मोहन द्विवेदी
यह एक भावुक श्रद्धांजलि है, जो हर उस व्यक्ति के दिल को छू जाएगी जिसने कभी भी शारदा सिन्हा के सुरों की मिठास महसूस की हो। शारदा जी, जिन्होंने ‘बिहार कोकिला’ के रूप में भारतीय संगीत के लोकाचार को एक नई ऊंचाई दी, अब हमारे बीच नहीं रहीं, लेकिन उनकी आवाज़ और विरासत हमेशा जीवित रहेगी। छठ जैसे पर्व, जिसमें उनकी गूंज हर भावनात्मक रेशे को स्पर्श करती थी, अब उनके बिना अधूरा सा लगने वाला है। वे सिर्फ एक गायिका नहीं थीं, बल्कि एक सांस्कृतिक प्रतीक थीं, जो अपनी मिट्टी की महक को पूरे देश में पहुंचाती रहीं।
उनका गायकी का सफर बेहद संघर्षों से भरा हुआ था। पटना आकाशवाणी से उनकी यात्रा की शुरुआत हुई। यह वही आकाशवाणी केंद्र है जिसकी स्थापना स्वयं सरदार वल्लभभाई पटेल की उपस्थिति में हुई थी। उस दिन विंध्यवासिनी देवी ने उद्घाटन गान प्रस्तुत किया था—‘भइले पटना में रेडियो के शोर/ तनिक खोला सुन सखिया’। शारदा जी ने भी अपने सफर की नींव इसी परंपरा से रखी।
शारदा जी का पहला ऑडिशन असफल रहा था। निराशा ने उनके हौसले को डगमगाया नहीं, बल्कि उनके मन में जिद की एक चिंगारी जलाई। उन्होंने अपनी कमियों को सुधारने के लिए कड़ी मेहनत की और छह महीने बाद जब अगला ऑडिशन हुआ, तो उनकी गायन प्रतिभा ने सबको मुग्ध कर दिया। उन्हें आकाशवाणी पटना से चुना गया, और यहीं से उनके गायन करियर की शुरुआत हुई। उनके गले से फूटने वाले सुर एक नई पहचान बन गए, और धीरे-धीरे वह पूरे बिहार की आवाज़ बन गईं।
संगीत के प्रति उनका समर्पण ऐसा था कि उन्होंने हर चुनौती का सामना मुस्कुराते हुए किया। जब वह मुंबई आतीं, तो उनके कार्यक्रम की ख़बर सुनकर हम दौड़े चले जाते थे। 15 अक्टूबर 2022 की बात है, जब चौहान सेंटर में पासबान-ए-अदब द्वारा आयोजित उनकी संगीत संध्या ‘अनुभूति’ में भाग लेने के लिए हम पहुंचे। उस दिन मुंबई की सड़कों पर ट्रैफिक बहुत ज्यादा था और हमें देर हो गई थी। मन में चिंता थी कि कहीं कार्यक्रम खत्म न हो जाए। लेकिन जब पहुंचे तो पता चला कि कार्यक्रम का शेड्यूल अभी आगे है। जैसे ही वह वहां आईं और हमें देखा, उनके चेहरे पर प्रसन्नता छा गई।
उस रात, आधी रात को, जब वे अपनी बेटी वंदना भारद्वाज के साथ मंच पर आईं, तो उनका गाना सुनकर मन भावविभोर हो गया। ‘केलवा के पात पर उगेलन सुरूज मल झांके झूंके/हो करेलु छठ बरतिया से झांके झूंके’ जैसे गीतों ने उपस्थित लोगों को अपने लोक-संगीत की गहराइयों में गोता लगाने को मजबूर कर दिया। श्रोताओं ने उनके हर गीत पर भावुकता से तालियां बजाईं।
शारदा जी के साथ हमारी एक खास याद तब की है जब 2018 में उन्होंने हमारे घर पधारने का सौभाग्य प्रदान किया। वह कुछ समय के लिए मुंबई में रह रही थीं और रेडियो स्टेशन पर एक इंटरव्यू के लिए आई थीं। उनकी सेहत उस समय पूरी तरह ठीक नहीं थी; उन्हें पीठ दर्द की समस्या थी। इंटरव्यू मेरी पत्नी ममता ने लिया, और हमने उनके आराम के लिए घर पर व्यवस्था की। उनके घर आने से ऐसा महसूस हुआ जैसे साक्षात् सरस्वती का आशीर्वाद मिल गया हो। हमने आग्रह किया कि वे पलंग पर आराम कर लें, लेकिन वे सोफे पर ही आराम से लेटकर हमसे बातें करती रहीं।
मैंने उनसे निवेदन किया कि वे अपने मन का कोई प्रिय गीत गाएं। उन्होंने कहा कि उन्हें मुकेश के गाने बेहद पसंद हैं, और अक्सर अकेले में गुनगुनाती हैं। फिर वे गाने लगीं, और उनके मधुर सुर पूरे घर में गूंजने लगे। वह दृश्य हमारी स्मृतियों में अमिट हो गया।
कोरोना महामारी के दौर में जब हमें ख़बर मिली कि वे संक्रमित हो गई हैं, तो मन व्याकुल हो उठा। ममता ने उनके बेटे अंशुमान से संपर्क किया और शारदा जी से भी बात की। बीच-बीच में संदेशों का आदान-प्रदान होता रहा। कभी-कभी वे अपने मनपसंद पुराने गीतों को रिकॉर्ड करके भेज देतीं। यह सब उनके जज्बे और हमारी उनकी प्रति चिंता को प्रकट करता था। धीरे-धीरे वे स्वस्थ हो गईं, और हमारे लिए वह बड़ी राहत की बात थी।
एक बार उन्होंने फिल्म ‘महारानी’ के एक गाने के लिए मुंबई आने की खबर दी, लेकिन उस बार मुलाकात नहीं हो सकी। वह गीत ‘पियवा हमार होई गये निरमोहिया ऐ सजनी’ था, जिसे डॉ. सागर ने लिखा था और रोहित शर्मा ने संगीतबद्ध किया। उनका हर गीत उनकी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव और समाज की पहचान का हिस्सा रहा।
शारदा जी ने हमेशा अपने जीवन और गायकी के संघर्षों के बारे में खुलकर बात की। वे समाज के सामने इस बात की मिसाल बनीं कि महिलाएं कैसे अपने सपनों को जी सकती हैं और हर जिम्मेदारी निभा सकती हैं। उनके जीवन की इस पूरी यात्रा में उनके पति डॉ. बृजकिशोर सिन्हा का संबल हमेशा उनके साथ रहा।
उनके जीवन का सबसे बड़ा संदेश यही है कि संघर्षों के बावजूद अपनी संस्कृति और परिवार का साथ न छोड़ें। शारदा जी ने न केवल गायकी में उच्च स्थान प्राप्त किया, बल्कि प्रोफेसर के रूप में भी अपने कर्तव्यों को निभाया। उनके माथे की लाल बिंदी और चमकदार साड़ी, उनकी गरिमा और आत्मीयता का प्रतीक थीं।
शारदा सिन्हा की जीवन यात्रा एक अद्वितीय प्रेरणा है, जिसमें भारतीय संस्कृति, संगीत और स्त्री-शक्ति के हर पहलू की झलक है। उनके गीतों की गूंज और उनके विचारों की गहराई हमें हमेशा प्रेरित करती रहेगी।