दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
अतर्रा(बांदा)। लेख के अंदर पाठक को बांधे रखने की क्षमता होनी चाहिए। लेख में प्रति पल जिज्ञासा उत्पन्न करने की कला ही इसे रूचिपूर्ण बनाती है जो पाठक के सम्मुख घटना का दृश्य बनाकर उसे अपने रस से सराबोर कर देती है। पाठक स्वयं ही रोमांचित होकर पढ़ता चला जाता है और अंत तक बंधा रहता है।
उक्त बातें वरिष्ठ साहित्यकार और संपादक प्रमोद दीक्षित मलय ने शैक्षिक संवाद मंच उत्तर प्रदेश द्वारा गत दिवस आयोजित ऑनलाइन लेखन कार्यशाला में सहभागी रचनाकारों के मध्य कहीं। उक्त कार्यक्रम मंच द्वारा प्रकाशित होने वाले साझा संकलन “विद्यालय में एक दिन” में लेखन हेतु प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए आयोजित किया गया था, जिसमे 50 से अधिक शिक्षक-शिक्षिका रचनाकारों ने प्रतिभाग किया। मंच द्वारा इससे पूर्व प्रमोद दीक्षित मलय के संपादन में अब तक 6 साझा संकलन पहला दिन, हाशिए पर धूप, कोरोना काल में कविता, प्रकृति के आंगन में, राष्ट्र साधना के पथिक, स्मृतियों की धूप-छाॅंव प्रकाशित किये जा चुके हैं। जबकि क्रांति पथ के राही, यात्रा वृत्तांत, डायरी विधा पर पुस्तकों का संपादन चल रहा है।
“विद्यालय में एक दिन” पुस्तक का परिचय देते हुए प्रमोद दीक्षित ने बताया कि इसमें न तो डायरी जैसे सिलसिलेवार विवरण रहेगा और न ही यह संस्मरण जैसे किसी व्यक्ति पर केंद्रित होगा। इसमें अपने कार्यस्थल या विद्यालय के एक दिन के अनुभव को इस तरह पिरोना है कि वह सूचनात्मक होने के बजाय विवरण परोसता हुआ पाठक के लिए प्रेरक बना जाये। लेख सामाजिक समरसता की मिठास लिए हो। आपने किसी समस्या के समाधान हेतु क्या किया गया के बजाय कैसे किया गया, क्यों किया, जिसके साथ किया गया वह कितना सक्रिय था और यह प्रयोग उद्देश्य के कितने करीब जा सका आदि बातों को शामिल करें। इसका लेखन विषय क्षेत्र बहुत ही विस्तृत है। इसमें भाषा, गणित, सामाजिक विज्ञान, आदिक से संबंधित बातें हो सकती है। लेख का प्रारंभ पारंपरिक तरीके के बजाय किसी महत्वपूर्ण घटना से करते हुए रहस्य को बनाए रखें ताकि पाठक यह जानने के लिए उत्सुक रहे कि आगे क्या होगा। उपदेश और सीख देने से बचें। लेख पूर्ण होने के पश्चात उसे बार बार पढ़ें तथा आ रहे ठहराव और अंतराल को ढूंढ कर सुधार करें। वर्तनी का ध्यान रखें। इसके पश्चात संदर्भदाता द्वारा प्रतिभागियों के प्रश्नों यथा शीर्षक बनाने, घटना की तिथि, अवधि, शब्द सीमा, आदिक से संबंधित जिज्ञासाओं का समाधान किया गया।
कार्यशाला में अभिलाषा गुप्ता, आकाश पांडे, डॉ. अनिल वर्मा, अरविंद कुमार, अशोक प्रियदर्शी, अनिल राजभर, अमिता सचान, बुशरा सिद्दीकी, अर्चना वर्मा, बिधु सिंह, चंद्रशेखर सेन, दुर्गेश्वर राय, दीपक कुमार गुप्ता, डॉ. रेखा यादव, डॉ. विभा शुक्ला, दीप्ति राय, ज्ञानेश राजपूत, गायत्री त्रिपाठी, ज्योति दीक्षित, कुहू बनर्जी, कनक, कुमुद, माधुरी त्रिपाठी, मीरा रविकल, पायल मलिक, पूरन लाल चौधरी, प्रज्ञा सिंह, डॉ. प्रमिला सिंह, रश्मि मिश्रा, डॉ. अर्चना सिंह, डॉ. रमा दीक्षित, रश्मि तिवारी, रेखा दीक्षित, रिम्पू सिंह, ऋतु श्रीवास्तव, संगीता देवी, संतोष कुशवाहा, डॉ. मिनी ओहरी, सत्यप्रकाश, सीमा मिश्रा, सीमा शर्मा, शिवाली जायसवाल, स्मृति दीक्षित, सुनीता वर्मा, श्रुति त्रिपाठी, शंकर रावत, वंदना वर्मा, वत्सला मिश्रा, विजय प्रकाश जैन, अनुरुद्ध गुप्ताआदि शिक्षक एवं शिक्षिकाओं की उपस्थिति रही।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."