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आज का मुद्दा

एकलव्य के अंगूठे से लेकर तपस्या जैसे शब्दों पर अपनी भाषा ज्ञान बघाडने के चक्कर में फंसे राहुल

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शशांक झा की रिपोर्ट

संसद में संविधान पर चर्चा के दौरान विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने जब ‘तपस्या’ का जिक्र किया, तो उनके बयान पर सदन में जोरदार ठहाके गूंजने लगे। राहुल गांधी ने अपने तरीके से ‘तपस्या’ का अर्थ समझाने का प्रयास किया, लेकिन उनके कथन ने सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को हंसने पर मजबूर कर दिया।

राहुल गांधी ने तपस्या का क्या मतलब बताया?

संसद में एकलव्य की कहानी का हवाला देते हुए राहुल गांधी ने कहा, “जब मैं छोटा था, तब देखता था कि एक बच्चा सुबह चार बजे तपस्या करता था। वह धनुष चलाने की खूब मेहनत करता था।” जैसे ही उन्होंने ‘तपस्या’ का जिक्र किया, विपक्ष के कुछ नेताओं ने टोका। राहुल गांधी ने अपनी बात को संभालते हुए कहा, “धनुष में तपस्या है, मनरेगा के काम में तपस्या है।”

हालांकि, इसके बाद राहुल गांधी ने जो कहा, उससे सदन में हंसी का माहौल बन गया। उन्होंने कहा, “तपस्या का मतलब शरीर में गर्मी पैदा करना है।” यह सुनते ही सदन में ठहाके लगने लगे। विपक्षी नेताओं ने चुटकी लेते हुए कहा कि राहुल गांधी को ‘तपस्या’ का सही अर्थ नहीं पता। इसके जवाब में राहुल गांधी ने कहा, “समझिए, तप का यही मतलब है। तपस्या का यही मतलब है।”

रविशंकर प्रसाद का पलटवार

राहुल गांधी के इस बयान के बाद भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद को जवाब देने का अवसर मिला। उन्होंने राहुल गांधी के बयान का मजाक उड़ाते हुए कहा, “जब मैं विपक्ष के नेता को सुन रहा था, तो मुझे नया ज्ञान प्राप्त हो रहा था। पहली बार सुना कि 6-7 साल की उम्र में आदमी युवा हो जाता है। तपस्या से शरीर में गर्मी आती है, यह भी एक नई जानकारी मिली। आखिर इन्हें कौन पढ़ा रहा है?”

रविशंकर प्रसाद ने तंज कसते हुए कहा कि राहुल गांधी होमवर्क नहीं करते। उन्होंने आगे कहा, “तपस्या जैसे पवित्र शब्द को क्यों बदनाम कर रहे हैं? तपस्या से गर्मी आती है, यह कहने के बजाय उन्हें समझना चाहिए कि तपस्या का मतलब महान ऋषियों का समर्पण होता है। यह आत्मनियंत्रण और असीम समर्पण का प्रतीक है। अगर तपस्या को समझना है, तो गांधीजी को पढ़िए।”

सावरकर पर भी तीखी प्रतिक्रिया

राहुल गांधी के वीर सावरकर के संदर्भ पर भी रविशंकर प्रसाद ने पलटवार किया। उन्होंने कहा, “मुझे पता है कि सावरकर का नाम लेने पर राहुल गांधी को तकलीफ होती है। लेकिन उन्हें अंडमान-निकोबार की सेलुलर जेल में जरूर जाना चाहिए, जहां वीर सावरकर 11 साल तक बंद रहे। मैं खुद तीन बार उस जेल में गया हूं और हर बार रोया हूं। सावरकर को लिखने के लिए एक कलम तक नसीब नहीं होती थी, और जेल में नीचे फांसी दी जाती थी ताकि वे डर जाएं।”

रविशंकर प्रसाद ने कहा, “राजनीति के लिए आप जो चाहे कहें, लेकिन जिन्होंने इस देश के लिए अपना सर्वस्व समर्पित किया, उनके लिए ऐसे बयान न दें।”

इस चर्चा ने न केवल तपस्या जैसे गहरे शब्द को लेकर बहस छेड़ी, बल्कि इससे यह भी साफ हुआ कि संसद में व्यंग्य और तर्कों का मिश्रण किस तरह राजनीतिक बहस को नया आयाम देता है।

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samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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