सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट
दिल्ली से लगभग ढाई सौ किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले में स्थित बहादुरनगर गांव भक्ति में डूबा हुआ है। यह पटियाली तहसील का हिस्सा है और गंजडुंडवारा कस्बे से करीब पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
मक्के और मूंगफली के खेतों से घिरी पक्की सड़क बहादुरनगर में दाखिल होती है, जहां सफेद पत्थर से बना एक बड़ा दरवाजा दिखाई देता है। दरवाजे के बगल में टीन से ढंका सत्संग हॉल है, जो इस समय खाली है। इसके सामने सफेद दीवारों से बना एक आश्रम है, जिसके बगल में एक और आश्रम और फिर एक और विशाल इमारत है, जिस पर ताला लगा हुआ है।
बाहर से विशाल दिखने वाले ये आश्रम अंदर से साधारण हैं। टीन की छत वाले कमरों में सेवादार रहते हैं। यहां कोई मूर्ति नहीं है और ना ही पूजा की कोई व्यवस्था। दीवार पर नारायण साकार की जवानी की एक तस्वीर है।
सूरजपाल जाटव, जिन्हें नारायण साकार हरि या भोले बाबा के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म इसी गांव में हुआ था। भक्तों के लिए यह स्थान अब एक तीर्थस्थल बन चुका है।
आश्रम के बाहर कतार से दर्जनभर नल लगे हुए हैं। गिने-चुने भक्त यहां पहुंचते हैं, आश्रम के बाहर माथा टेकते हैं और हाथ जोड़ते हैं।
दो जुलाई को हाथरस में हुए भोले बाबा के सत्संग में मची भगदड़ में 121 लोगों की मौत के बाद से नारायण साकार और उनका यह आश्रम चर्चा में है। कई लोग इसे पाखंड या अंधविश्वास कह सकते हैं, लेकिन यहां के लोगों के लिए यह भक्ति और आस्था का प्रतीक है।
‘परमात्मा का साक्षात स्वरूप’
साधारण दलित परिवार में जन्मे सूरजपाल जाटव ने 2000 में पुलिस की नौकरी छोड़कर बहादुरनगर लौटे और खुद को नारायण साकार यानी परमात्मा का साक्षात स्वरूप घोषित कर सत्संग शुरू किया। अब उनके पीछे भक्तों की लंबी फौज है जिन्होंने अपना जीवन उन्हें समर्पित कर दिया है।
राजपाल यादव, जो नारायण साकार के संपर्क में बीस साल पहले आए थे, अपना परिवार और गांव छोड़कर यहां सेवादार बन गए। वह अब उस ट्रस्ट का हिस्सा हैं जो नारायण साकार के आश्रमों का संचालन करता है। राजपाल दो जुलाई को हुए हादसे को साजिश और नारायण साकार को साक्षात परमात्मा बताते हैं।
राजपाल बताते हैं, “यहां लगी एक-एक ईंट भक्तों के पैसों की है। जो कुछ भी आप देख रहे हैं, सभी नारायण साकार के भक्तों ने बनवाया है। यहां ना कोई मूर्ति है, ना किसी भगवान की पूजा होती है, ना किसी से दान लिया जाता है ना ही कोई प्रसाद दिया जाता है। स्वयं नारायण साकार ही परमात्मा हैं। वह अब यहां नहीं रहते हैं, लेकिन भक्त उनके जन्मस्थान के दर्शन करने पहुंचते हैं।”
हाथरस हादसे के बाद दर्ज एफआईआर में नारायण साकार नामजद नहीं हैं, लेकिन वह पुलिस जांच के दायरे में हैं। नारायण साकार के कई सेवादारों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है, जिनमें हाथरस में हुए सत्संग के मुख्य आयोजक देव प्रकाश मधुकर भी शामिल हैं।
