अनिल अनूप
प्रयागराज महाकुंभ न केवल आस्था, आध्यात्म और संस्कृति का संगम है, बल्कि यह सामाजिक सद्भाव, सांप्रदायिक सौहार्द, एकता और अखंडता का भी प्रतीक बन गया है। इस भव्य आयोजन में देश-विदेश से 66.30 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने भाग लिया और गंगा, यमुना, सरस्वती के त्रिवेणी संगम में पुण्य की डुबकी लगाई।
इस दौरान, जाति, वर्ग, नस्ल, अगड़ा-पिछड़ा, अमीर-गरीब जैसी सभी भेदभाव की दीवारें संगम में विलीन हो गईं। न कोई टकराव हुआ, न कोई तनाव फैला। डेढ़ माह तक चले इस महाकुंभ ने वैश्विक समागम का विश्व-कीर्तिमान स्थापित किया। यह आयोजन न केवल आध्यात्मिक चेतना का केंद्र बना, बल्कि एक सामाजिक जनमत संग्रह के रूप में भी उभरा।
महाकुंभ की छवि धूमिल करने की साजिश
हालांकि, महाकुंभ के समाप्त होने के ठीक अगले दिन प्रयागराज शहर में एक घिनौनी और बर्बर घटना सामने आई, जिसने इस भव्य आयोजन की पवित्रता पर सवाल खड़े कर दिए। यह घटना न केवल शहर के सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने का प्रयास थी, बल्कि इसे एक विशेष समुदाय को उकसाने की साजिश भी माना जा रहा है।
गौवंश हत्या कर हिंदू घरों के सामने फेंके गए अंग
प्रयागराज के विभिन्न इलाकों में हिंदू समुदाय के कई घरों के बाहर गोवंश के कटे अंग पाए गए। इनमें गाय और बछड़ों के सिर, पैर और अन्य हिस्से शामिल थे, जो हिंदू धर्म में ‘गौ माता’ के रूप में पूजे जाते हैं। इस घृणित कृत्य ने पूरे शहर में आक्रोश और भय का माहौल पैदा कर दिया।
यह सवाल उठता है कि आखिर अचानक यह हत्याकांड कैसे हुआ? क्या यह कोई गहरी साजिश थी? क्या प्रयागराज की शांति और भाईचारे को भंग करने के लिए यह कुत्सित प्रयास किया गया? इतिहास गवाह है कि ऐसी ही घटनाएं अक्सर सांप्रदायिक दंगों का कारण बनती हैं और समाज में वैमनस्यता को बढ़ावा देती हैं।
प्रयागराज: तीर्थराज की पवित्रता को ठेस पहुंचाने की कोशिश
प्रयागराज को सदियों से ‘तीर्थराज’ का दर्जा प्राप्त है। यहां की 85% आबादी हिंदू और लगभग 11% मुस्लिम है। शहर के कुछ हिस्सों में मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक है। यह जांच का विषय है कि आखिर गोवंश की हत्या किसने की? इसके पीछे कौन था? क्या यह एक सोची-समझी साजिश थी?
गौहत्या: नफरत की पराकाष्ठा
यह पहली बार नहीं है जब गौहत्या और उसके अंगों को सार्वजनिक रूप से फेंककर हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचाने का प्रयास किया गया है। हाल ही में 12 फरवरी को बेंगलुरु में तीन गायों के थन काटे जाने की घटना सामने आई थी। यह बेहद क्रूर और अमानवीय कृत्य था।
गाय एक बेजुबान प्राणी है, जो नफरत की राजनीति का शिकार बन रही है। सवाल यह है कि जो संगठन और व्यक्ति पशु अधिकारों के नाम पर अभियान चलाते हैं, वे इन घटनाओं पर चुप क्यों हैं? क्या गाय के प्रति संवेदना दिखाने का मतलब सांप्रदायिक होना है?
प्रशासन की मुस्तैदी से टला बड़ा तनाव
प्रयागराज की इस घटना में प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई करते हुए केस दर्ज किया और हालात को संभालने में सफलता पाई। अगर पुलिस ने समय रहते कार्रवाई न की होती, तो स्थिति और ज्यादा गंभीर हो सकती थी।
किस मानसिकता का परिणाम है यह क्रूरता?
यह घटना सिर्फ धार्मिक भावना को आहत करने की साजिश नहीं है, बल्कि समाज में नफरत और उन्माद फैलाने का सुनियोजित प्रयास भी है। यह समझना जरूरी है कि इस तरह के कृत्य किसी भी समाज के लिए घातक हैं। प्रयागराज महाकुंभ शांति, एकता और भाईचारे का संदेश देता है, जबकि ऐसे अमानवीय कार्य इसे धूमिल करने का प्रयास करते हैं।
अब प्रशासन पर यह जिम्मेदारी है कि दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिले, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो और प्रयागराज की पवित्रता और सौहार्द बना रहे।
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Author: जगदंबा उपाध्याय, मुख्य व्यवसाय प्रभारी
जिद है दुनिया जीतने की