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November 23, 2024 5:18 pm

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महिला आरक्षण बिल ; प्रदेश की राजनीति में क्या नया मोड़ आ सकता है ? पढ़िए तहकीकी जायजा

11 पाठकों ने अब तक पढा

दुर्गा प्रसाद की रिपोर्ट 

लखनऊ: संसद के नए भवन में शुरू हुई सदन की कार्रवाई के पहले दिन ही सियासी भागीदारी की एक नई इबारत लिखने की कवायद शुरू हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद और विधानमंडल में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक लाने का ऐलान किया है। मौजूदा विशेष सत्र में ही इसके पास होने की उम्मीद है। आधी आबादी को एक-तिहाई आरक्षण की यह कवायद यूपी की पूरी सियासी तस्वीर बदलकर रख देगी। लोकसभा व विधानसभा में महिलाओं की मौजूदा भागीदारी की ही तस्वीर देखें तो लोकसभा में यह संख्या आज के मुकाबले दोगुने से अधिक तो विधानसभा में पौने तीन गुना तक बढ़ जाएगी।

यूपी में इस समय कुल 80 लोकसभा सीटें हैं। इसमें 12 महिला सांसद हैं। 33% आरक्षण लागू हुआ तो 26 सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व होंगी। इसमें भी एक-तिहाई सीटें एससी-एसटी के खाते में जाएंगी। यानी इस वर्ग से नौ महिलाओं का प्रतिनिधित्व अनिवार्य होगा। राज्यसभा की बात करें तो यूपी के कोटे में 31 सीटें हैं। अभी इनमें से छह पर महिला सदस्य हैं। पांच महिलाएं भाजपा के और एक सपा के सिंबल पर उच्च सदन में पहुंची हैं। इनकी भी संख्या बढ़कर 10 हो जाएगी।

उच्च सदन में साढ़े छह गुना बढ़ेगी संख्या

प्रदेश में विधानसभा की 403 सीटें हैं। इस समय विधानसभा में कुल 48 महिला विधायक हैं, जो कुल सदस्य संख्या के 12% से भी कम हैं। एक-तिहाई आरक्षण के बाद सदन में न्यूनतम 126 महिलाएं जरूर पहुंचेंगी। इनमें 42 महिलाएं एससी-एसटी की होंगी। विधान परिषद की 100 सीटों पर महज छह महिला सदस्य हैं। संविधान संशोधन के बाद इनके लिए 33 सीटें आरक्षित करनी होंगी। ऐसे में मौजूदा भागीदारी साढ़े गुना बढ़ जाएगी। आरक्षित सीटों में 11 एससी-एसटी के लिए होंगी।

भागीदारी और विस्तार की कवायद का अहम पहलू यह है कि महिला आरक्षण को जनगणना और परिसीमन की प्रक्रिया पूरी करने के बाद लागू किए जाने का प्रस्ताव है। ऐसे में संसद से लेकर यूपी विधानसभा तक मौजूदा निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या भी बढ़ने के आसार हैं। उसी अनुपात में महिलाओं के लिए सीटों की संख्या भी बदलेगी।

भागीदारी का स्वरूप बदलेगा

महिलाओं के लिए सियासी आरक्षण लागू होने का सीधा असर सत्ता और सियासी दलों की संगठनात्मक तस्वीर पर भी दिखेगा। बड़े सियासी दलों में लोकसभा या विधानसभा चुनावों में 10% से 15% टिकट ही महिलाओं के हाथ आता है। 2022 में यूपी में कांग्रेस ने एक प्रयोग जरूर किया था और 40% टिकट महिलाओं को दिया था। हालांकि, उसकी जमीन इतनी कमजोर थी कि प्रदेश में उसके कुल दो विधायक बने, इसमें एक महिला है। भाजपा ने 45 टिकट, सपा ने 42 और बसपा ने 37 टिकट महिलाओं को दिए थे। कुल 560 महिला उम्मीदवार विधानसभा चुनाव में उतरी थीं, जिनमें 47 को जीत मिली।

प्रत्याशियों और जीते उम्मीदवारों के हिसाब से भी आजादी के बाद यह संख्या सर्वाधिक है। मई में हुए उपचुनाव में भी महिला के विधायक चुने जाने के बाद यह संख्या 48 हो गई है। हालांकि, आबादी के अनुपात में भागीदारी काफी कम है। खास बात यह है कि ‘जिताऊपन’ को जमीन बनाकर टिकट न दिए जाने का तर्क भी अब कमजोर होने लगा है। 2022 में पुरुष उम्मीदवारों की जीत का प्रतिशत 10 तो महिलाओं का भी 7% से अधिक था, जो पहले के मुकाबले काफी बेहतर है।

लोकसभा के पहले आम चुनाव में यूपी से छह महिलाएं सदन में पहुंची थीं, जबकि मौजूदा लोकसभा में यह संख्या दोगुनी यानी 12 है। हालांकि, 2014 के मुकाबले यह संख्या एक कम है। आरक्षण लागू होने के बाद सियासी दलों के लिए निकायों और पंचायतों की तरह यहां भी भागीदारी देना मजबूरी हो जाएगी।