आश्रम में मौजूद सेवादार दावा करते हैं कि पुलिस इस मामले में नारायण साकार उर्फ भोले बाबा को गिरफ्तार नहीं कर पाएगी। सेवादार जितेंद्र सिंह कहते हैं, “नारायण साकार हरि परमात्मा को कोई गिरफ्तार नहीं कर सकता है, ना मीडिया कुछ कर सकती है, ना प्रशासन कुछ कर सकता है और ना शासन। नारायण साकार की सत्ता संपूर्ण ब्रह्मांड में चलती हैं।”
सेवादारों की भक्ति
जितेंद्र अकेले नहीं हैं जो नारायण साकार की परमात्मा के रूप में पूजा करते हैं। जितेंद्र ने अब हिंदू देवी-देवताओं की पूजा बंद कर दी है। वह जोर देकर कहते हैं, “नारायण साकार मौजूदा समय के हाकिम हैं। पहले मैं राम की पूजा करता था, कृष्ण की पूजा करता था, लेकिन अब मैं जान गया हूं, नारायण ही परमात्मा हैं।”
आश्रम से जुड़े सभी लोग नारायण साकार को परमात्मा के रूप में ही देखते हैं। सेवादारों के गलों में नारायण साकार की तस्वीर वाले लॉकेट की माला है।
बहादुरनगर दलित बहुल गांव है, जहां अधिकतर मकान बिना प्लास्टर के हैं। नारायण साकार के पक्के आश्रम के समक्ष ये और भी मामूली नजर आते हैं। इस आश्रम का कई हिस्सों में विस्तार हुआ है। ऊंची सफेद दीवारों से घिरे मुख्य हिस्से का दरवाजा बंद है और बाहर ताला लगा है। यहां तैनात सेवादार किसी को भी बंद गेट के नजदीक आने नहीं देते। वे तपाक से कहते हैं, “यह पवित्र स्थल है, कोई इस गेट से आगे नहीं जाता, जूते पहनकर आप इसके करीब नहीं आ सकते।”
आश्रम का यह हिस्सा तब ही खुलता है जब नारायण साकार यहां आते हैं, जो साल 2014 के बाद से यहां नहीं आए हैं। एक बुजुर्ग औरत इस दरवाजे के बाहर हाथ जोड़ती है और फिर झुककर माथा टेकती है। कई छोटे बच्चे भी एकदम खामोशी से हाथ जोड़कर नमन करते हैं। यहां से गुजरने वाले गांव के लोग, हाथ जोड़कर ही आगे बढ़ते हैं।
इस दरवाजे पर गुलाबी यूनिफार्म पहनकर खड़े एक सेवादार का कहना है, “यहां तक पहुंच ही गए हैं तो सिर भी झुका लीजिए, बेड़ा पार हो जाएगा।”
यहां जितने भी सेवादार हैं, वे दावा करते हैं कि ट्रस्ट से किसी तरह का वेतन नहीं लेते। सुरक्षा ड्यूटी में लगे एक सेवादार अपना नाम जाहिर नहीं करते हुए कहते हैं, “हमारे परिवार से कोई ना कोई आश्रम की सेवा में लगा रहता है। जब मैं ड्यूटी नहीं कर पाता हूं, तो मेरा भाई यहां सेवा देता है। हम एक दशक से अधिक समय से इस आश्रम से जुड़े हैं।”
सेवादारों के मुताबिक, यहां सिर्फ पुरुष रहते हैं और महिलाओं को यहां रुकने की अनुमति नहीं है।
नारायण साकार की यात्रा
नारायण साकार ने 2014 में बहादुरनगर गांव छोड़ दिया था। गांव के कई लोगों ने दावा किया कि ‘जब भोले बाबा यहां सत्संग करते थे तो भारी भीड़ के जुटने से लोगों की फसल बर्बाद हो जाती थी। इसलिए वे यहां से चले गए।’
नारायण साकार अब यहां नहीं हैं, लेकिन इस आश्रम और यहां के बच्चों पर उनका प्रभाव साफ नजर आता है। नारायण साकार ने जब गांव में पहला सत्संग किया था, तब यह आश्रम नहीं बना था। उन्होंने अपनी पैतृक जमीन पर बनी झोपड़ी में सत्संग करना शुरू किया था।
