बाहर हो गए।

मुख्यमंत्री तो रमन सिंह बन गए, लेकिन सीएम न बन पाने की उनकी टीस बीजेपी में रहते हुए भी कई बार उजागर होती रही। कई बार उन्होंने आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग उठाई और इसी वजह से दिग्गजों की आंख में चुभते भी रहे। लोकसभा की टिकट कटने, फिर राज्यसभा में रिपीट नहीं होने और बीजेपी कोर ग्रुप से बाहर होने के बाद उन्होंने पार्टी के खिलाफ कई बार बयानबाजी की। हालांकि मोदी सरकार में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष बनाकर केंद्रीय कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया।

40 साल से नहीं खाया नमक

नंदकुमार साय ने करीब 40 साल से नमक नहीं चखा है। दरअसल, आदिवासी समाज के लोगों में शराब की बुरी लत छुड़ाने के लिए एक बार उन्होंने हजारों किलोमीटर की पदयात्रा की। इसी दौरान डुमरमुड़ा गांव में एक आदिवासी ने उनसे कहा कि उनके लिए तो शराब वैसे ही है, जैसे खाने में नमक। क्या वे नमक खाना छोड़ देंगे? साय ने उसी दिन प्रण लिया और तब से आज तक उनके खाने में नमक नहीं होता।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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