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November 23, 2024 10:44 am

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… महज कपड़े का एक टुकड़ा हमें कब तक हिंदू-मुसलमान के तौर पर दोफाड़ करता रहेगा ?

12 पाठकों ने अब तक पढा

अनिल अनूप की खास रिपोर्ट

ईद के पाक त्योहार के दिन राजस्थान के जोधपुर में जो कुछ हुआ, उसका विश्लेषण करने से पहले हम आपको याद दिला दें कि यह दिन बेहद महत्त्वपूर्ण था। इसी दिन महर्षि वेदव्यास ने ‘महाभारत महाकाव्य की रचना आरंभ की थी। इसी दिन सतयुग समाप्त हुआ था और समय ने त्रेता युग में प्रवेश किया था। परशुराम जी का जन्म भी इसी दिन हुआ था। अक्षय तृतीया कोई सोना-चांदी खरीदने का ही दिन नहीं है। यह तो पंडितों और व्यापारियों का धार्मिक खेल है। इस बार ईद-उल-फितुर का उत्सव भी इसी दिन आया। यह बड़ा महान और अलौकिक संयोग है। खून और हिंसा का उन्माद पैदा करने वाले इस ‘दैवीय दिवस की महत्ता ही नहीं जानते। उन्हें तो यह ज्ञान भी नहीं मिला होगा कि ईद रोजेदारों के लिए अल्लाह का बेशकीमती इनाम है। ईद अमन-चैन, भाईचारे, बरकत और इनसानियत का पर्व है। ईद पर अकीदतमंदों ने अमन-चैन की दुआ की होगी। इस दिन नमाज अदा करने के बाद सांप्रदायिक सद्भाव की ही अभिव्यक्ति होनी चाहिए। इनसान गले मिलते हैं, मुबारकें देते हैं, दुआएं करते हैं, लेकिन अचानक पत्थर, लाठी-डंडे, सरिए, नंगी तलवारें और छुरे तक कहां से आ जाते हैं।

इनसानियत और भाईचारे की दुआ मांगने के बाद सिर पर कौन-सा उन्माद छाने लगता है! किसका खून सवार हो उठता है! हम मानते हैं कि यह मुट्ठी भर सिरफिरों का साजिशाना खेल है। क्या हमारे पाक त्योहारों और खासकर लोकतंत्र का बलिदान करना पड़ेगा?  हम एक महान और विराट देश के नागरिक हैं।

हमारी सभ्यता और संस्कृति प्राचीन है और आपसी सहिष्णुता सिखाती है। हमारे देश के संविधान ने हमारे समान मौलिक अधिकार तय कर रखे हैं। हम विविधता में एकता के साथ जीते आए हैं।

भगवा भी हमारा है और चांद-तारों वाला झंडा भी हमारा है। हमारे राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगा में भगवा और हरा दोनों ही रंग हैं। उनकी मज़हबी व्याख्या मत कीजिए। सियासी और मज़हबी ठेकेदारों की साजि़श और अपील को खारिज कर दें। नाकाम बना दें।

अब तो ऐसा महसूस होने लगा है मानो दंगे-फसाद, सांप्रदायिक तनाव, टकराव और कोहराम ही हमारी नई सामाजिक-धार्मिक संस्कृति हैं! पथराव करना, घरों-दुकानों में घुसकर मार-पीट करना, बच्चों के कपड़े तक फाड़ देना, नंगी तलवारें भांजते हुए किसी वाहन का पीछा करना, किसी मासूम की पीठ में छुरा घोंपना आदि हिंसक हरकतें ही हमारे देश की दिनचर्या बन गई हों!

इस साल अभी तक 10 राज्यों में सांप्रदायिक हमले और दंगे-फसाद की घटनाएं हो चुकी हैं। बेचारी पुलिस या अद्र्धसैन्य बलों के जवान क्या कर सकते हैं? सरकार के जैसे आदेश होंगे, ठीक वैसे ही कार्रवाई की जाएगी।

जोधपुर में स्वतंत्रता सेनानी बाल मुकुंद बिस्सा की प्रतिमा का अपमान किया गया। उन्होंने भारत की आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी थी, कुर्बानी दी थी, न कि हिंदुस्तान या मुस्लिमस्तान में विभाजित देश के लिए क्रांति की थी।

जोधपुर के 10 थाना-क्षेत्रों में बुधवार रात्रि 12 बजे तक कफ्र्यू है। इनमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का चुनाव-क्षेत्र सरदारपुरा भी है।

यानी मुख्यमंत्री के अपने घर में भी सांप्रदायिक कोहराम मचा है। यह जोधपुर की परंपरा नहीं है। देश में सांप्रदायिक विभाजन की जितनी भी घटनाएं हो रही हैं, यकीनन केंद्रीय गृह मंत्रालय भी उन्हें देख रहा होगा! प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को भी समूची जानकारियां होंगी! क्या कानून-व्यवस्था को राज्य का विशेषाधिकार मानते हुए केंद्र सरकार खामोश और निष्क्रिय बैठी रह सकती है।

प्रधानमंत्री विदेशी प्रवास पर हैं और यहां देश के कुछ महत्त्वपूर्ण हिस्से जल रहे हैं। सुलग रहे हैं और विभाजन का उन्माद फैलाया जा रहा है। यह सब कब तक जारी रहेगा? प्रधानमंत्री को लौट कर मुख्यमंत्री को तलब करना चाहिए। ये हमले सिर्फ कानून-व्यवस्था के मामले नहीं है, बल्कि देश का भाईचारा तोड़ रहे हैं।

हमारा धर्मनिरपेक्ष चरित्र दाग़दार होता जा रहा है। प्रधानमंत्री जी! तुरंत कुछ कीजिए, यह देश के सह-अस्तित्व का सवाल है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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