अब नारायण साकार के प्रति भक्तों की भक्ति और मजबूत हो चुकी है। अंजू गौतम, जो तब दस साल की थीं, उनके पहले सत्संग में शामिल हुई थीं। अब नारायण साकार के प्रति उनकी भक्ति और भी गहरी हो गई है। अंजू कहती हैं, “उन्होंने कभी खुद को भगवान नहीं कहा है। वह लोगों को सत्य के मार्ग पर लाना चाहते हैं। पहले हमारे गांव में लड़कियां नहीं पढ़ पाती थीं, मैं बीए पास हूं, उन्होंने ही पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। पहले यहां बहुत गुंडागर्दी थी, लेकिन प्रभु के यहां आने से सब खत्म हो गया।”
पिछले दो दशकों में नारायण साकार का प्रभाव गांव से निकलकर सिर्फ आसपास के जिलों में ही नहीं, बल्कि कई प्रदेशों में भी फैल गया है। अब मैनपुरी, कानपुर, एटा और राजस्थान के दौसा में भी उनके आश्रम हैं। नारायण साकार अब अधिकतर समय मैनपुरी आश्रम में रहते हैं।
सूरजपाल के नारायण साकार बनने की यह कहानी 2000 में शुरू हुई। निसंतान सूरजपाल की गोद ली हुई बेटी का 2000 में देहांत हो गया था। तब उन्होंने अपनी शक्ति से उसे जिंदा करने का दावा किया था। कई दिन तक वे लाश के साथ रहे और फिर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था।
गांवों में इस घटना की चर्चा एक चमत्कार के रूप में फैल गई और रिहा होने के बाद सूरजपाल ने खुद को नारायण साकार घोषित कर दिया। पड़ोस के गांव चक में रहने वाले राज बहादुर याद करते हैं कि उस समय हर तरफ शोर था कि बाबा मरी हुई लड़की को जिंदा कर रहे हैं। हालांकि, राज बहादुर अब इसे अंधविश्वास मानते हैं।
नारायण साकार की कहानी सत्संग के जरिए फैलती चली गई और कई दावे उनसे जुड़ते चले गए। आश्रम के बाहर कतार से लगे कई नल ऐसे ही दावों का प्रतीक हैं। हालांकि, कुछ लोग मानते हैं कि बाबा चमत्कार नहीं करते, लेकिन उनके सत्संग में जाने से सुकून मिलता है।
चक गांव की निवासी भगवान देवी हाथरस में हुए सत्संग में शामिल हुईं थीं। भारी भीड़ देखकर वह भगदड़ मचने से कुछ देर पहले ही वहां से निकल गईं थीं। भगवान देवी के अनुसार, “चमत्कार कुछ नहीं होता, यह केवल लोगों की धारणा है। जैसे गंगा में डूबता कोई बच जाए तो उसे लगेगा कि यह चमत्कार है। इसी प्रकार भोले बाबा के साथ भी है, लोग यहां आते हैं, उन्हें कुछ फायदा हो जाता है तो उन्हें लगता है कि बाबा ने चमत्कार किया है। हमने सुना है कि आश्रम के नलों से दूध निकलता है, लेकिन मैंने तो कई साल से केवल पानी ही पीया है।”
भगवान देवी का कहना है, “हर किसी के जीवन में समस्याएं होती हैं, और सत्संग में जाने से कुछ समय के लिए वे समस्याएं दूर सी लगती हैं। इसलिए मैं भी सत्संग में जाती हूं क्योंकि वहां जाकर सुकून मिलता है।”
राम सनेही राजपूत, जो यूपी पुलिस से सब-इंस्पेक्टर पद से रिटायर हुए हैं, बताते हैं कि उन्होंने आगरा में तैनाती के दौरान सत्संग करने का मन बना लिया था। वह आगरा में पंद्रह साल तक तैनात रहे और इस दौरान सूरजपाल, जिन्होंने कुछ समय तक कोर्ट मोर्य की नौकरी भी की, से मिलते-जुलते रहते थे। राम सनेही याद करते हैं कि सूरजपाल ने अपनी बेटी की मौत के बाद दावा किया था कि वह उसे जिंदा कर देंगे, और कई दिन तक उसकी लाश के साथ रहे थे।