सत्ता में भी धमक बढ़ेगी

महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था होने के बाद सदन ही नहीं सत्ता में भी उनकी धमक बढ़नी तय है। आधी आबादी के दावों के बाद भी सरकार में उनकी हिस्सेदारी 10% तक पहुंचनी भी मुश्किल हो जाती है। जिस यूपी ने देश को पहली महिला प्रधानमंत्री और महिला मुख्यमंत्री देने का तमगा अपने नाम किया, उस प्रदेश की पहली सरकार के मंत्रिमंडल में कोई महिला सदस्य ही नहीं थीं।

गोविंद बल्लभ पंत का मंत्रिमंडल महिलाविहीन रहा तो संपूर्णानंद के पहले कार्यकाल में कोई महिला मंत्री नहीं थी। जब संपूर्णानंद दोबारा सीएम बने तो प्रकाशवती सूद को पहली बार मंत्री बनाया गया और बाद में सुचेता कृपलानी भी इस सूची में शामिल हुई। आगे चलकर वह किसी भी राज्य की पहली महिला सीएम बनीं।

आनुपातिक भागीदारी के हिसाब से सबसे अधिक 16.60% महिलाओं को वीर बहादुर सिंह के मंत्रिमंडल में जगह मिली थी। इसके बाद एनडी तिवारी ने भी सात महिलाओं को मंत्री बनाया था, जो कुल मंत्रिमंडल का 14.60% था। महिला मुख्यमंत्री होने के बाद भी मायावती सरकार में महिलाओं की भागीदारी महज 5% थी। मुलायम सरकार में 3.60% तो अखिलेश सरकार में 2.60% थीं।

योगी आदित्यनाथ के पहले कार्यकाल में उनके मंत्रिमंडल पांच यानी 10.60% महिला मंत्री थीं। मंत्रिमंडल विस्तार और एक महिला मंत्री की मृत्यु के बाद यह संख्या घटकर तीन रह गई। मौजूदा कार्यकाल में 52 में पांच महिलाएं मंत्री हैं, जो कुल टीम का 9.61% है। सदन में आंकड़ा एक-तिहाई हुआ तो यहां भी संख्या बदलने की उम्मीद बढ़ जाएगी।

सियासत की हवा तय कर रहीं महिलाएं

भागीदारी में महिलाएं भले हाशिए पर हों, लेकिन पिछले कुछ चुनावों से सियासत की हवा और सत्ता का रास्ता बनाने में महिलाओं की भूमिका बढ़ गई है। 2019 के ही लोकसभा चुनाव में देश में 16 राज्य ऐसे थे, जहां महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत पुरुषों से ज्यादा था। यूपी की 80 में 36 सीटों पर पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा महिलाएं ईवीएम तक पहुंची थीं। इसमें सोनिया गांधी की रायबरेली, स्मृति इरानी व राहुल गांधी का चुनावी कुरुक्षेत्र अमेठी, आजम खां के रामपुर से लेकर राममंदिर की सियासत का केंद्र अयोध्या तक शामिल है।

आठ सीटें ऐसी रहीं जहां महिलाओं व पुरुषों के मतदान का आंकड़ा लगभग बराबरी पर था। 2014 के मुकाबले कुल मतदान प्रतिशत में जरूर थोड़ी गिरावट आई, लेकिन महिलाओं की वोटिंग यूपी में 2% बढ़ गई थी। 2022 में यूपी में भाजपा की सत्ता में दोबारा वापसी की राह महिला वोटरों ने ही बनाई थी। खासकर सुरक्षा का मुद्दा भाजपा के लिए ट्रंप कॉर्ड बना था। इसलिए, सियासी दलों का घोषणापत्र हो या सरकारों की योजनाओं का खाका, उसमें महिलाओं के हित प्राथमिकता से उभरने लगे हैं। लोकसभा चुनाव के पहले नरेंद्र मोदी का महिला आरक्षण का दांव भी इसी सियासी अहमियत का प्रमाण है।

सियासत-सत्ता में महिलाएं

1952 में गोविंद बल्लभ पंत सरकार में एक भी महिला नहीं थी मंत्रिमंडल में

06 सांसद चुनी गई थीं यूपी से पहले आम चुनाव में, लोकसभा में 25% हिस्सेदारी

560 महिलाएं 2022 विधानसभा चुनाव में उतरीं, अब तक का सर्वाधिक

36 लोकसभा सीटों पर महिलाओं का वोट प्रतिशत ज्यादा रहा पुरुषों से 2019 में

11.66 फीसदी महिलाओं की भागीदारी ही मौजूदा विधानसभा में, आजादी के बाद सर्वाधिक

12 महिला सांसद हैं यूपी से लोकसभा में, 15% ही कुल हिस्सेदारी

यूपी विधानसभा में महिला विधायक

वर्ष.    कुल महिला विधायक

1952    20

1957    18

1962    20

1967    06

1974    21

1977    11

1980    23

1985    31

1989    18

1991    10

1993    14

1996    20

2002    26

2007    23

2012    35

2017    44

2022    48

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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