ट्विंकल आपचे की खास रिपोर्ट
बड़े पर्दे पर सिर्फ फिल्मी सितारे दिखते हैं, एक दुनिया उस पर्दे के पीछे भी है। शोले तो जरूर देखी होगी आपने। वो सीन याद है? जब बसंती डाकुओं से बचने के लिए भाग कर तांगे पर चढ़ती है। बसंती यानी हेमा मालिनी…! नहीं, रेशमा पठान। जी हां, वो सीन हेमाजी ने नहीं, रेशमा ने किया था, जो हेमा की बॉडी डबल थीं।
रेशमा बॉलीवुड की पहली स्टंट वुमन हैं। पहले लड़के ही हीरो और हीरोइन दोनों के बॉडी डबल का काम करते थे, लेकिन रेशमा ने पहली बार फिल्मी पर्दे पर किसी एक्ट्रेस के लिए बॉडी डबल का काम कर दुनिया को ये दिखाया कि औरतें भी भारी-भरकम एक्शन सीन कर सकती हैं। इनकी मजबूरी और हौंसले को इस बात से आंका जा सकता है कि CID फिल्म के एक सीन के लिए इन्होंने पहली मंजिल से छलांग लगा दी थी। वो भी तब जब ये 5 महीने की प्रेग्नेंट थीं। फिल्म में इस सीन में एक्ट्रेस अमृता सिंह को दिखाया गया था।
दिलचस्प बात ये है कि खुद रेशमा का चेहरा कभी बड़े पर्दे पर नहीं दिखा, लेकिन उनकी जिंदगी पर एक फिल्म बन चुकी है। आज हम उन्हीं रेशमा पठान की कहानी, उनका स्ट्रगल और उनका पूरा फिल्मी सफर उन्हीं की जुबानी सुनाते हैं।
दुकानों से चावल चुराकर घर-घर बेचती थी
हम मां-बाप और 5 भाई-बहन थे। मेरा बचपन मोहम्मद अली रोड के पास पाइधुनी में बीता। मेरी मां हाउसवाइफ थीं जो बुरका पहनती थीं। मेरे पिता फाउंटेन पेन बेचते थे और रिपेयर करते थे। पोर्ट में हमारे दादाजी की जगह थी। फैमिली डिस्प्यूट के कारण वो जगह चली गई। फिर कुछ ऐसा हुआ कि हमारे हालात बिगड़ गए।
हम रास्ते में रहने लगे, घर भी चला गया। इसी तरह हमारा बचपन तकलीफों में बीता। हम लोग अलग-अलग जगह से अपने कपड़ों में चावल चुराकर लाते थे। कभी कपड़े में तो कभी जैकेट में छिपाकर लाते और उसे ब्लैक में बेचते थे। इसी से घर में थोड़े बहुत पैसे आते और हम भाई-बहनों का पेट पलता।
चावल चुराने पर पुलिस वाले उठाकर ले जाते थे
हमारी मां भी चावल चुराने के लिए बुरका पहनकर साथ चलती थीं। एक बार हमें पुलिस ने भी पकड़ लिया था, चावल चुराते हुए। दो दिन तक पुलिस स्टेशन में मां को बैठाकर रखा और मैं भी उनके साथ रही। मैं मां के छूटने का इंतजार करती थी।
पुलिस ऑफिसर ने देखा कि ये लड़की ना खा रही है ना पी रही है। वो आकर बोले कि तुम्हें भूख नहीं लगती क्या। तो मैंने जवाब दिया, जो घर में पकाती है तुमने उसे ही अंदर कर दिया है। ये सुनकर उन्होंने मेरी मां को छोड़ दिया और कहा कि अब ये धंधा नहीं करना। मैंने जवाब दिया कि कमाएंगे नहीं तो खाएंगे क्या। ये सुनकर भी उन्होंने कुछ नहीं कहा।
एक स्टंट डायरेक्टर की नजर पड़ते ही बदल गई किस्मत
एक बार अजीम भाई (स्टंट डायरेक्टर अजीम शेख) ने मुझे देखा, जो एक डायरेक्टर थे। मैं उस समय स्कूटर के ऊपर से तो कभी दीवार से कूद रही थी। मैंने जूते नहीं पहने थे। ये देखकर वो बहुत खुश हुए। वो समझ गए कि लड़की में गट्स है। उस जमाने में स्टंट करने वाली कोई लड़की थी ही नहीं। लड़के ही लड़कियों के कपड़े पहनकर स्टंट करते थे। उन्होंने सोचा कि ये लड़की सड़कों पर इतनी मेहनत कर रही है, तो इंडस्ट्री में कितना अच्छा करेगी।
