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घोसी में क्यों “हारा” बीजेपी का “दारा”…हार के कई फैक्टर हैं…

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सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट 

उत्तरप्रदेश के घोसी उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी दारा सिंह चौहान बड़े अंतर से हार गए। समाजवादी पार्टी के सुधाकर सिंह ने दारा सिंह चौहान को बड़े अंतर से हरा दिया। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में दारा सिंह चौहान 20 हजार के अधिक वोटों से जीते थे। मगर उपचुनाव में घोसी की जनता ने उनका साथ नहीं दिया। यूपी की राजनीति मे दारा सिंह चौहान को मौसम वैज्ञानिक माना जाता है। वह अभी तक पांच बार पार्टी बदल चुके हैं। पिछले दो चुनाव से उनका आकलन गलत साबित हुआ। 2022 में दारा सिंह को उम्मीद थी कि बीजेपी यूपी की सत्ता में दोबारा नहीं लौटेगी मगर उनका अनुमान गलत साबित हुआ। दारा सिंह खुद को घोसी से जीत गए मगर यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार दूसरी बार बन गई।

दलबदलू की छवि पड़ गई भारी

दारा सिंह चौहान ने कांग्रेस से अपनी राजनीति शुरू की। इसके बाद उन्होंने मुलायम सिंह के दौर में समाजवादी पार्टी में शामिल हुए। सपा से बीएसपी में चले गए और फिर समाजवादी पार्टी में लौटे। 2017 में बीजेपी से चुनाव लड़े और मधुबन सीट के विधायक बने। विधानसभा चुनाव से पहले दारा सिंह चौहान बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हुए। जब बीजेपी की सरकार बनी तो फिर से बीजेपी का दामन थाम लिया। उपचुनाव में दारा सिंह का दलबदल जनता को रास नहीं आया। जुलाई में उन्होंने दोबारा बीजेपी जॉइन की थी। दो महीने में उन्हें मौका नहीं मिला कि खुद को भाजपा कार्यकर्ता के तौर पर स्थापित कर सके। घोसी के वोटर उन्हें समाजवादी पार्टी के नेता ही समझ बैठे।

बीजेपी कार्यकर्ताओं की नाराजगी

दारा सिंह के बीजेपी में वापसी से स्थानीय भाजपा कार्यकर्ता भी नाराज बताए जा रहे थे। पिछले चुनावों में दारा सिंह चौहान ने बतौर समाजवादी पार्टी के कैंडिडेट बीजेपी के स्थानीय कार्यकर्ताओं को काफी भला-बुरा कहा था। कई इलाकों में दारा समर्थक सपा कार्यकर्ताओं से बीजेपी कार्यकर्ताओं की झड़प भी हुई थी। उपचुनाव में पार्टी के बड़े नेताओं ने दारा सिंह का खुलकर साथ दिया मगर कार्यकर्ताओं का दिल नहीं जीत पाए। बीजेपी कार्यकर्ताओं ने भी उनमें दलबदलू की छवि देखी। साथ देने वाले राजभर भी दलबदलू का टैग लेकर ही समर्थन करते रहे, जिसे जनता ने पसंद नहीं किया।

बीएसपी ने भी कर दिया गेम

बहुजन समाज पार्टी ने इस चुनाव में अपने प्रत्याशी नहीं उतारे थे। इससे उलट समाजवादी पार्टी को कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों का समर्थन हासिल था। बीएसपी ने खुले तौर पर अपने कार्यकर्ताओं को नोटा पर वोट देने की अपील कर दी। साथ ही मायावती ने केंद्र सरकार की आलोचना कर यह संदेश दिया कि बीजेपी को वोट देना जरूरी नहीं है। घोसी में दस फीसदी वोटर दलित बिरादरी के हैं। दलित वोटरों ने नोटा के बजाय सपा को वोट दिया। इस कारण दारा सिंह के हार का मार्जिन काफी बड़ा रहा। दारा सिंह मधुबन विधानसभा के रहने वाले हैं। इस कारण उन पर बाहरी होने का ठप्पा भी लगा।

ठाकुर-भूमिहार वोटर की नाराजगी

दारा सिंह चौहान को सवर्ण वोटर विशेषकर ठाकुर और भूमिहार वोटरों की नाराजगी की कीमत चुकानी पड़ी। योगी आदित्यनाथ भी प्रचार के लिए आखिरी चरण में उतरे। 2022 में बीजेपी का साथ देने वाले ठाकुर और भूमिहार वोटर और कार्यकर्ता दारा सिंह चौहान के बीजेपी में आने से खुश नहीं थे। यूपी के बिजली मंत्री अरविंद शर्मा के समर्थक भी दारा सिंह चौहान से नाराज थे। अफसर से नेता बने अरविंद शर्मा मऊ के रहने वाले हैं। इसके अलावा किसानों ने भी भाजपा का विरोध किया। बीजेपी को उम्मीद थी कि दारा सिंह चौहान को जाति का वोट बैंक ट्रांसफर हो जाएगा, मगर ऐसा नहीं हो सका और दारा सिंह चौहान हार गए।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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