चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में ‘नीम हकीम’ या अप्रशिक्षित चिकित्सकों का बढ़ता हुआ प्रभाव एक गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। ये लोग, जिनके पास न तो कोई मेडिकल डिग्री है और न ही उचित प्रशिक्षण, अपनी दुकानें गाँव-गाँव में खोलकर चिकित्सा के नाम पर लोगों की ज़िंदगियों से खिलवाड़ कर रहे हैं। इस लेख में हम इस समस्या की गंभीरता, इसके कारण, परिणाम, और इससे निपटने के उपायों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
नीम हकीमों की बढ़ती संख्या: स्थिति की गंभीरता
उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी है। स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति खराब है, डॉक्टरों की भारी कमी है, और जो सुविधाएँ मौजूद हैं, वे भी कई बार अनुपलब्ध रहती हैं। ऐसे में, गाँव के लोग मजबूरन नीम हकीमों की शरण लेते हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 60% लोग नीम हकीमों से इलाज करवाने पर निर्भर हैं। राज्य के 75 जिलों में लगभग 2 लाख से अधिक नीम हकीम सक्रिय हैं, जो गैरकानूनी रूप से चिकित्सा सेवाएँ दे रहे हैं। इनका इलाज आमतौर पर सस्ता होता है, लेकिन इसमें मरीजों की ज़िंदगी खतरे में पड़ जाती है।
नीम हकीमों का तरीका: इलाज के नाम पर खिलवाड़
नीम हकीमों का मुख्य धंधा देशी और आयुर्वेदिक इलाज के नाम पर होता है। ये लोग बिना किसी उचित लाइसेंस या प्रमाण पत्र के एलोपैथिक दवाओं का भी उपयोग करते हैं। आमतौर पर वे बिना डॉक्टर के परामर्श के एंटीबायोटिक, स्टेरॉइड, और अन्य ताकतवर दवाइयों का उपयोग करते हैं, जिससे मरीजों की स्थिति और बिगड़ जाती है।
ग्रामीण इलाकों में लोग जागरूकता की कमी के चलते नीम हकीमों के झांसे में आ जाते हैं। ‘सस्ता और जल्दी ठीक’ होने का लालच देकर ये हकीम लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। नतीजतन, बीमारियों का सही इलाज न हो पाने के कारण मरीजों की हालत और गंभीर हो जाती है। इसके अलावा, कई बार गलत दवाओं और गलत इंजेक्शन से मरीजों की जान तक चली जाती है।
स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: नीम हकीमों की सक्रियता का प्रमुख कारण
1. अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों की कमी: उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) की कमी है। यदि ये केंद्र मौजूद भी हैं, तो उनमें दवाओं, उपकरणों और प्रशिक्षित कर्मचारियों की भारी कमी है।
2. डॉक्टरों की अनुपलब्धता: सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी है। रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में 50% से अधिक डॉक्टरों के पद खाली हैं। ऐसे में नीम हकीमों को अपनी दुकान चलाने का मौका मिल जाता है।
3. गाँवों तक पहुँचने में कठिनाई: सुदूर गाँवों में परिवहन की कमी के चलते लोग अस्पतालों तक पहुँचने में असमर्थ होते हैं। इसलिए वे अपने गाँव के नीम हकीमों पर निर्भर रहते हैं, जो आसानी से उपलब्ध होते हैं।
नीम हकीमों से होने वाले नुकसान
1. गलत इलाज: नीम हकीमों द्वारा दिए गए गलत इलाज के कारण बीमारियाँ ठीक होने के बजाय और बढ़ जाती हैं। मलेरिया, डेंगू, टायफाइड जैसे गंभीर रोगों का गलत इलाज मरीजों की जान तक ले सकता है।
2. दवाओं का दुरुपयोग: नीम हकीमों द्वारा दी जाने वाली दवाएँ कई बार नकली होती हैं। इसके अलावा, एंटीबायोटिक और स्टेरॉइड्स का बेजा इस्तेमाल होने के कारण लोगों में इन दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता (रेजिस्टेंस) बढ़ जाती है, जो भविष्य में बड़ी समस्याओं का कारण बन सकता है।
3. स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़: नीम हकीम सस्ता और जल्दी इलाज देने का दावा करते हैं, लेकिन उनकी जानकारी और अनुभव की कमी के चलते कई बार मरीज की हालत गंभीर हो जाती है। गलत इंजेक्शन लगाने से कई बार संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है, जिससे मरीज की मौत तक हो सकती है।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं:
स्वास्थ्य जागरूकता अभियान: राज्य सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य जागरूकता अभियान चलाने की पहल की है। इसके तहत लोगों को प्रशिक्षित डॉक्टरों से ही इलाज कराने की सलाह दी जाती है।
नीम हकीमों पर सख्त कार्रवाई: स्वास्थ्य विभाग ने नीम हकीमों के खिलाफ सख्त कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। कई जिलों में छापेमारी करके नीम हकीमों को गिरफ्तार भी किया गया है।
चिकित्सा सेवाओं में सुधार: राज्य सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए नए स्वास्थ्य केंद्र खोलने और डॉक्टरों की नियुक्ति करने का प्रयास किया जा रहा है।
समाधान और सुझाव
सख्त कानून: नीम हकीमों के खिलाफ सख्त कानून बनाना जरूरी है। मेडिकल प्रैक्टिस करने के लिए लाइसेंस की अनिवार्यता और बिना लाइसेंस वाले डॉक्टरों पर भारी जुर्माना लगाया जाना चाहिए।
स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार: ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ाने की जरूरत है। अधिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र खोले जाने चाहिए।
जागरूकता कार्यक्रम: गाँवों में लोगों को जागरूक करने के लिए नियमित स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन करना चाहिए, जिससे लोग प्रशिक्षित डॉक्टरों के पास जाने के प्रति जागरूक हो सकें।
मॉनिटरिंग सिस्टम: स्वास्थ्य विभाग को एक सख्त मॉनिटरिंग सिस्टम तैयार करना चाहिए, जिससे नीम हकीमों की पहचान कर उन्हें तुरंत रोकने की कार्रवाई की जा सके।
उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में नीम हकीमों की बढ़ती संख्या एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, जागरूकता का अभाव, और गाँवों तक उचित चिकित्सा सुविधाओं की अनुपलब्धता के चलते ये हकीम बेरोकटोक अपना धंधा चला रहे हैं। इसका समाधान तभी संभव है जब सरकार, स्वास्थ्य विभाग, और समाज मिलकर इस समस्या का समाधान करें और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए ठोस कदम उठाएं।
सरकार को चाहिए कि वह ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिकता दे और नीम हकीमों पर सख्त कार्रवाई करके इस खतरे से निपटे। अन्यथा, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की यह अनदेखी लोगों की जान पर भारी पड़ सकती है।