पुनीत नौटियाल की रिपोर्ट
बागेश्वर धाम प्रमुख धीरेंद्र शास्त्री (Bageshwar Dham Maharaj Dhirendra Shastri) सुर्खियों में हैं। उन पर अंधविश्वास फैलाने का आरोप लगा है। ‘चमत्कारी’ बाबाओं की फेहरिस्त में उनका नाम सबसे नया है। इसके पहले आसाराम, गुरमीत राम रहीम सिंह, रामपाल और स्वामी ओम भी चर्चा में रह चुके हैं। इन सभी पर दुष्कर्ष से लेकर फ्रॉड तक अलग-अलग तरह के मामले हैं। यह और बात है कि इन बाबाओं के अनुयायियों में अब तक किसी तरह की कमी नहीं आई है। इन्हें शोहरत के शिखर पर पहुंचाने वाले यही लोग हैं। ये इन पर अंधविश्वास करते हैं। उनकी कही बातों पर वे जान छिड़कने के लिए तैयार रहते हैं। ‘भक्तों’ की यह भीड़ इन बाबाओं का कॉन्फिडेंस आसमान में पहुंचा देती है। ये इतने शक्तिशाली हो जाते हैं कि सरकारों को आंख दिखाने लगते हैं। सवाल उठता है कि बाबाओं पर लोग आंख मूंदकर भरोसा क्यों (Why do people trust Babas) करते हैं?
भारत में बाबाओं की कहानी नई नहीं है। लंबे समय से इन्होंने समाज के एक वर्ग में अहमियत पाई है। एक्सपर्ट्स बाबाओं में इस तरह के विश्वास के पीछे कई कारण देखते हैं। मनोवैज्ञानिक डॉ अर्चना शर्मा कहती हैं कि इसकी एक वजह जागरूकता की कमी है। शिक्षित और साइंटिफिक टेम्परामेंट वाले लोग इनके दरबार में कम ही दिखते हैं। ये बाबा अपने साधकों के सामने आध्यात्मिकता, पौराणिक कथाओं, धर्म और परंपराओं का ‘कॉकटेल’ फेंकते हैं। साथ ही कुछ जादूगरी भी दिखाते हैं। परेशान लोग इस जाल में फंस जाते हैं। इनके दरबारों में जाने वाले ज्यादातर लोगों की मनोदशा खराब ही होती है। ये बाबा उनकी परेशानी का आसानी से फायदा उठा लेते हैं।
खुद को भगवान के विकल्प के तौर पर करते हैं पेश
मनोवैज्ञानिक डॉ प्रीति शुक्ला के अनुसार, ये बाबा खुद को भगवान का विकल्प के तौर पर प्रस्तुत करते हैं। ज्यादातर लोगों की परेशानी छोटी-मोटी ही होती है। समय के साथ ये ठीक हो जाती हैं। लेकिन, इससे बाबाओं पर उनका भरोसा बढ़ जाता है। आर्थिक रूप से समाज का कमजोर तबका और कम शिक्षित लोग इनका शिकार बनते हैं। एक वजह परवरिश भी है। घरों में बच्चे बड़े-बुजुर्गों के मुंह से इन बाबाओं की कहानियां सुनते हैं। जब वे बड़े होते हैं तो इन्हें लेकर सवाल नहीं उठाते हैं। पीढ़ियों से लोगों को ‘भगवान का डर’ दिखाया जाता रहा है। जब बाबा में उन्हें भगवान दिखने लगता है तो इस कारण भी वे सवाल नहीं कर पाते हैं।
अगर बागेश्वर धाम सरकार को भी केस स्टडी के तौर पर लें तो यही बात देखने को मिलती है। धीरेंद्र शास्त्री कहते हैं कि वह लोगों की अर्जियां भगवान बालाजी तक पहुंचाने का जरिया मात्र हैं। भगवान इन अर्जियों को सुनकर सॉल्यूशन देते हैं। नागपुर की अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति ने इन्हीं दावों को चुनौती दी है। यहीं से पूरा विवाद शुरू हुआ है।
जानकार कहते हैं जो लोग शिक्षा और चिकित्सा पर खर्च नहीं कर पाते हैं, वे इन बाबाओं में शांति तलाशने की कोशिश करते हैं। वे उनसे घरेलू, स्वास्थ्य संबंधी, निजी हर तरह की समस्या का समाधान चाहते हैं। इससे बाबाओं के लिए वे आसान टारगेट बन जाते हैं। आज भी ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं जब लोग मनोवैज्ञानिक समस्याओं को भूत-प्रेत और टोने-टोटके से जोड़कर देखते हैं। वे दवाएं न करके इन बाबाओं के झांसे में पड़े रहते हैं। इससे समस्या कम होने के बजाय बढ़ती है।
भीड़ देखकर बड़े-बड़े लाइन में आ जाते हैं
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, कई बार क्राउड इफेक्ट भी काम करता है। लोगों के बीच इन बाबाओं की चर्चा समय के साथ बड़े-बड़े उद्योगपतियों और राजनेताओं तक भी पहुंचती है। जब वे भी इन दरबारों में जाना शुरू कर देते हैं तो क्या शिक्षित और क्या अशिक्षित सभी लाइन में खड़े दिखते हैं। फिर जिस बाबा के दरबार में जितनी ज्यादा भीड़, वही उसका कद तय करने लगता है।
गुरमीत राम रहीम से लेकर आसाराम और सत्य श्री साईं बाबा तक के मामले में यह बात देखी गई है। इन सभी पर दुष्कर्म तक के आरोप लगे। लेकिन, सबकुछ सामने होने के बाद भी इनके अनुयायियों की आंखों से पर्दा नहीं हटा। आज भी इन पर लाखों लोग भरोसा करते हैं। इस समस्या का सिर्फ एक ही इलाज है। अगर मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई जाए तो लोगों को बाबाओं के मकड़जाल से निकाला जा सकता है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."