अनिल अनूप
दिल्ली ने अपना मताधिकार प्रयोग कर लिया है और अब 8 फरवरी को नतीजे तय करेंगे कि राजधानी की जनता किसे सत्ता सौंपने जा रही है। इस बार के चुनावों में कुल मतदान 60.4% दर्ज किया गया, जो कि लोकसभा चुनाव की तुलना में बेहतर है, लेकिन 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों से कम रहा। करीब 65 लाख से अधिक मतदाता मतदान करने नहीं निकले, जो एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए चिंता का विषय है। दिल्ली जैसा जागरूक और शिक्षित महानगर भी मताधिकार के प्रति इतनी उदासीनता क्यों दिखा रहा है? यह प्रश्न लोकतांत्रिक चेतना पर गंभीर बहस की मांग करता है। लोकतंत्र में मतदान ही नागरिकों का सबसे बड़ा अधिकार और कर्तव्य है, लेकिन जब शिक्षित वर्ग भी इसे हल्के में लेता है, तो यह निराशाजनक स्थिति बनती है।
दिल्ली, जो कि ‘मिनी इंडिया’ के रूप में पहचानी जाती है, वहां के जनादेश की गूंज पूरे देश में सुनाई दे सकती है। दिल्ली में बीते 12 वर्षों से आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार है, जबकि उससे पहले 15 वर्षों तक कांग्रेस सत्ता में रही। इस प्रकार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 27 वर्षों से राजधानी में सत्ता से दूर रहना पड़ा है। इस बार के चुनाव भाजपा और ‘आप’ दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यह चुनाव उनके राजनीतिक भविष्य की दिशा तय कर सकता है।
मतदान के रुझान और उनके निहितार्थ
दिल्ली के विभिन्न इलाकों में मतदान प्रतिशत में भारी असमानता देखने को मिली। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की नई दिल्ली सीट पर मात्र 54.7% मतदान हुआ, जबकि शिक्षा मंत्री आतिशी की कालकाजी सीट पर सिर्फ 52% मतदाताओं ने मतदान किया। इन इलाकों में हिंदू मतदाताओं की संख्या अधिक है, लेकिन यहां केजरीवाल और भाजपा, दोनों के समर्थकों में अपेक्षित उत्साह नहीं दिखा। इसके विपरीत, मुस्लिम बहुल सीटों जैसे मुस्तफाबाद, सीलमपुर और शाहीन बाग में भारी मतदान हुआ, हालांकि यह भी 70% के आंकड़े को पार नहीं कर सका। विशेष रूप से उन क्षेत्रों में, जहां 2020 में सांप्रदायिक दंगे हुए थे, वहां मुसलमानों ने बड़ी संख्या में मतदान किया। यह दर्शाता है कि इन क्षेत्रों के मतदाता अपने अधिकारों और सुरक्षा को लेकर अधिक सजग हैं।
एग्जिट पोल के अनुमान: भ्रम या सच्चाई?
चुनाव के बाद सामने आए 10 एग्जिट पोल्स में से 8 भाजपा को बढ़त दिखा रहे हैं, जबकि केवल 2 ने ‘आप’ की सत्ता में वापसी का अनुमान लगाया है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में एग्जिट पोल के अनुमान कई बार गलत साबित हुए हैं। हाल ही में हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और यहां तक कि लोकसभा चुनावों में भी पोल्स की भविष्यवाणियां गलत निकली थीं। ऐसे में यह तय नहीं किया जा सकता कि भाजपा की सरकार बनेगी या आम आदमी पार्टी एक बार फिर सत्ता में लौटेगी। लेकिन एक बात निश्चित है कि इस चुनाव का परिणाम ऐतिहासिक होने वाला है।
‘आप’ की साख पर सवाल और चुनावी मुद्दे
आम आदमी पार्टी का उदय भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से हुआ था, लेकिन अब वही पार्टी खुद भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में घिरी हुई है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और राज्यसभा सांसद संजय सिंह को जेल जाना पड़ा, हालांकि वे फिलहाल जमानत पर बाहर हैं। जनता के मन में इन आरोपों को लेकर सवाल हैं, और शायद इसी कारण इस बार ‘आप’ को अपने पारंपरिक समर्थन में कुछ गिरावट का सामना करना पड़ सकता है।
इस चुनाव में कई अहम मुद्दे चर्चा में रहे। दिल्ली की जहरीली हवा, यमुना नदी का प्रदूषण, खराब सड़कें, शराब घोटाला और पानी की गुणवत्ता जैसे मसलों पर ‘आप’ की सरकार को विपक्ष ने कठघरे में खड़ा किया। ये मुद्दे चुनावी माहौल में ‘आप’ के खिलाफ जाते दिख रहे हैं। यदि आम आदमी पार्टी हारती है, तो यह उसकी राजनीतिक संरचना के लिए एक बड़ा झटका होगा, क्योंकि ‘आप’ एक कैडर-आधारित पार्टी नहीं है और पार्टी में आंतरिक टूट-फूट संभव है। वहीं, अगर केजरीवाल जीत जाते हैं, तो उनकी राजनीतिक साख और ब्रांड को मजबूती मिलेगी।
निष्कर्ष: लोकतंत्र का भविष्य और जनादेश की दिशा
दिल्ली के मतदाताओं ने अपनी भूमिका निभा दी है, अब बारी जनादेश की है। यदि मतदान प्रतिशत और विभिन्न सीटों पर मतदान पैटर्न को देखें, तो स्पष्ट है कि जनता के भीतर असमंजस और असंतोष दोनों हैं। दिल्ली का यह चुनाव न केवल स्थानीय प्रशासन और पार्टी की लोकप्रियता को परखेगा, बल्कि यह भी तय करेगा कि भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद जनता ‘आप’ पर भरोसा बनाए रखेगी या नहीं।
राजधानी का जनादेश केवल दिल्ली तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसकी राजनीतिक प्रतिध्वनि पूरे देश में सुनाई देगी। चाहे भाजपा की जीत हो या ‘आप’ की वापसी, दोनों ही स्थितियों में यह चुनाव भारत की लोकतांत्रिक राजनीति के लिए एक नया संदेश देगा। 8 फरवरी को जब परिणाम सामने आएंगे, तब यह स्पष्ट हो जाएगा कि दिल्ली की जनता ने किसके हाथों में अपनी सत्ता सौंपी है और देश की राजनीति किस दिशा में आगे बढ़ने वाली है।
Author: मुख्य व्यवसाय प्रभारी
जिद है दुनिया जीतने की