ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट
रायबरेली की इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज (आईटीआई) जिसे कभी क्षेत्र की “लाइफ लाइन” कहा जाता था, आज अस्तित्व के गंभीर संकट से जूझ रही है।
हाल ही में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा लोकसभा में पूछे गए सवालों से आईटीआई की बदहाल स्थिति का सच सामने आया है। इस इकाई का टर्नओवर जो कभी हजारों करोड़ रुपये में होता था, अब गिरकर महज 20 करोड़ रुपये तक सिमट गया है।
आईटीआई की वर्तमान स्थिति
आईटीआई की रायबरेली इकाई की स्थापना 6 अक्टूबर 1973 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की थी। उस दौर में इस फैक्ट्री में बेसिक टेलीफोन एक्सचेंज के लिए क्रॉस बार यूनिट का उत्पादन होता था। समय के साथ उत्पादन तकनीकी रूप से उन्नत हुआ, और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस व सी-डॉट के उत्पादन की शुरुआत हुई। मौजूदा समय में यहां रेलवे और संचार सेवाओं के लिए ऑप्टिकल फाइबर केबल (ओएफसी) का उत्पादन किया जा रहा है।
हालांकि, अब यह इकाई गंभीर आर्थिक संकट में है। एक समय इस फैक्ट्री में 7000 स्थाई कर्मचारी काम करते थे, लेकिन आज यह संख्या घटकर सिर्फ 322 रह गई है। इनमें 173 स्थाई, 68 संविदा, और 83 अनौपचारिक कर्मचारी शामिल हैं।
राहुल गांधी के सवाल और सरकार का जवाब
राहुल गांधी ने लोकसभा में आईटीआई के कर्मचारियों को समय पर वेतन न मिलने की स्थिति पर सवाल किया। जवाब में केंद्र सरकार ने कहा कि वेतन के भुगतान के लिए 4456 करोड़ रुपये की विधिक सहायता को मंजूरी दी गई है, जिसमें से 4157 करोड़ रुपये अब तक वितरित किए जा चुके हैं। यह धनराशि मुख्य रूप से वेतन और बकाया चुकाने में खर्च हो गई है। हालांकि, अभी भी 300 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता लंबित है। सरकार इस लंबित राशि को जारी करने में रुचि नहीं ले रही है, जिसके कारण फैक्ट्री की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है।
यूपीए सरकार द्वारा दी गई राहत
2009-10 में, यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान सोनिया गांधी ने आईटीआई की रायबरेली इकाई के पुनरुद्धार के लिए 8000 करोड़ रुपये का पैकेज दिलाया था। हालांकि, उस समय भी इस राशि का अधिकांश हिस्सा वेतन और बकाया भुगतान में खर्च हो गया, और फैक्ट्री को आधुनिक तकनीक के अनुरूप अपडेट करने का अवसर हाथ से निकल गया।
क्यों संकट में है आईटीआई?
आईटीआई की रायबरेली इकाई को अब न तो पर्याप्त सरकारी ऑर्डर मिल रहे हैं और न ही कोई नया पुनरुद्धार पैकेज मिल पा रहा है। इसका नतीजा यह है कि फैक्ट्री की उत्पादन क्षमता और व्यवसाय लगातार घटता जा रहा है। स्थाई कर्मचारियों की संख्या में कमी और तकनीकी उन्नयन के अभाव ने इस इकाई को लगभग बंदी के कगार पर पहुंचा दिया है।
रायबरेली की यह फैक्ट्री कभी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती थी। हजारों परिवारों की रोजी-रोटी इससे जुड़ी हुई थी। लेकिन वर्तमान में यह इकाई न केवल वित्तीय संकट में है, बल्कि इसके बंद होने का खतरा भी मंडरा रहा है। यदि सरकार समय रहते इस ओर ध्यान नहीं देती, तो आईटीआई की रायबरेली इकाई का अस्तित्व संकट में पड़ सकता है।