Explore

Search
Close this search box.

Search

22 January 2025 12:09 pm

लेटेस्ट न्यूज़

अमीर होने से पहले ग़रीब होता भारत ; आखिर क्यों हो रही है और बच्चा पैदा करने की बात

58 पाठकों ने अब तक पढा

मोहन द्विवेदी की रिपोर्ट

संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार, भारत ने 2023 में चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बनने का गौरव प्राप्त किया। लगभग 1.45 अरब की विशाल आबादी के साथ यह उम्मीद की जा रही थी कि भारत अब जनसंख्या नियंत्रण को लेकर सख्त रवैया अपनाएगा। लेकिन हाल के घटनाक्रमों ने इस परिदृश्य को उलट दिया है। दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में गिरती प्रजनन दर के मद्देनजर अधिक बच्चे पैदा करने की वकालत की जा रही है।

दक्षिण भारतीय राज्यों की बढ़ती चिंता

आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के नेताओं ने गिरती प्रजनन दर और बढ़ती बुज़ुर्ग आबादी के कारण जनसंख्या वृद्धि को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता जताई है। आंध्र प्रदेश सरकार ने दो बच्चों की नीति को स्थानीय निकाय चुनावों में रद्द कर दिया है, जबकि तेलंगाना भी इसी राह पर चलने का विचार कर रहा है। तमिलनाडु ने भी ऐसी ही नीतियों पर विचार किया है।

भारत की कुल प्रजनन दर में समय के साथ तेज़ गिरावट आई है। 1950 में प्रति महिला 5.7 बच्चों की दर आज घटकर 2 तक आ गई है। भारत के 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 17 राज्यों में प्रजनन दर 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे आ चुकी है। दक्षिण के पांच प्रमुख राज्य — केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना — इस प्रतिस्थापन स्तर को सबसे पहले प्राप्त कर चुके हैं। इन राज्यों की कुल प्रजनन दर 1.6 से भी नीचे है। तमिलनाडु में यह 1.4 है, जो यूरोप के कई विकसित देशों के बराबर है।

परिसीमन और राजनीतिक प्रतिनिधित्व का संकट

दक्षिणी राज्यों की चिंता सिर्फ प्रजनन दर तक सीमित नहीं है। उन्हें डर है कि देश में जनसंख्या के असमान वितरण के चलते परिसीमन के दौरान उनकी संसदीय सीटों में कमी आ सकती है। भारत में 1976 के बाद पहली बार 2026 में परिसीमन प्रक्रिया होने जा रही है। इसका उद्देश्य जनसंख्या के आधार पर संसदीय क्षेत्रों का पुनर्गठन है। इस प्रक्रिया से उत्तर भारत के घनी आबादी वाले राज्य जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार को अधिक संसदीय सीटें मिल सकती हैं, जबकि दक्षिणी राज्यों का प्रतिनिधित्व घटने की संभावना है।

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज़ के प्रोफेसर श्रीनिवास गोली का कहना है कि दक्षिणी राज्य बेहतर आर्थिक प्रदर्शन और कर राजस्व में अधिक योगदान के बावजूद जनसंख्या नियंत्रण में अपनी सफलता के कारण दंडित होने के भय में हैं।

तेजी से बढ़ती बुज़ुर्ग आबादी की चुनौती

गिरती प्रजनन दर का एक अन्य महत्वपूर्ण परिणाम तेजी से बढ़ती बुज़ुर्ग आबादी है। श्रीनिवास गोली के अनुसार, फ्रांस और स्वीडन में बुजुर्ग आबादी के अनुपात को 7% से 14% तक पहुंचने में क्रमशः 120 और 80 साल लगे थे। भारत में यह प्रक्रिया महज 28 सालों में पूरी हो सकती है।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की ‘इंडिया एजिंग रिपोर्ट’ के अनुसार, भारत के 60 वर्ष से अधिक उम्र के 40% बुज़ुर्ग आर्थिक रूप से सबसे निचले तबके में आते हैं। यह स्थिति चिंताजनक है क्योंकि बुज़ुर्गों की देखभाल के लिए भारत की स्वास्थ्य सेवाएं, सामाजिक सुरक्षा प्रणाली और सामुदायिक संसाधन पर्याप्त नहीं हैं।

सामाजिक और आर्थिक निहितार्थ

भारत में जनसंख्या नियंत्रण के आक्रामक कार्यक्रमों और परिवार नियोजन नीतियों के चलते, आर्थिक प्रगति के अपेक्षाकृत धीमे होने के बावजूद प्रजनन दर में गिरावट आई है। आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों की प्रजनन दर 1.5 है, जो स्वीडन के बराबर है, लेकिन उनकी प्रति व्यक्ति आय स्वीडन से 28 गुना कम है। ऐसे राज्यों के लिए बुज़ुर्ग आबादी के लिए पेंशन और सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था करना कठिन होगा।

हिंदुत्ववादी संगठनों की चिंता और बढ़ती बहस

जनसंख्या गिरावट की इस समस्या के बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में दंपतियों से तीन बच्चे पैदा करने की अपील की है। उनका तर्क है कि यदि प्रजनन दर 2.1 से नीचे गिरती है, तो समाज के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगता है।

हालांकि जनसांख्यिकी विशेषज्ञ इस तर्क को पूरी तरह से सही नहीं मानते। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर टिम डायसन का कहना है कि प्रजनन दर 1.6 या उससे कम होने पर जनसंख्या में ‘अनियंत्रित गिरावट’ का खतरा बढ़ जाता है।

समाधान और भविष्य की राह

इस चुनौती का हल अधिक बच्चे पैदा करने की अपील में नहीं, बल्कि बुज़ुर्गों की सक्रियता और उत्पादकता बढ़ाने में है। विकसित देश जैसे फ्रांस, स्वीडन और दक्षिण कोरिया बुज़ुर्ग आबादी को स्वस्थ और सक्रिय रखने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। भारत को भी बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, सामाजिक सुरक्षा और उत्पादक बुज़ुर्ग जीवन के लिए नीतियां बनानी होंगी।

इसके साथ ही, भारत को अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का अधिकतम फायदा उठाना चाहिए। श्रीनिवास गोली का मानना है कि 2047 तक भारत के पास आर्थिक विकास की गति बढ़ाने और कामकाजी आबादी को रोजगार देने का सुनहरा अवसर है।

संक्षेप में, भारत की जनसांख्यिकीय चुनौती सिर्फ जनसंख्या नियंत्रण नहीं, बल्कि संसाधनों का कुशल प्रबंधन, सामाजिक सुरक्षा और बुज़ुर्गों के लिए संरचना विकसित करने में निहित है।

Leave a comment

लेटेस्ट न्यूज़