राम सनेही बताते हैं कि सूरजपाल ने पुलिस की नौकरी छोड़ने के बाद गांव लौटकर कहा था कि अब वह गांव में ही सत्संग करेंगे। राम सनेही ने उनसे कहा कि अगर वे उनका समर्थन नहीं करेंगे, तो विरोध भी नहीं करेंगे। धीरे-धीरे गांव के लोग, फिर आसपास के लोग सत्संग में आने लगे और लोगों ने सूरजपाल के साथ कई तरह के दावे जोड़ दिए।
राम सनेही एक घटना का जिक्र करते हुए कहते हैं कि सूरजपाल ने एक बार उन्हें आश्रम में भोजन के लिए आमंत्रित किया, लेकिन राम सनेही ने समाज के डर से वहां खाना नहीं खाया।
इस क्षेत्र में जातिवाद का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। चक गांव में ऐलार जाति के अधिकांश लोग नारायण साकार को पाखंडी और ढोंगी बताते हैं। जबकि अधिकतर नारायण साकार के समर्थक दलित हैं और उन्हें लगता है कि जाति की वजह से नारायण साकार पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
बहादुरनगर के राज बहादुर कहते हैं, “हम एससी जाति से हैं, हमारे प्रभु भी एससी हैं, इसलिए हम पर निशाना साधा जा रहा है। जैसे शम्भूक ऋषि के साथ हुआ था, वैसा ही नारायण साकार के साथ किया जा रहा है।”
बहादुरनगर के घरों में नारायण साकार की तस्वीर डॉ. भीमराव अंबेडकर की तस्वीर के साथ लगी है। सूरजपाल, जो किसान नन्हें सिंह जाटव के घर पैदा हुए थे, ने शुरुआती पढ़ाई गांव से ही की और फिर पुलिस में भर्ती हो गए। उनके एक भाई की बीमारी से मौत हो गई थी और दूसरे भाई राकेश कुमार गांव के प्रधान रहे हैं। राकेश कुमार और सूरजपाल के बीच संपत्ति को लेकर विवाद भी रहा है, लेकिन राकेश कुमार की नाबालिग बेटी नारायण साकार की भक्ति में पूरी तरह डूबी नज़र आती है।
मंगलवार को बहादुरनगर आश्रम के बाहर भक्तों की भारी भीड़ जमा होती है। आश्रम के बाहर एक दुकान चलाने वाला युवक बताता है, “मंगलवार को यहां पैर रखने की जगह नहीं रहती है। दूर-दूर से लोग आते हैं, मत्था टेकते हैं और चले जाते हैं।”
आश्रम के भीतर एक ख़ास प्रकार का काढ़ा तैयार किया जाता है, जिसे भक्त मांगने पर कागज के कप में पीते हैं और दावा करते हैं कि इससे कई तरह के फायदे होते हैं। आश्रम के बाहर कुछ परिवार बच्चों के मुंडन कराने भी पहुंचते हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि सूरजपाल ने नारायण साकार बनकर एक नया पंथ शुरू कर दिया है। उनका प्रभाव केवल कासगंज या हाथरस ही नहीं, बल्कि आसपास के जिलों के ग्रामीण इलाकों में भी बढ़ रहा है। हाथरस हादसे में मारे गए भक्तों में यूपी के कई जिलों के अलावा राजस्थान, मध्य प्रदेश और हरियाणा के लोग भी शामिल थे।
भक्त उनके चरणों की धूल को आशीर्वाद समझते हैं और कुछ उसे गले के लॉकेट में पहनते हैं। अधिकांश भक्त, जो यहां पहुंचते हैं, अपने जीवन में निराश, बीमारी से परेशान या दिक्कतों में उलझे हुए होते हैं। उन्हें लगता है कि उनके जीवन में जो कुछ भी ठीक हुआ, वह नारायण साकार के आशीर्वाद से ही हुआ है।
दुर्गेश, जो दिल्ली से बहादुरनगर आए हैं और जिनका ब्रेन ट्यूमर का ऑपरेशन हुआ है, अपनी बेहतर होती सेहत का श्रेय नारायण साकार को देते हैं। दुर्गेश कहते हैं, “मेरे पिता नारायण साकार से जुड़े थे। फिर मैं आश्रम आने लगा। मैंने परमात्मा को याद किया और मेरी मुश्किलें आसान होती चली गईं।”
