कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के एटा जिले के नगला पवल गांव से एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने मानवता को झकझोर कर रख दिया है। यह कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि उन तमाम गरीब और बेसहारा लोगों की है, जो समाज और प्रशासन की बेरुखी के कारण अंधेरे में जीने को मजबूर हैं।
दो साल पहले बिछी थी बर्बादी की बुनियाद
करीब दो साल पहले इस परिवार के मुखिया का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था। बीमारी ने परिवार की आर्थिक स्थिति को इस कदर खोखला कर दिया कि इलाज तक के पैसे नहीं बचे। जब इलाज के लिए पैसे की जरूरत थी, तब कोई सहारा नहीं मिला, और अंततः घर के इकलौते कमाने वाले की मौत हो गई। उसके बाद से यह परिवार, जिसमें छह मासूम बच्चे भी शामिल हैं, भुखमरी और बदहाली का शिकार हो गया। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई तो दूर, उनके लिए दो वक्त का भोजन जुटाना भी असंभव हो गया था।
मां ने बेबसी में चुना मौत का रास्ता
परिवार की स्थिति इतनी दयनीय हो गई कि रोज-रोज की भूख, बेबसी और तंगी से परेशान होकर 35 वर्षीय सुमन ने तीन दिन पहले कीटनाशक खाकर आत्महत्या कर ली। पति की मौत के बाद सुमन अकेले छह बच्चों की जिम्मेदारी नहीं उठा पा रही थीं। लगातार भूखे बच्चों की बेबस निगाहें और गरीबी का अंधेरा उनके जीवन को दिन-ब-दिन और कठिन बनाता गया। अंततः सुमन टूट गईं और इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।
घर में राशन नहीं, बिजली नहीं, कपड़े तक नहीं
सुमन की भाभी लक्ष्मी देवी ने बताया कि परिवार हर संभव संकट से गुजर रहा था। दादी के नाम से जो राशन कार्ड था, उसमें बच्चों के नाम नहीं जुड़े थे, इसलिए उन्हें राशन भी नहीं मिलता था। घर में बिजली का कनेक्शन नहीं था, जिसके कारण छोटे-छोटे बच्चे अंधेरे में रहने को मजबूर थे। दादी को विधवा पेंशन भी नहीं मिलती थी, जिससे घर में एक पैसा तक नहीं था।
गरीबी इस कदर थी कि बच्चों के पास पहनने के लिए सिर्फ एक-दो जोड़ी कपड़े ही थे। ठंड के मौसम में ठिठुरते बच्चों के पास एक भी कंबल नहीं था। उनके पास ना खाने का कोई साधन था, ना कोई सरकारी मदद। यह परिवार समाज और सरकार के बीच कहीं खो गया था, जहां किसी की नजर उन पर नहीं पड़ी।
गांव वालों ने कराया अंतिम संस्कार, प्रशासन बेखबर
गांव के एक निवासी ओमप्रकाश ने बताया कि सुमन की हालत बेहद खराब थी, और वह पूरी तरह टूट चुकी थीं। उनके पास न कोई उम्मीद थी, न कोई सहारा। उनकी मौत के बाद गांव के लोगों ने मिलकर बिना किसी सरकारी औपचारिकता के उनका अंतिम संस्कार कर दिया। पुलिस को भी सूचना नहीं दी गई, क्योंकि परिवार के पास इतना भी सामर्थ्य नहीं था कि वे किसी कानूनी प्रक्रिया में पड़ें।
मौत के बाद प्रशासन ने दिखाई थोड़ी संवेदनशीलता
इस घटना की जानकारी जब प्रशासन तक पहुंची, तो अधिकारियों ने तुरंत बच्चों के लिए खाने-पीने का राशन और कुछ जरूरी सामान उपलब्ध कराया। हालांकि यह मदद तब आई, जब परिवार की मुखिया सुमन इस दुनिया से जा चुकी थीं। यह घटना सिर्फ एक मां की मौत नहीं, बल्कि सिस्टम की असफलता का प्रमाण है।
कब तक भूख और गरीबी मारती रहेंगी?
यह कहानी उस सच्चाई को उजागर करती है, जिसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। यह सिर्फ नगला पवल गांव की नहीं, बल्कि उन हजारों परिवारों की कहानी है, जो गरीबी के कारण रोजाना मौत की तरफ बढ़ रहे हैं। सवाल यह है कि ऐसी घटनाओं के बाद ही प्रशासन क्यों जागता है? क्या सरकार की योजनाएं सिर्फ कागजों तक सीमित हैं? अगर सही समय पर इस परिवार की मदद की जाती, तो शायद छह मासूम बच्चों की मां आज जिंदा होती।
सरकार को चाहिए कि वह इस परिवार के बच्चों के लिए स्थायी समाधान निकाले, ताकि वे शिक्षा और भोजन जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित न रहें। वरना यह सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि ऐसी कई और त्रासदियों की शुरुआत भर होगी।