उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले सियासी हलचल तेज़ हो गई है। चंद्रशेखर आज़ाद और स्वामी प्रसाद मौर्य नए गठबंधन की तैयारी में हैं, जो दलित-मुस्लिम-ओबीसी समीकरण के साथ सियासी समीकरण बदल सकता है।
अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
सियासी जंग की शुरुआत: 2027 की तैयारी में जुटे चंद्रशेखर आज़ाद
उत्तर प्रदेश में भले ही विधानसभा चुनाव दो साल दूर हों, लेकिन राजनीतिक हलचलों ने अभी से तापमान बढ़ा दिया है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जहां छोटे दलों के सहयोग से सत्ता की हैट्रिक के सपने देख रही है, वहीं समाजवादी पार्टी (सपा) कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर वापसी की राह तलाश रही है। इसी सियासी रणभूमि में एक नया मोर्चा बनता नज़र आ रहा है—आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद की अगुआई में।
थर्ड फ्रंट की दस्तक: चंद्रशेखर-स्वामी प्रसाद की रणनीति
चंद्रशेखर आज़ाद ने सोमवार को लखनऊ में पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य से मुलाकात की, जिससे नए सियासी गठबंधन की अटकलें तेज हो गई हैं। माना जा रहा है कि यह मुलाकात सिर्फ शिष्टाचार भर नहीं थी, बल्कि 2027 के लिए थर्ड फ्रंट की ठोस नींव रखने की कोशिश थी। दोनों नेता दलित, पिछड़ा और मुस्लिम (डीएमओ) समीकरण को केंद्र में रखकर नया गठजोड़ बनाने की रणनीति बना रहे हैं।
एनडीए-INDIA से दूरी, नया सियासी प्रयोग
चंद्रशेखर आज़ाद भलीभांति समझते हैं कि न तो NDA में उनके लिए जगह है, न ही INDIA गठबंधन में। भाजपा के साथ जाना उनके वोटबेस के लिए जोखिम भरा है और मायावती पहले ही उन पर तीखे हमले कर चुकी हैं। ऐसे में एक स्वतंत्र सियासी विकल्प ही उनके लिए सबसे बेहतर रास्ता है।
बहुजन एकता की नई पटकथा
स्वामी प्रसाद मौर्य और चंद्रशेखर आज़ाद की मुलाकात को सामाजिक न्याय और बहुजन एकता के मिशन के रूप में पेश किया जा रहा है। स्वामी प्रसाद मौर्य, जो बसपा, भाजपा और सपा में अपनी राजनीतिक यात्रा कर चुके हैं, अब ‘अपनी जनता पार्टी’ के साथ नई शुरुआत कर रहे हैं। दोनों नेताओं ने 2027 के चुनाव में एक साथ उतरने की मंशा जाहिर की है।
मुस्लिम राजनीति में भी असर: आजम खान की भूमिका
चंद्रशेखर की सियासी रणनीति में एक और अहम नाम है—आजम खान। जेल में बंद रहने के दौरान भी चंद्रशेखर ने आजम से मुलाकात की थी और उनके समर्थक सपा से नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। यदि आजम खान, असदुद्दीन ओवैसी और चंद्रशेखर एक साथ आते हैं, तो पश्चिम यूपी में मुस्लिम वोटों का बड़ा ध्रुवीकरण संभव है।
दलित-मुस्लिम-ओबीसी समीकरण: एक शक्तिशाली फॉर्मूला
2024 के लोकसभा चुनाव में नगीना से जीत हासिल कर चुके चंद्रशेखर अब दलित-मुस्लिम और ओबीसी वोटों को एकजुट करने में लगे हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य का ओबीसी समुदाय में गहरा असर है, वहीं चंद्रशेखर दलित युवाओं के बीच लोकप्रिय चेहरा बन चुके हैं। ओवैसी मुस्लिम वोट बैंक पर मजबूत पकड़ रखते हैं। ऐसे में ये गठजोड़ मायावती, सपा और यहां तक कि भाजपा के लिए भी सिरदर्द बन सकता है।
मायावती का पलटवार: बसपा के नाम पर वोट काटने की साजिश
इस नए गठजोड़ से बसपा प्रमुख मायावती सतर्क हो गई हैं। उन्होंने चंद्रशेखर और मौर्य का नाम लिए बिना बहुजन समाज को आगाह किया कि ये छोटे दल सिर्फ बसपा को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने दो टूक कहा कि बसपा ही दलितों की एकमात्र हितैषी पार्टी है और बाकी सब भ्रम फैला रहे हैं।
2027 में तिकोना मुकाबला तय?
जिस तरह से चंद्रशेखर आज़ाद, स्वामी प्रसाद मौर्य और संभावित रूप से ओवैसी व आजम खान एक साथ आते दिख रहे हैं, वह 2027 के चुनाव में उत्तर प्रदेश की सियासत को तिकोना बना सकता है। भाजपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन के बीच एक मजबूत तीसरा विकल्प बहुजन, पिछड़ा और मुस्लिम मतदाताओं को आकर्षित कर सकता है।