आशीष कुमार की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश पुलिस सिर्फ एनकाउंटर में ही नहीं, बल्कि अपने अन्य कारनामों के कारण भी अक्सर सुर्खियों में रहती है। इसी तरह का एक मामला रायबरेली से सामने आया, जहां पुलिस द्वारा कथित तौर पर एक फर्जी गिरफ्तारी का मामला उजागर हुआ। घटना रायबरेली के खीरो थाने की है, जहां पुलिस ने अपने तत्कालीन एसपी अभिषेक अग्रवाल को खुश करने के उद्देश्य से एक MBA डिग्री होल्डर को चोर बताकर जेल भेज दिया।
इस मामले में याची गोमती मिश्रा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दायर की, जिसमें आरोप लगाया गया कि रायबरेली पुलिस ने उनके बेटे अलख मिश्रा को झूठे चोरी के केस में फंसाया।
याचिका के अनुसार, अलख मिश्रा को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार किया गया क्योंकि उन्होंने एसपी रायबरेली को टैक्सी देने से इनकार कर दिया था। गोमती मिश्रा का दावा था कि उनके बेटे की गिरफ्तारी बदले की भावना से की गई थी।
मामले की सुनवाई के दौरान, हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस एन.के. जौहरी शामिल थे, ने इस गंभीर आरोप की जांच के लिए पुलिस कमिश्नर लखनऊ को आदेश दिया। पुलिस कमिश्नर ने कोर्ट के निर्देश पर जांच की और अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में पेश की।
जांच में यह पाया गया कि खीरो थाने के पुलिसकर्मियों ने गलत तरीके से काम किया और अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की गई। रिपोर्ट में पुलिसकर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की बात कही गई, जिसे कोर्ट ने स्वीकार किया। पुलिस कमिश्नर की रिपोर्ट और अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश के आधार पर, जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस एन.के. जौहरी की खंडपीठ ने गोमती मिश्रा की याचिका को निस्तारित कर दिया।
यह मामला यह दर्शाता है कि पुलिस द्वारा की गई गलत कार्रवाइयों की भी न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से जाँच होती है और दोषी पाए जाने पर कार्रवाई की सिफारिश की जाती है।
Author: samachar
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