सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट
मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र का उपचुनाव पूरे प्रदेश की राजनीति में चर्चा का विषय बना हुआ है। राजनैतिक विश्लेषकों से लेकर सांख्यिकी विशेषज्ञों तक, हर कोई अपने-अपने तर्क और आकलन के साथ इस चुनाव पर नजर बनाए हुए है। दिलचस्प बात यह है कि इस बार भी निर्दलीय उम्मीदवार अहम भूमिका निभा सकते हैं। इतिहास पर नजर डालें तो 1998 और 2004 के उपचुनाव में भी निर्दलीय प्रत्याशियों ने चुनावी समीकरणों को उलट-पलट कर रख दिया था।
1998 का उपचुनाव: निर्दलीयों ने कमजोर की थी भाजपा की स्थिति
मिल्कीपुर में पहली बार 1998 में उपचुनाव हुआ था, जिसमें कुल 12 प्रत्याशी मैदान में थे। इनमें से छह निर्दलीय उम्मीदवार थे। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) के रामचंद्र यादव ने 36,908 वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रत्याशी डॉ. बृजभूषण मणि त्रिपाठी को 33,776 वोट मिले थे। रामचंद्र यादव ने 3,132 वोटों के अंतर से यह चुनाव जीता था।
हालांकि, इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों ने भाजपा की हार में बड़ी भूमिका निभाई थी। निर्दलीय प्रत्याशी राम बालक चौरसिया को 3,122 वोट और त्रिलोकी को 2,172 वोट मिले थे, जिससे भाजपा का गणित बिगड़ गया था।
2004 का उपचुनाव: सपा ने बड़ी जीत दर्ज की
मिल्कीपुर में दूसरी बार 2004 में उपचुनाव हुआ। इस बार मुकाबला और भी रोचक था। सपा के प्रत्याशी रामचंद्र यादव ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के आनंदसेन यादव को 35,000 वोटों के बड़े अंतर से हराया था। इस चुनाव में भी निर्दलीय प्रत्याशियों ने अहम भूमिका निभाई थी। निर्दलीय उम्मीदवार सुनील कुमार ने 3,957 और शरद कुमार पाठक ने 1,534 वोट हासिल किए थे।
क्या इस बार भी निर्दलीय उम्मीदवार खेल बिगाड़ेंगे?
इतिहास को देखें तो 1998 और 2004, दोनों ही उपचुनावों में निर्दलीय प्रत्याशियों ने भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी की थीं। इस बार उपचुनाव में कुल 5 निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में हैं—भोलानाथ, अरविंद कुमार, कंचनलता, वेद प्रकाश और संजय पासी।
मुख्य मुकाबले में ये प्रत्याशी
इस बार के चुनाव में भी कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। मुख्य दलों से प्रत्याशी इस प्रकार हैं—
अजित प्रसाद (समाजवादी पार्टी)
चंद्रभानु पासवान (भारतीय जनता पार्टी)
संतोष कुमार ‘सूरज चौधरी’ (आजाद समाज पार्टी ‘कांशीराम’)
राम नरेश चौधरी (मौलिक अधिकार पार्टी)
सुनीता (राष्ट्रीय जनवादी पार्टी ‘सोशलिस्ट’)
इनके अलावा, निर्दलीय उम्मीदवार भोलानाथ, अरविंद कुमार, कंचनलता, वेद प्रकाश और संजय पासी भी मैदान में हैं, जो चुनावी समीकरण को प्रभावित कर सकते हैं।
क्या इस बार भी इतिहास दोहराएगा?
अगर पिछले दो उपचुनावों के रुझानों पर गौर करें, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि निर्दलीय उम्मीदवार इस बार भी किसी न किसी पार्टी के लिए “स्पॉइलर” की भूमिका निभा सकते हैं। अब देखना होगा कि 2025 का मिल्कीपुर उपचुनाव किस करवट बैठता है—क्या निर्दलीय फिर से किसी बड़ी पार्टी के लिए हार-जीत का कारण बनेंगे, या इस बार तस्वीर कुछ अलग होगी?