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November 22, 2024 4:08 am

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लाखों हेक्टेयर भूमि की फसलें नील गाय के आतंक के साए में ; किसानों की परेशानी में कौन है सहायक?

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मुरारी पासवान की रिपोर्ट

गढ़वा जिले में नीलगायों के आतंक और उत्पात से खेती करना मुश्किल हो गया है. यह समस्या लाइलाज बीमारी बन चुकी है.

सैकड़ों की संख्या में नीलगाय जिले के हर क्षेत्र में विचरण करती रहती हैं.ये किसानों की गाढ़ी कमाई और मेहनत से लगायी गयी फसल को चंद मिनटों में रौंद डालती हैं या अपना ग्रास बना लेती हैं.

जिले में पहले नीलगायों का आतंक सिर्फ सोन और कोयल नदी किनारे तक सीमित था. लेकिन अब नीलगायों का झुंड जिले के सभी क्षेत्रों में फैल चुका है. इससे लाखों हेक्टेयर भूमि में नीलगायों से खेती प्रभावित हो रही है.

बताते चलें कि गढ़वा जिले की 80 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है. नीलगायों के द्वारा हर मौसम में खेती बर्बाद कर दिये जाने से किसान हताश और निराश हैं.

नीलगायों के आतंक व उत्पात से बचाव का कोई रास्ता नहीं दिखने के कारण कई किसान खेती छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं. नीलगायों के कारण गढ़वा जिले के उत्तरी क्षेत्र में रबी फसल की खेती पूरी तरह बंद होने के कगार पर पहुंच गयी है, जबकि खरीफ में धान के अलावा दूसरी फसल लगाना किसानों के लिए जुआ खेलने के समान हो गया है.

गढ़वा जिला मुख्यालय से सटे बंडा और लहसुनिया जैसी पहाड़ी व इससे सटे गांवों व शहर के कुछ हिस्सों में सैकड़ों की संख्या में नीलगाय हैं. ये रात के अलावा दिन में भी फसलों को बर्बाद कर रही हैं. गढ़वा जिले के उत्तरी क्षेत्र के एक दर्जन प्रखंडों में नीलगायों का आतंक है. नीलगायों का झुंड न सिर्फ फसलों को चर जाता है, बल्कि उसे रौंदकर भी बर्बाद कर देता है. किसानों द्वारा फसलों को बचाने के लिए लगायी जानेवाली बाड़ भी नीलगायों को नहीं रोक पाती.

किसानों को नीलगायों के आतंक और उत्पात से बचाने में वन विभाग भी कुछ किसानों को मुआवजा देने के अलावा अन्य उपायों को लेकर निष्क्रिय है. गढ़वा जिले के उत्तरी क्षेत्र स्थित कांडी, बरडीहा, मझिआंव, विशुनपुरा, भवनाथपुर, केतार, खरौंधी, मेराल व गढ़वा प्रखंड में नीलगाय सबसे ज्यादा फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. इसके अलावा उत्तरी क्षेत्र के धुरकी, सगमा, डंडा व डंडई तथा दक्षिणी क्षेत्र चिनियां, रंका, रमकंडा, भंडरिया व बड़गड़ में नीलगायों का प्रभाव उपरोक्त प्रखंडों की तुलना में थोड़ा कम है.

गौरतलब है कि जिले के दक्षिणी क्षेत्र में खेती युक्त जमीन की तुलना में वन क्षेत्र ज्यादा है. इसलिए वनों में भोजन मिल जाने से नीलगाय उत्तरी की तुलना में यहां के गांवों में कम आते हैं. नीलगायों की वजह से न सिर्फ फसलें बरबाद हो रही हैं, बल्कि इससे कृषि विभाग, वन विभाग एवं मनरेगा से चलनेवाला बागवानी एवं पौधारोपण कार्यक्रम भी प्रभावित हो रहे हैं.

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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