आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
अगले साल होने वाले आम चुनाव के लिए जहां विपक्ष कमर कस रहा है, वहीं बीजेपी भी अंदरखाने इसकी तैयारी में जुट गई है। पार्टी में इन दिनों अलग-अलग सीटों के लिए उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट किया जा रहा है। लेकिन इस बार टिकट देने के मामले में एक नया पैरामीटर अपनाया जा रहा है। ऐसे सभी मंत्री या नेता जो पिछली दो बार से राज्यसभा सांसद हैं, उनमें से सभी को इस बार अपने लिए लोकसभा सीट तय करने को कहा गया है। पार्टी के इस प्रोग्राम का असर सरकार में मौजूद आधा दर्जन मंत्रियों पर पड़ने की संभावना है, क्योंकि उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ना पड़ सकता है। इनमें कुछ नेता ऐसे भी हैं, जिन्होंने आज तक एक भी चुनाव नहीं लड़ा। पार्टी सूत्रों के मुताबिक उन सभी नेताओं को उनके संभावित लोकसभा क्षेत्र के बारे में संकेत दे दिया गया है।
लेकिन राज्यसभा से निर्वाचित होने के आदी हो चुके इनमें से कुछ नेता अपना नाम इस लिस्ट से कटवाने की कोशिश में भी लगे हैं। ऐसी भी चर्चा है कि मोदी सरकार के दूसरे टर्म का अंतिम फेरबदल अगर हुआ तो उसमें इन मंत्रियों को सरकार से हटाकर संगठन में अहम जिम्मेदारी दी जाएगी। दरअसल, संघ के साथ बीजेपी के शीर्ष नेताओं की हालिया मीटिंग में यह बात सामने आई थी कि पार्टी को चुनाव से पहले मजबूती देने के लिए अनुभवी नेताओं की जरूरत है और 2004 वाली गलती मौजूदा सरकार को नहीं करनी चाहिए, जब सभी बड़े नेता सरकार का हिस्सा बन गए थे और असर पार्टी के कामकाज पर पड़ा था।
और अब नया एनडीए
हाल में बीजेपी ने अपने पुराने सहयोगियों पर डोरे डालने शुरू कर दिए हैं। कई प्रेक्षक इसे पार्टी को कर्नाटक चुनाव में मिली हार से जोड़ रहे हैं। लेकिन मामला सिर्फ इतना नहीं है। ऐसा सुझाव खुद प्रधानमंत्री की ओर से आया है। उन्होंने पार्टी के शीर्ष नेताओं से इस बारे में पहल करने को कहा है। उन सभी दलों से संपर्क करने को कहा गया है जो कभी न कभी एनडीए का हिस्सा रहे हैं। दरअसल, इसी महीने एनडीए गठन के 25 साल पूरे हुए हैं। फैसला हुआ है कि एनडीए के पुराने साथियों को जोड़ा जाए और इसके बाद देश के किसी हिस्से में नए एनडीए की बड़ी रैली आयोजित हो। जानकार इसे विपक्षी एकता को काउंटर करने की कोशिश भी बता रहे हैं। जबसे पीएम मोदी ने ऐसा सुझाव पार्टी नेताओं को दिया है, तभी से बीजेपी चंद्रबाबू नायडू के प्रति भी नरम हुई है। अकाली दल के नेताओं के साथ भी संपर्क साधा जा रहा है। तमिलनाडु में AIADMK के साथ स्थानीय नेता गठबंधन तोड़ने के पक्ष में थे, लेकिन अब उन्हें इससे परहेज करने की सलाह दी गई है। इसी क्रम में पार्टी के एक वर्ग को उद्धव ठाकरे गुट के प्रति भी नरम रुख अपनाने को कहा गया है।
जोश में कांग्रेस
दो राज्यों से आए सर्वे ने कांग्रेसी खेमे का जोश बढ़ा दिया है। ये राज्य हैं तेलंगाना और पश्चिम बंगाल। तेलंगाना में तो इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। वहां पार्टी का इंटरनल सर्वे और आकलन है कि वह बीजेपी से बहुत आगे है और KCR को चुनौती देने की स्थिति में आ गई है। इसलिए अगले महीने से लगातार आक्रामक चुनाव प्रचार शुरू करने का लक्ष्य रखा गया है। प्रियंका गांधी की कई सभाएं रखी गई हैं। कई BRS नेताओं को अपने पाले में करने का भी प्रयास किया जा रहा है। उधर, आंध्र प्रदेश के सीएम जगन रेड्डी की बहन के साथ भी गठबंधन की कोशिश है। पश्चिम बंगाल में भी पार्टी को लग रहा है कि वहां उसके लिए संभावना है। पार्टी अब वहां भी तेजी से संगठन को मजबूत करने की दिशा में पहल करने वाली है। लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है। अगर पार्टी इन राज्यों में आक्रामक रूप से आगे बढ़ती है तो इसका असर विपक्षी एकता की मुहिम पर भी पड़ेगा। हालांकि पार्टी के एक नेता के अनुसार KCR तो पहले ही खुद को विपक्षी एकता की कोशिशों से अलग कर चुके हैं। लेकिन ममता के बारे में वह मानते हैं कि अभी वहां दुविधा की स्थिति है।
Author: samachar
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