Explore

Search
Close this search box.

Search

December 4, 2024 10:38 am

लेटेस्ट न्यूज़

‘दिल होना चाहिदा जवान, उंमरा च की रखिया’…इन पंक्तियों का भावार्थ आपको हिला देगा

23 पाठकों ने अब तक पढा

प्रभात कुमार 

गुरदास मान ने दशकों पहले गाया था, ‘दिल होना चाहिदा जवान, उंमरा च की रखिया’। अब ज़माना बदल गया है, दिल से अब किसी का लेना-देना नहीं है। लोग दिल की नहीं, जिस्म की बात करते हैं। बात भी सही है, बंदा दिल की ही सुनता रहेगा तो निकम्मा हो जाएगा और भूखा मरेगा। शरीर का ज़माना है, शरीर बनाना है, जिस्म दिखाना है। विज्ञान शोधकर्ता चूहों पर शोध करने के बाद कहते रहे हैं कि प्रतिरक्षा प्रणाली को अधिक सक्षम बनाया जा रहा है। पता नहीं क्यों पहले ऐसे प्रयोग चूहों पर ही किए जाते हैं। क्या वर्तमान व्यवस्था में आम इनसान की कीमत चूहे से ज़्यादा है? क्या ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि इनसान को ऐसे प्रयोगों के लायक समझा जाए। हमारे यहां ऐसे बहुत सज्जन मौजूद हैं जो उम्र, पिचके मुंह, बिदकती चाल व लटकते पेट की परवाह नहीं करते, नियमित रूप से अपना मुंह, माफ करें बाल, सिर काला करते हैं। जवान रहने के नए पुराने नुस्खे पढ़ते, सुनते और आज़माते रहते हैं, चाहे एलर्जी हो जाए। विज्ञान ने जितनी तरक्की की वह इनसानी दिमाग के कारण ही की। कहा जाता है जहां दिमाग काम न करे दिल की सुननी चाहिए, लेकिन आज दिल का प्रयोग सिर्फ धडक़ने के लिए होने लगा है। अब तो सारे काम दिमाग से किए जाते हैं, यहां तक कि प्यार भी। कहते हैं दिमाग हमेशा जवां रहता है, दिल ने ज्यों ज्यों उम्र की सीढिय़ां चढ़ी उसका हांफना बढ़ता ही गया। दिल से प्यार करने वाले, दिल देने और लेने वाले सिर्फ बातों में और फेसबुक पर रह गए हैं। क्या दिल ने दुनिया भर में मुहब्बत, शायरी, कविता, कहानी के सिवाय कुछ नहीं करवाया।

वैसे, ऐसे काम करने वाले अब हैरानी से नहीं देखे जाते क्योंकि बाज़ार ने यहां भी कब्जा करना शुरू कर दिया है। कहीं हमारी जि़ंदगी में विज्ञान या विकास की दखलअंदाज़ी ज़्यादा तो नहीं हो रही। सामाजिक नायकों के होंठ हिलते हैं तो पता लगता है उम्र आ चुकी है, लेकिन शगल है कि अपना फेस लिफ्ट करवा लें। मेकअप के सांचे में फंसी हुई झुर्रियों वाला चेहरा, पैसा ज़ोर से पकड़ कर रखता है। सुविधाएं यदि पूरे शरीर को आबाद कर दें तो इनकी जवानी लौट सकती है। इनके कांपते हाथों में दिखता है कि उम्र के हाथों में खेल रहे हैं। गंजे होते सिर पर निन्यानवे बाल रह गए हैं, भौएं ढलने लगी है, गालें चिपक रही, आंखें क्या चश्में भी धंस रहे हैं। दांत खिसक रहे हैं, मगर बाल काले करवाकर कौन से किस्म की जवानी टिकने का संदेश देते हैं यह तो इन्हें भी नहीं पता। समझाते हैं कि छोटी छोटी चीजों में जो आनंद मिलता है बड़ी में नहीं मिलता। ये लोग राष्ट्रीय प्रेरक हैं। फेसबुक पर दोस्तों की फसल उगाने के बाद भी इनसान जि़ंदगी के खेत में अकेला होता जा रहा है। कृत्रिम बुद्धि की दुनिया दिल से नहीं दिमाग से चलती है।

स्वाभाविक है उसमें दिल, निश्छल प्रेम, स्वार्थहीन जुड़ाव के लिए कोई जगह नहीं है। दिल नहीं दिमाग़ ने दुनिया पर काबू कर लिया है और दुनिया जिस्म की दीवानी होती जा रही है। गुरदास मान का गाना अब हम ऐसे गा सकते हैं, ‘दिल नहीं… जिस्म होना चाहिदा जवां’।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

लेटेस्ट न्यूज़