भक्तों के अपने तर्क
जागरूक लोग इन दावों को पाखंड और अंधविश्वास मानकर खारिज कर सकते हैं, लेकिन बहादुरनगर पहुंचकर ऐसा लगता है कि भक्तों के लिए तर्क मायने नहीं रखते। नारायण साकार, जो एक रहस्यमयी जीवन जीते हैं और चमक-दमक से दूर रहते हैं, हाथरस हादसे के बाद ही चर्चा में आए हैं। इससे पहले, उनके भक्तों के अलावा बहुत कम लोग उन्हें जानते थे।
नारायण साकार अपने भक्तों को सत्संग या अपने कार्यक्रमों का वीडियो बनाने से सख्ती से रोकते हैं। यदि कोई वीडियो बनाने की कोशिश करता है, तो उनके सेवादार मोबाइल छीन लेते हैं। हाथरस में सत्संग के दौरान, सड़क से गुजरते हुए एक युवक ने जब वीडियो बनाने की कोशिश की, तो सेवादारों ने उसका मोबाइल छीन लिया और बमुश्किल वापस किया। फिर छुपकर उसने कुछ सेकंड का वीडियो बनाया, जिसमें भारी भीड़ नजर आ रही है।
बहादुरनगर आश्रम में मौजूद एक सेवादार कहते हैं, “बाबा को किसी वीडियो या मीडिया की जरूरत नहीं है, वह स्वयं परमात्मा हैं, स्वयं में सक्षम हैं।”
सुरक्षा में सेवादारों के दस्ते
नारायण साकार अब बड़े काफिले के साथ चलते हैं। उनकी सुरक्षा में सेवादारों के दस्ते तैनात रहते हैं। उनकी अपनी ‘नारायणी सेना’ है जो गुलाबी पोशाक पहनती है और सत्संग की व्यवस्था संभालती है। वे गरुण कहे जाने वाले कमांडो दस्ते के घेरे में चलते हैं, जो सैन्य बलों जैसी पोशाक पहनते हैं।
इन कमांडो के पहले घेरे के बाहर हरिवाहक दस्ता होता है, जो भूरी पोशाक में रहता है। नारायण साकार की सुरक्षा के अलावा इन सेवादारों की एक और अहम जिम्मेदारी है—किसी को उनकी तस्वीर या वीडियो नहीं लेने देना।
नारायण साकार से जुड़े कई भक्ति गीत यूट्यूब पर हैं। ऐसे ही गीतों के प्रोडक्शन के दौरान कई साल पहले नारायण साकार के साथ काम करने वाले एक व्यक्ति, जिन्होंने अपना नाम जाहिर नहीं किया, कहते हैं, “पहले उनके साथ इतनी तादाद में लोग नहीं थे, यह संख्या पिछले कुछ सालों में बहुत तेजी से बढ़ी है।”
अधिकतर भक्त जो नारायण साकार के साथ जुड़े हैं, वे अन्य भक्तों के माध्यम से आश्रम के संपर्क में आए। अपने प्रचार-प्रसार के लिए नारायण साकार ने कभी मीडिया या सोशल मीडिया का सहारा नहीं लिया। उन्होंने भक्तों और सेवादारों का ऐसा नेटवर्क बनाया, जो नए लोगों को उनके साथ जोड़ते चले गए। अब हाथरस, कासगंज, अलीगढ़, मथुरा, फर्रुखाबाद, बदायूं, बहराइच, कानपुर से लेकर कई जिलों के ग्रामीण इलाकों में उनका अपना पंथ बढ़ रहा है।
हादसे के बाद भी भक्तों का विश्वास
हाथरस हादसे के बाद भी, उनके अधिकतर भक्त उनसे जुड़े हुए हैं। हालांकि, अपने परिजनों को गंवाने वाले कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अपना आक्रोश जाहिर कर रहे हैं।
अपनी नानी को गंवाने वाली मृत्युंजा गौतम कहती हैं, “कोई अपने आप को भगवान कैसे घोषित कर सकता है, लोग उसे कैसे भगवान मान सकते हैं?”
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."