फिल्म का ऑफर मिला तो पिताजी से पड़ी खूब डांट
अजीम जी ऑफर लेकर मेरे पिता जी से मिले, लेकिन पिताजी ने इनकार कर दिया। वो सोचते थे कि अच्छे खानदान की लड़कियां फिल्म लाइन में नहीं जाती हैं। पहले जमाने में यही माना जाता था। पिताजी ने मना कर दिया। वो बीमार रहते थे और चल-फिर भी नहीं पाते थे, घर में पैसों की जरूरत थी।
मां के साथ सेट पर गई तो पिता को लग गई खबर
मैंने अपनी मां को समझाया कि हमें सेट पर जाकर एक बार देखना चाहिए। पापा से झूठ बोलकर निकल जाएंगे। भले ही बाद में काम ना करें, लेकिन एक बार जरूर देखना चाहिए। जब हम स्टूडियो पहुंचे तो शूटिंग चल रही थी। हम फेमस स्टूडियो गए तो वहां मोहल्ले के एक टैक्सी वाले ने हमें देख लिया। उसने पिताजी को बता दिया कि तुम्हारी बेटी और बीवी को मैंने स्टूडियो के बाहर देखा। पिता घर में बहुत गुस्सा हुए।
अजीम जी फाइट डायरेक्टर थे। वैसे तो मुझे हथकड़ी फिल्म के सलेक्शन के लिए बुलाया गया था, उसमें आशा जी मां और बेटी के डबल रोल में थीं। मेरा फिगर उनसे बहुत मिलता था तो मुझे उनका बॉडी डबल बनना था। एक और फिल्म की शूटिंग वहां चल रही थी, जिसके डायरेक्टर रवि खन्ना थे। उसमें हीरोइन का बॉडी डबल बना लड़का 12 शॉट में ओके शॉट नहीं दे पाया।
पहला शॉट दिया तो कई मिनटों तक तालियों से गूंजता रहा सेट
अजीम अंकल, डायरेक्टर के पास गए और कहा कि ये लड़की ये सीन कर लेगी। मैंने कभी कैमरा फेस नहीं किया था। कभी वैसे कपड़े नहीं पहने। डायरेक्टर ने कहा- ये लड़की कैसे कर पाएगी, लेकिन अजीम अंकल ने कहा कर लेगी। उन्होंने मुझसे पूछा तो मैंने बिना सोचे हां कर दी।
मुझे हेयरड्रेसर के पास भेजा गया। उसने मेरे बाल बनाए और तैयार कर दिया। उन्होंने मुझे ड्रेस दी और दस्ताने जैसी कोई चीज दी। मैं उसे हाथ में पहन रही थी तो उन्होंने कहा- नहीं इसे पैरों में पहनते हैं। कपड़े बदलने के लिए उन्होंने कहा पर्दे के पीछे जाकर बदल लो। मैंने कहा ये परदा हिल रहा है यहां कैसे बदलूंगी। जैसे ही मैं तैयार होकर आई तो लोग देखकर हैरान हो गए कि ये कितनी अच्छी लग रही है। मैंने देखा था कि लड़का क्या कर रहा था, लेकिन मैं घबराई हुई थी।
मैंने कुरान की आयत पढ़ी और जैसे ही एक्शन हुआ तो मैंने शॉट दिया। सब ताली बजाने लगे। मुझे नहीं पता था कि कट होने के बाद रुकना होता है, मैं उसी जगह पड़ी रही। सब बोलने लगे कि क्या हो गया लड़की को। सब आवाज देने लगे, मैंने पूछा शॉट हो गया तो सबने बताया कि वो तो बहुत पहले हो गया। सबने बहुत तालियां बजाईं। मुझे लगा सब मजाक तो नहीं उड़ा रहे हैं। ये दुनिया हमारी दुनिया से बहुत अलग थी तो अजीब लग रहा था।
सिर्फ एक शॉट के लिए मिले 200 रुपए
पहला शॉट देते ही मुझे तुरंत 175 रुपए मिले और 35 रुपए अलग से आने-जाने के मिले। 1968 के जमाने में जब हमारे हाथ में इतने पैसे आए तो आंखें खुली रह गईं। हमने सोचा कि सिर्फ एक शॉट के 200 रुपए।
अनजाने में पहला एग्रीमेंट साइन कर फंसी रेशमा
