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22 January 2025 11:43 pm

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राम आ तो गए, लेकिन आस्था के उजास में छुपा संघर्ष का ऐसा अंधकार क्यों ?

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अनिल अनूप की खास रिपोर्ट

राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के एक वर्ष पूरे होने के बाद अयोध्या एक नए स्वरूप में उभर रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी धार्मिक पर्यटन योजना के केंद्र में अयोध्या है, और शहर में निर्माण कार्य तेज़ी से जारी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अनुसार, हर दिन डेढ़ से दो लाख श्रद्धालु अयोध्या आ रहे हैं, जिससे यहां की आर्थिकी को गति मिली है।

सरकार का दावा है कि श्रद्धालुओं के लिए बुनियादी सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है। ‘राम पथ’ के बाद अब ‘भक्ति पथ’ का निर्माण हो रहा है, रेलवे स्टेशन का नवीनीकरण किया जा रहा है, और 15 नई ट्रेनें अयोध्या से गुज़र रही हैं। हवाई यातायात भी बढ़ा है, जिससे दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, और बेंगलुरु जैसे शहरों से अयोध्या की सीधी कनेक्टिविटी संभव हुई है।

लेकिन इस तेज़ी से हो रहे विकास का एक दूसरा पहलू भी है—जिसमें स्थानीय निवासियों की आशंकाएँ, किसानों और ज़मीन मालिकों की चिंताएँ, तथा सरकार की अधिग्रहण नीतियों को लेकर विरोध के स्वर भी शामिल हैं।

विकास की सीमित परिधि और अधिग्रहण का विवाद

स्थानीय पत्रकार इंदू भूषण पांडेय का कहना है कि वास्तविक विकास केवल तीन किलोमीटर के दायरे तक सीमित है, जो मुख्य रूप से राम मंदिर और उससे जुड़े इलाकों तक ही केंद्रित है। अयोध्या नगर के बाहर, विशेष रूप से पुराने फैज़ाबाद शहर में, कोई विशेष बदलाव नहीं हुआ है।

सबसे अधिक विरोध भूमि अधिग्रहण को लेकर है। माझा शहनवाज़पुर, सआदतगंज और आसपास के इलाकों में ज़मीन मालिकों का आरोप है कि सरकार बाज़ार मूल्य की तुलना में बेहद कम मुआवज़ा देकर उनकी ज़मीन ले रही है। पूजा वर्मा जैसी महिलाएँ, जो अपने परिवार की सुरक्षा के लिए ज़मीन खरीद चुकी थीं, अब बेघर होने के कगार पर हैं। उनका कहना है कि बाज़ार मूल्य 48 लाख रुपये प्रति बिस्वा है, लेकिन सरकार केवल 6 लाख रुपये प्रति बिस्वा दे रही है।

कुछ लोगों का मानना है कि अधिग्रहण की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है और किसानों को गुमराह किया जा रहा है। राजीव तिवारी, जो अमेरिका से लौटकर अयोध्या में होटल व्यवसाय करना चाहते थे, अब खुद को अधिग्रहण की इस प्रक्रिया में फंसा हुआ पा रहे हैं। उनका आरोप है कि सरकार छोटे ज़मीन मालिकों को कम दामों में ज़मीन बेचने को मजबूर कर रही है और फिर वही ज़मीन बड़े पूंजीपतियों को ऊंची कीमतों पर दी जा रही है।

समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व मंत्री पवन पांडेय का आरोप है कि सरकार किसानों की ज़मीन सस्ती दरों पर लेकर “अपने पूंजीपति मित्रों” को सौंप रही है, जिससे स्थानीय लोगों की आजीविका पर संकट मंडरा रहा है।

क्या विकास स्थानीय लोगों के लिए है?

स्थानीय लोगों की चिंता इस बात को लेकर भी है कि अयोध्या में बढ़ते पर्यटन और व्यवसायिक गतिविधियों का लाभ केवल बाहरी निवेशकों को ही मिल रहा है। बड़े होटल और व्यावसायिक केंद्रों के निर्माण से स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसर तो बढ़े हैं, लेकिन पारंपरिक व्यवसाय प्रभावित हो रहे हैं।

पत्रकार पांडेय के अनुसार, “अयोध्या पहले धाम था, अब केवल व्यवसाय का केंद्र बनता जा रहा है। यहां के स्थानीय लोगों को रोज़गार नहीं मिल पा रहा, बल्कि वे खुद अपने ही शहर में हाशिए पर चले गए हैं।”

इसके अलावा, पुराने अयोध्या में बुनियादी सुविधाओं की कमी आज भी बनी हुई है। सीवर की समस्या, टूटी-फूटी सड़कें और जल निकासी की दिक्कतें अब भी जस की तस बनी हुई हैं।

सरकार की दलीलें और कानूनी जटिलताएँ

विपक्ष और स्थानीय निवासियों के आरोपों के जवाब में, प्रशासन का कहना है कि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी तरह से कानूनी है और 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून के तहत इसे पूरा किया जा रहा है। यूपी आवास विकास परिषद के आवास आयुक्त बलकार सिंह के अनुसार, किसानों को सर्किल रेट के तीन से चार गुना तक मुआवज़ा दिया जा रहा है, और अंततः इस विकास का लाभ भी उन्हीं को मिलेगा।

हालांकि, आलोचकों का कहना है कि सर्किल रेट वर्षों से अपडेट नहीं किया गया है, जिससे किसानों और ज़मीन मालिकों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

अयोध्या का भविष्य: उम्मीदें और अनिश्चितता

राम मंदिर के निर्माण और इसके साथ हो रहे व्यापक विकास कार्यों से अयोध्या निस्संदेह भारत के प्रमुख धार्मिक और पर्यटन स्थलों में एक महत्वपूर्ण स्थान बना चुका है। लेकिन इस विकास की प्रक्रिया में जिन लोगों ने पीढ़ियों से इस भूमि को संजोया है, वही आज विस्थापन और संघर्ष का सामना कर रहे हैं।

अयोध्या के इस परिवर्तन को यदि सही मायनों में “विकास” कहा जाए, तो यह तभी सार्थक होगा जब इसमें स्थानीय लोगों की भागीदारी और अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जाए। भूमि अधिग्रहण, मुआवज़े और विस्थापन से जुड़े विवादों का न्यायसंगत समाधान होना अनिवार्य है, ताकि अयोध्या का विकास केवल चमक-दमक तक सीमित न रहकर, यहां के निवासियों के लिए भी उन्नति का कारण बने।

समय बताएगा कि यह नया अयोध्या वास्तव में रामराज्य के सपने को साकार करेगा या फिर एक नई सामाजिक असमानता को जन्म देगा।

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