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खास खबर

“ये हूं मैं जो सिर्फ आगे बढ़ने के लिए मर्दों की मार भूल जाती है…..”

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अनिल अनूप की खास रिपोर्ट

हरे पहाड़ों से घिरे असम के कामरूप का गांव। लंबे-लंबे पेड़ों में लगी सुपारी जैसे आसमां को ललचा रही हो। मिट्‌टी के घरों के बीच से दौड़ती-भागती मुर्गियां भी खुश दिखती हैं। राभा जनजाति सदियों से सुपारी बेचकर हिमालय की गाेद में सुकून की जिंदगी गुजारते रहे हैंं। यहां की कच्ची सड़क पर माथे पर लाल बिंदी लगाए सूती साड़ी में सिमटी महिलाओं को देखकर इन्हें बेचारी समझने की भूल न करें। यह सभी लघु उद्यमी हैं।

कभी सुपारी बेचकर जिंदगी बसर करनेवाली इस जनजाति की महिलाएं आज सुपारी के पत्तों की प्लेट बनाकर बेच रही हैं। इस रोजगार ने न केवल इनके लेडीज पर्स को भरा है बल्कि इनमें आत्मविश्वास जगाया है। एक लघु उद्यमी अल्पना दास बताती हैं कि उनका शराबी पति काम नहीं करता। ऐसे में वह इस नए काम को सीखने के बाद 10 हजार रुपया महीना कमाने लगी है। इस पैसे का इस्तेमाल वह अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए करती हैं।

अल्पना जैसी ढेरों महिलाओं को यह काम सिखाने का श्रेय जाता है निधि गुप्ता को। निधि गुप्ता अपनी संस्था धृति के माध्यम से महिलाओं को उद्यमी बनाने का काम कर रही हैं। निधि बताती हैं कि लाल चूड़ियों से सजी पतली-नाजुक कलाइयां जब प्लेट बनानेवाली भारी मशीनों को चलाती हैं, तो लगता है कि इनको प्रशिक्षित किए जाने का मेरा प्रयास सफल हाे गया। आज करीब 1 हजार परिवार इसका फायदा उठा रहा हैं।

करीब दो दशक पहले निधि गुप्ता ने अपनी मोटी तनख्वाह वाली नौकरी छोड़ दी। तब उम्र केवल 24 साल थी इसलिए सबने नादां समझकर समझाया… नौकरी मत छोड़ो ! लेकिन दिल और दिमाग ने एक ही रट लगा धृति रखी थी … कुछ करना है… कुछ अपना करना है। कुछ दोस्तों के साथ मिलकर अपने नए कंसेप्ट को लेकर निधि महीनों तक कंपनियों के चक्कर लगाती। शुरुआत में निराशा हाथ लगी लेकिन आज उनकी संस्था ध ढेरों महिलाओं को लघु उद्यमी बनने का प्रशिक्षण दे रही है।

बिटिया के जन्म के बाद उन्होंने महसूस किया कि उनकी जिम्मेदारी नन्हीं जान के प्रति ज्यादा बढ़ गई हैं।इसी समय निधि को यह अहसास हुआ कि उनके संगठन से जुड़ी महिलाओं के साथ भी यह दिक्कत आती होगी। तब उन्होंने यह नियम बनाया कि कोई भी महिला अपने छोटे बच्चों के साथ प्रशिक्षण लेने आ सकती है। प्रशिक्षण की जगह पर बच्चों की देखभाल के लिए सभी चीजें उपलब्ध है ताकि मां बिना किसी तनाव के प्रशिक्षण ले सकें।

आज धृति की मदद से बड़ी संख्या में लड़कियां ब्यूटीशियन बनने की ट्रेनिंग ले रही हैं।लेकिन इन सब लड़कियों के लिए यह आसान नहीं था। घर में या किराए पर छोटा सा पार्लर खोलने के इस सपने में घर के लोग ही बाधा बन रहे थे। किसी के पति को पत्नी का घर से बाहर निकलना पसंद नहीं था, तो कहीं जवान लड़की को उसका पिता धर से बाहर नहीं भेजना चाहता था।

निधि बताती हैं कि एक बार एक लड़की के पिता उनसे झगड़ने लगे कि उनकी वजह से बेटी घर से बाहर (प्रशिक्षण के लिए) निकलने लगी है, जो सही नहीं। निधि बताती हैं कि बाद में संस्था में दूसरी महिलाओं को प्रशिक्षण लेता देखकर पिता आश्वस्त हुए और अपनी बेटी को काम सीखने की इजाजत दी। आज जब कभी उनसे मुलाकात होती है,तो वे निधि को शुक्रिया कहना नहीं भूलते।

निधि बताती हैं कि हर औरत का एक सपना होता है और उसे पूरा करने के लिए सब अपने-अपने हिस्से का संघर्ष करती हैं। कुछ ने केवल इसलिए पति की मार खाई कि वह उसे पार्लर की ट्रेनिंग करनी थी। उसे लगता था कि वह पति के खिलाफ आवाज उठाएगी, तो उसका घर से निकलना बंद हो जाएगा।

निधि बताती है कि महिलाओं की इन स्थितियों को देखकर दुख होता है। इसमें कोई शक नहीं कि स्वावलंबी होने के बाद या अपने पैरों पर खड़ा होते ही इनके घरों में इनकी कद्र बढ़ जाती है। ये अपने हिसाब से पैसे खर्च पाती हैं। उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और जीवन के प्रति उदासीनता में कमी आती है।

उद्योग के बारे में प्रशिक्षण देने के पहले महिलाओं की बातें सुनी जाती है, उनके बैकग्राउंड, पसंद-नापसंद पर चर्चा होती है। इस चर्चा को चाय-गरम कहते हैं। इनदिनों निधि गोदरेज के साथ मिलकर ब्यूटी सलून चलाने की ट्रेनिंग दे रही है। इस प्रोग्राम से 250 महिलाएं जुड़ी हैं। इन महिलाओं ने करीब 4500 लड़कियों को प्रशिक्षण दिया।

प्रशिक्षण की यह शृंख्ला यूं ही चलती रही, तो मासूम आंखों से कभी लाचारी के आंसू नहीं टपकेंगे और होंठों से कभी हंसी नहीं रूठेगी।

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samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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