शूटिंग खत्म होने के बाद मुझे ऑफिस ले जाया गया। मुझे नहीं पता था कि वहां पर क्या होता है, कॉन्ट्रैक्ट क्या होता है। उन्होंने कहा- 3 हजार का एग्रीमेंट करते हैं। हमने एग्रीमेंट कर लिया। मैंने गरम मसाला फिल्म का 4 महीने का कॉन्ट्रैक्ट साइन किया। शूटिंग रुकती गई, मैं सेट पर बैठी रहती थी और काम बंद होता गया और फिल्म 2 साल में बनी।
इस बीच मैं दूसरी फिल्मों में काम नहीं कर सकती थी। इस दौरान मैंने अरुणा ईरानी के लिए भी बॉडी डबल का काम किया। काम करते हुए मैंने इंडस्ट्री को समझा तो पता चला कि 3 हजार तो काफी कम है। मेरा फायदा उठाया गया है। लिहाजा मैंने तय किया कि अब मैं एग्रीमेंट नहीं करूंगी।
भारत की पहली स्टंट आर्टिस्ट
उस समय जूनियर आर्टिस्ट का एक पैरामीटर होता था। मॉडर्न ड्रेस पहनने वाले ए-क्लास, फिर छोटे काम करने वाले बी-क्लास और बहुत बुरे आर्टिस्ट सी-क्लास। क्लास के मुताबिक आर्टिस्ट को 26 या 19 रुपए दिन के मिलते थे। कई बार तो ऐसा भी हुआ कि मेरे काम के मुझे 175 रुपए मिले, लेकिन सप्लायर ने मुझ तक सिर्फ 90 रुपए पहुंचाए। मैं जब अपना रजिस्ट्रेशन करवाने गई तो उन लोगों ने कहा- लड़कियों का बतौर स्टंट आर्टिस्ट रजिस्ट्रेशन नहीं होता है।
किस्सा…जब बेइज्जती होने पर रेशमा ने कर दिया काम करने से इनकार
एक दिन अजीम अंकल ने मुझे रात को कॉल करके कहा कि अगले दिन तुम्हें लंबे काम के लिए ऋषिकेश जाना है। एयरपोर्ट पहुंच जाना, वहां लड़का तुम्हें टिकट देगा। मुझे एयरपोर्ट का कोई अंदाजा नहीं था। जब मैं वहां पहुंची तो उन्होंने अनाउंसमेंट करवाई और मुझे ढूंढा।
लास्ट मोमेंट में प्रोडक्शन वालों ने कैंसिल कर दिया। कुछ समय बाद सप्लायर ने मुझ पर दबाव बनाया कि तुम्हें जूनियर आर्टिस्ट की तरह साथ चलना पड़ेगा। फिर मुझे रेलवे स्टेशन बुलाया गया। वहां जब अजीम जी से मिली तो पता चला कि उन्होंने नहीं बल्कि सप्लायर ने मुझे स्टंट से हटाकर जूनियर आर्टिस्ट में डाल दिया, क्योंकि वो मुझे 175 नहीं 90 रुपए देना चाहता था।
मुझे जूनियर आर्टिस्ट के पैसे मिलते, लेकिन काम स्टंट का करवाया जाता। एक दिन मैंने कपड़े बदलने से इनकार कर दिया। मैंने साफ कहा- मैं अपने हाथ-पैर तुड़वाऊं और पैसे मुझे जूनियर आर्टिस्ट के मिलें। यहां मुझे पता चला कि सबकी मिलीभगत थी। वहां अजीम मेरे सपोर्ट में थे। उन्होंने कहा- तुम कर लो, पैसे बढ़ जाएंगे। मैंने साफ कहा- पहले मुझे बॉम्बे भेजो और फ्लाइट से बुलाओ, तभी काम करूंगी। मेरी उम्र कम थी तो सब ये जवाब सुनकर हैरान थे। लोगों ने खूब समझाया तो मैं मान गई।
मैंने बॉम्बे वापस आकर एसोसिएशन में शिकायत की कि मुझे स्टंट आर्टिस्ट का रजिस्ट्रेशन क्यों नहीं मिला। उन लोगों ने कहा- लड़की जुड़ेगी तो हमारा एसोसिएशन खराब हो जाएगा। 4-5 मीटिंग हुई और कई मीटिंग्स के बाद सब राजी हो गए। मैं 1974 में भारत की पहली फीमेल स्टंट आर्टिस्ट बनी। मेरे बाद कई लड़कियां इस लाइन में आईं।
शोले गर्ल बनने का सफर
