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जरा याद करो कुर्बानी

मौत पर भी लगा दी गई थी पाबंदी…रुह कांप उठेगी इस क्रांतिकारी की दास्ताँ सुनकर

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इरफान अली लारी की रिपोर्ट

1857 की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, भारत के विभिन्न हिस्सों में युवाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी, और गोरखपुर भी इस क्रांति की चिंगारी से अछूता नहीं रहा। इस क्षेत्र में स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले अमर शहीदों में से एक थे बंधु सिंह, जो देवी मां के अनन्य भक्त थे। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ गोरिल्ला युद्ध छेड़कर ब्रिटिश हुकूमत को कड़ी चुनौती दी। 

गोरखपुर से करीब 25 किलोमीटर दूर चौरी-चौरा की क्रांतिकारी भूमि पर स्थित देवीपुर नामक गांव कभी एक समृद्ध रियासत था। यहीं पर 1 मई 1833 को बंधु सिंह का जन्म हुआ था। उनका परिवार जमींदार था और देवीपुर के आसपास उनकी रियासत थी। बंधु सिंह के परिवार में पांच भाई थे। बचपन से ही बंधु सिंह ने अपने माता-पिता से अंग्रेजों के अत्याचारों और गुलामी की कहानियां सुनी थीं, जिससे उनके मन में अंग्रेजों के प्रति गहरी नफरत पैदा हो गई थी। जब 1857 की क्रांति की आग भड़की, तो बंधु सिंह ने भी अपने इलाके में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाया।

बंधु सिंह देवी मां के परम भक्त थे और प्रतिदिन गांव से थोड़ी दूरी पर स्थित एक तालाब के किनारे तरकुल के पेड़ के नीचे देवी मां की पूजा करते थे। पूजा के दौरान वे अपने शरीर का रक्त भी देवी को चढ़ाते थे। आज भी उस स्थान पर पिंडियां मौजूद हैं और एक भव्य मंदिर भी बना हुआ है, जिसे तरकुलहा देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस धार्मिक स्थल का जीर्णोद्धार कराकर इसका सुंदरीकरण कराया है।

1857 की क्रांति के दौरान, बंधु सिंह ने अपने कौशल और गोरिल्ला युद्ध में पारंगतता का प्रदर्शन करते हुए कई अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। अंग्रेज इस विद्रोह से इतने भयभीत हो गए थे कि उन्होंने बंधु सिंह को पकड़ने के लिए कई प्रयास किए। अंततः, उन्हें धोखे से गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी की सजा सुनाई गई। 12 अगस्त 1858 को अलीनगर चौराहे के पास स्थित बरगद के पेड़ पर उन्हें फांसी दी जानी थी।

बंधु सिंह की फांसी की प्रक्रिया बेहद अजीब थी। जब भी उन्हें फांसी पर लटकाया जाता, फंदा टूट जाता। ऐसा कुल सात बार हुआ। यह देखकर वहां उपस्थित अंग्रेज अफसर भी अचंभित थे। आखिरकार, बार-बार की इस प्रताड़ना से तंग आकर बंधु सिंह ने देवी मां से मुक्ति की प्रार्थना की। आठवीं बार, जब उन्हें फांसी पर लटकाया गया, तो उन्होंने प्राण त्याग दिए और शहीद हो गए। 

हर वर्ष 12 अगस्त को उनके बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग बंधु सिंह के बलिदान को याद करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। इस वर्ष भी उनका 166वां बलिदान दिवस मनाया गया, जिसमें लोगों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।

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samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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