संतोष कुमार सोनी की रिपोर्ट
बांदा(उत्तर प्रदेश)। जिले के बबेरू तहसील में अधिवक्ता संघ ने नायब तहसीलदार दीपेंद्र कुमार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाते हुए तहसील परिसर में जोरदार प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में बड़ी संख्या में अधिवक्ताओं ने हिस्सा लिया और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की। नाराज अधिवक्ताओं ने उप जिलाधिकारी (एसडीएम) और तहसीलदार को ज्ञापन सौंपते हुए दोषी अधिकारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।
भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप
अधिवक्ताओं का आरोप है कि नायब तहसीलदार द्वारा जमीन संबंधी मामलों में गंभीर अनियमितताएं की जा रही हैं। इसमें जिंदा व्यक्ति को मृत और मृत व्यक्ति को जिंदा दिखाने जैसे फर्जीवाड़े के मामले शामिल हैं। अधिवक्ताओं का कहना है कि नायब तहसीलदार की वजह से कई पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पा रहा है। इसके साथ ही, तहसील में प्राइवेट कर्मचारियों की संदिग्ध भूमिका पर भी सवाल उठाए गए हैं। अधिवक्ताओं ने मांग की है कि इन प्राइवेट कर्मचारियों को तुरंत तहसील से हटाया जाए, ताकि पारदर्शी कामकाज सुनिश्चित हो सके।
अधिवक्ताओं की चेतावनी
अधिवक्ताओं ने प्रदर्शन के दौरान घोषणा की कि जब तक नायब तहसीलदार के खिलाफ उचित कार्रवाई नहीं की जाती, तब तक कमासिन और जामू कोर्ट का बहिष्कार जारी रहेगा। उन्होंने तीन दिन की समय सीमा दी है और चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे एसडीएम कोर्ट का भी बहिष्कार करेंगे।
प्रशासन का पक्ष
इस मामले में प्रशासन ने सफाई देते हुए कहा कि विवाद एक जमीन के मामले को लेकर है। एडीएम बांदा राजेश कुमार ने बताया कि जय चंद्र और फूलचंद्र के परिवार के बीच जमीन का मालिकाना हक हलफनामों के आधार पर तय किया गया था। यह मामला फिलहाल कोर्ट में विचाराधीन है और कोर्ट के आदेश के अनुसार ही कार्रवाई की जाएगी।
आंदोलन की संभावित दिशा
अधिवक्ताओं का कहना है कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। जब तक तहसील में कामकाज में सुधार नहीं आता और नायब तहसीलदार के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाए जाते, तब तक उनका आंदोलन थमने वाला नहीं है। उन्होंने प्रशासन को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर उनकी मांगों की अनदेखी हुई, तो वे बड़े स्तर पर प्रदर्शन करेंगे और न्यायिक कार्यों का पूरी तरह से बहिष्कार करेंगे।
इस पूरे मामले ने बबेरू तहसील में कामकाज की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अधिवक्ताओं और प्रशासन के बीच तनातनी के चलते आम जनता को भी न्यायिक कार्यों में देरी का सामना करना पड़ सकता है।