मैं उस समय बड़ोदा में एक गुजराती फिल्म की शूटिंग कर रही थी। गुरुजी ने कॉल करके पूछा कि रेशमा बॉम्बे कब आओगी, मैंने कहा जल्दी। जब बॉम्बे आकर बात की तो उन्होंने मुझे होराइजन होटल के पीछे मिलने बुलाया। वहां लोग तांगा लेकर खड़े थे। मैंने बचपन में घोड़ा गाड़ी चलाई थी, लेकिन मुझे तांगा चलाना आता नहीं था।
मैंने मना किया, लेकिन सबने कहा तुम कर लोगी। मैं तांगा लेकर निकल पड़ी। मैं बहुत देर तक नहीं आई तो सबको लगा मैं आगे गिर गई, लेकिन जब मैं घोड़े को कंट्रोल करके लाई तो सब बहुत खुश हुए। इसी दिन फिटिंग्स हुई और अगले दिन हम शोले की शूटिंग के लिए बेंगलुरु रवाना हो गए। जिस सीन में हेमा मालिनी भाग कर तांगे पर चढ़ती हैं वो मुझ पर ही फिल्माया गया है। फिल्म की शूटिंग करीब साढ़े चार महीने चली।
शोले के सेट पर हुए हादसे की कहानी
उस समय बहन की शादी थी तो मैं शोले और प्रतिज्ञा दो फिल्मों की शूटिंग कर रही थी। शोले फिल्म के क्लाइमैक्स सीन की शूटिंग के समय तांगा उलट गया था। पहले एक व्हील टूटा, जिसकी जगह नकली व्हील लगना था, लेकिन गलती से उसमें किसी ने असली व्हील लगा दिया। असली चक्के में एक पट्टी होती है, जिससे वो टूटता नहीं है। यही हुआ, वो चक्का टूटा ही नहीं और तांगा उछल गया। पहले मैं गिरी और मेरे ऊपर तांगा। मेकर्स को सिर्फ तांगा रुकने का सीन चाहिए था, लेकिन जब तांगा उलट गया तो उन्हें और अच्छा सीन मिल गया।
होली गाने के सीन के दौरान मुझे एक बच्ची को घोड़े पर आए गुंडों से बचाकर उठाते हुए ले जाना था। जैसे ही मैं उस बच्ची के पास गई तो वो भागते-भागते गिर गई। मैंने उस बच्ची को बचाया और वो शॉट बहुत अच्छा हुआ। इस सीन से खुश होकर धरम जी ने मुझे 100 रुपए का नोट दिया था। 15 अक्टूबर 2021 को अमिताभ बच्चन ने मुझे कौन बनेगा करोड़पति शो में बुलाया और सम्मानित किया।
आखिरी फिल्म से कट गए शॉट
तूफान करियर की आखिरी फिल्म रही जिसमें रेशमा पठान ने सीढ़ियों से गिरने का रोल प्ले किया। अफसोस की फिल्म की लेंथ कम करने पर इस सीन को एडिंटिग में हटा दिया गया था। आज तक किसी भी स्टंट डायरेक्टर या आर्टिस्ट पर फिल्म नहीं बनी, लेकिन रेशमा के नाम पर द शोले गर्ल नाम की बायोपिक बनी है।
शादी के बाद रेशमा पठान बन गई
मेरे पति भी स्टंट आर्टिस्ट थे। वो मुझे पसंद करते थे, लेकिन मैं पैसे कमाने में लगी थी। देखते-ही- देखते हमें प्यार हो गया। वो ए. मंसूर के साले थे और स्टंट असिस्टेंट बनकर आए थे। पहले मैंने सोचा था कि शादी नहीं करूंगी, लेकिन फिर भाई-बहनों की शादी होती गई तो मैंने भी 32 की उम्र में शादी कर ली। मेरा एक बेटा है, जो बेलापुर के अपोलो हॉस्पिटल में डॉक्टर है। मेरी बहू भी डॉक्टर है।
500 से ज्यादा फिल्मों में किया काम
रेशमा पठान ने अपने करियर में करीब 500 फिल्मों में काम किया जिनमें से धरम-वीर, शोले, कर्ज, अली बाबा चालीस चोर जैसी फिल्में अहम रहीं। सबसे ज्यादा रेशमा, आशा पारेख के रोल में जंचीं। इसके अलावा उन्होंने सबसे ज्यादा हेमा मालिनी, रेखा, मौसमी चटर्जी, नीतू सिंह, वहीदा रहमान और श्रीदेवी के लिए बॉडी डबल का काम किया।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."