जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी के सिंधु जल संधि पर दिए गए बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। भारत सरकार द्वारा संधि की समीक्षा के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए मदनी ने कहा कि “हजारों वर्षों से बह रही नदियों का पानी रोका नहीं जा सकता, इसे रोकना सही नहीं है।”
“पाकिस्तान हमारे सैनिकों का खून बहा रहा है, और मदनी कह रहे हैं कि उसका पानी भी न रोका जाए? यह कैसी सोच है?” — शाहनवाज हुसैन
भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन ने मदनी के बयान को न केवल असंवेदनशील बताया बल्कि यह भी कहा कि “पूरा देश आतंकवाद के खिलाफ एकजुट है और ऐसे बयान समाज में भ्रम और नाराजगी फैलाते हैं।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि मुस्लिम समुदाय के बीच भी जमीयत उलेमा-ए-हिंद को लेकर रोष है और मदनी को सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए।
दूसरी ओर, मौलाना मदनी ने अपने बयान को दोहराते हुए कहा कि “हुकूमत नफरत की नहीं, मोहब्बत की होनी चाहिए। सदियों से बह रही सतलज, व्यास, रावी, चेनाब और झेलम को अचानक रोकना न तो संभव है, न ही उचित।”
गौरतलब है कि हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध बेहद तनावपूर्ण हो गए हैं, और भारत सरकार ने सिंधु जल संधि की समीक्षा की प्रक्रिया शुरू कर दी है। पाकिस्तान को आशंका है कि इससे देश में जल संकट गहरा सकता है।
इस बयानबाज़ी ने एक बार फिर यह बहस छेड़ दी है कि राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर मामलों में धार्मिक नेताओं को किस हद तक बयान देना चाहिए।