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November 1, 2024 4:12 pm

दास्तां ए दर्द…..

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– वल्लभ लखेश्री 

मैं दर्द से दर्द लिखता हूं
बुलंद वायदों की बस्ती में,
सियासत की साजिश लिखता हूंl
इन कुर्सी के किस्सों पर,
संगीन हकीकत लिखता हूं ।
कटते घटते जंगलों पर ,
कुल्हाड़ी की धार लिखता हूं ।
जहर से घुटतीं सांसो पर,
प्रदूषण की मार लिखता हूं।
अबला चीर हरण पर ,
बेटी की चीख लिखता हूं ।
जुल्मों सितम के साए में,
मां की पीर लिखता हूं ।
अन्याय आंतक हिंसा पर ,
जख्मों की बगावत लिखता हूं ।
लुटे उजड़े आशियाने पर,
आंसुओं की धार लिखता हूं।
आजाद मुल्क के गुलामों पर,
शोषण का दमन लिखता हूं।
जांत धर्म के कटर पर ,
धिक धिक धिक्कार लिखता हूं,
गगनचुंबी इमारतों पर ,
झोपड़ी का श्राप लिखता हूं ।
भूखे पेट की ज्वाला पर ,
रोटी की दास्तां लिखता हूं ।
सरहद के पहरेदारों पर ,
शोहरत की गाथा लिखता हूं ।
माटी के मतवालों पर ,
शहीदों की कुर्बानी लिखता हूं।
मजहब के तानों बानों पर ,
राम रहीम लिखता हूं ।
नफरत के दहकते शोलों पर,
अमन का पैगाम लिखता हूं ।
मैं दर्द से दर्द लिखता हूं।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."