• प्रमोद दीक्षित मलय
30 अक्टूबर, 1928, लाहौर रेलवे स्टेशन पर हजारों की संख्या में युवक-युवतियों, विद्यार्थियों, कामगारों, किसानों, महिलाओं, राजनीतिक कार्यकर्ताओं और वकीलों का जमावड़ा। हाथों में लहराते काले झंडे, आसमान को भेदती कसी मुट्ठियां और समवेत ओजस्वी स्वर में गूंजता एक ही नारा, “साइमन, गो बैक। अंग्रेजों वापस जाओ।” सामने अंग्रेजी पल्टन का एक-एक सिपाही चुस्त-मुस्तैद, हाथों में बेंत का डंडा और सिर पर लोहे का टोप, आग उगलती आंखों और भींचे हुए जबड़े के साथ किसी भी अनहोनी के लिए स्वत: स्फूर्त सजग सावधान तैयार।
जनता का लक्ष्य साइमन कमीशन को लाहौर की पावन भूमि पर कदम न रखने देंगे, हर हाल में स्टेशन से वापस भेज देंगे। उधर सिपाहियों का लक्ष्य, कैसे भी साइमन कमीशन के अंग्रेज सदस्यों को सुरक्षित गंतव्य तक ले जायेंगे। कोई पीछे कदम खींचने को तैयार नहीं। दोनों के लक्ष्य टकराये। अंग्रेज पुलिस अधिकारियों को इतने तीव्र विरोध का अंदाजा न था। अपने को कमजोर पड़ता देख पुलिस अधिकारी ने सिपाहियो को आदेश दिया – लाठी चार्ज। जनता का नेतृत्व कर रहे नर नाहर ने ललकारा कि हम पीछे हटने वाले नहीं हैं। हजारों लाठियों के प्रहार में भी हमारे चपल चंचल चरणों को रोकने की सामर्थ्य नहीं है।
नेतृत्व के इन वीरोचित शब्दों से जन-सिंधु में उत्साह की लहरें बढ़ चलीं और बढ़ते कदमों को रोकने के लिए सिपाहियों की लाठियां तड-तड चटकने लगीं। पर मां भारती के वीर सपूतों के कदम ठहरे नहीं। अंग्रेजों द्वारा साजिशन विरोध का नेतृत्व कर रहे नायक की छाती पर दर्जनों लाठियों का प्रहार एक साथ किया गया। वह भूमि पर गिर पड़े, शीश एवं देह से फूटी रक्त धारा बहकर पावन रज में मिल गौरवान्वित हुई।
घायल शेर फिर उठ खड़ा हुआ, हुंकार भरी, “मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी का प्रहार ब्रिटिश सरकार के ताबूत की एक-एक कील सिद्ध होगा।” यह प्रखर उद्गार थे कांग्रेस में गरम दल के नेता, लाल बाल पाल की विचार त्रिवेणी की सशक्त धारा पंजाब केसरी लाला लाजपत राय के, जो न केवल कांग्रेस के शीर्ष नेता थे बल्कि शिक्षाविद, बैंकर, ओजमय वक्ता, लेखक एवं विचारक भी थे जिनके नाम से अंग्रेजी सत्ता के तख्त की चूलों में कंपन होने लगता था। लाठियों के प्रहार से घायल लाला का निधन 17 नवम्बर, 1928 को हो गया। लाला की मृत्यु का बदला भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव ने एक महीने के अंदर सांडर्स का वध कर ले लिया और फांसी पर झूल गये।
लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को मोगा फिरोजपुर जनपद के धुदिकी गांव में एक सम्पन्न अग्रवाल परिवार में हुआ था। माता गुलाब देवी की कोख बच्चे को जन्म देकर धन्य हुई। पिता मुंशी राधाकृष्ण अध्यापक थे और उर्दू जबान में रचनाएं लिखते थे जिनमें देशप्रेम का भाव हिलोरें मारता था। पिता का प्रभाव बालक लाजपत पर पड़ना स्वाभाविक ही था। प्रारम्भिक शिक्षा गांव में प्राप्त कर 1880 में एंट्रेंस एवं 1882 में एफए उत्तीर्ण किया। कानून में पारंगत होने के लिए गवर्नमेंट कालेज लाहौर में प्रवेश लिया और सफल होकर 1883 में एक वकील के रूप में हिसार में वकालत करने लगे। इसी दरम्यान 1885 में कांग्रेस की स्थापना हुई और 1888 में लाजपत शामिल हो गये। कांग्रेस में उनकी सक्रियता बढ़ने लगी किन्तु कांग्रेस का नरम विचार उन्हें रास न आता। इधर कोर्ट-कचहरी के तमाम दांवपेंच से इतर लाला दबे-कुचले एवं गरीब लोगों के लिए सहज उपलब्ध थे ही, उनकी मदद करते रहे। वह भले ही अधिक धनार्जन न कर पाये किंतु आशीषों से उनका भंडार भरता रहा जिसने लाजपत राय को एक जिम्मेदार, संवेदनशील एवं परोपकारी व्यक्तित्व के रूप में ढाल दिया।
हृदय की तरलता-सरलता एवं पर दु:ख कातरता उनके जीवन में पगे-पगे दृष्टव्य है। जनता ने लाजपत की करुणा एवं सेवा भावना का विराट रूप का दर्शन 1897 एवं 1899 में आये भयंकर दुर्भिक्ष में देखा। जब लाजपत राय ने साथियों की मदद से राहत शिविर लगाकर भूखी जनता के लिए भोजन का प्रबंध किया जैसे मां अपनी संतान के लिए करती है।
सेवा-साधना का ही प्रतिफल था कि लाजपत राय लोक में लाला के नाम से विख्यात हो गये।लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एवं बिपिनचंद्र पाल के साथ मिलकर कांग्रेस में गरम दल का नेतृत्व करने वाले लाला लाजपत राय ‘लाल बाल पाल’ के प्रमुख व्यक्तित्व साहस, संघर्ष एवं समन्वय के सशक्त हस्ताक्षर थे।
हिसार में सामाजिक एवं राजनीतिक कर्म कौशल एवं लोक स्वीकार्यता का परिणाम था कि आप हिसार नगर निगम के सदस्य और बाद में सचिव चुने गये। 1892 में क्रांति भूमि लाहौर के लिए प्रस्थान किया।
देश एवं समाज की उन्नति के लिए आप स्वदेशी वस्तुओं के अधिकाधिक उपयोग-उपभोग के पक्षधर थे और आयातित वस्तुओं के पूर्ण बहिष्कार के समर्थक भी। पारिवारिक विकास के लिए अर्थ संचय को महत्व देते थे और सामान्य जन में बचत की आदत डालने के लिए आपने पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना की जो आज देश का एक अग्रणी बैंक है।
शिक्षा संस्कार आपके महत्वपूर्ण कार्यों में एक है। समाज में शिक्षा का प्रसार, बालिकाओं के लिए विद्यालयों में शिक्षा प्राप्ति का राह सुगम करने के लिए भी आप जाने जाते हैं। लाला हंसराज एवं कल्याण चंद्र दीक्षित के साथ मिलकर दयानन्द एंग्लो वैदिक विद्यालयों की स्थापना की।
लाला लाजपत राय राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के परम उपासक थे। पूर्ण स्वराज्य के संकल्प की ज्वाला हृदय में सदैव धधकती रही। 1905 में जब लार्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन कर हिंदू-मुस्लिम में अलगाव करने की चाल चली तो लाल, बाल, पाल की त्रिमूर्ति ने तीखा विरोध कर सुरेंद्रनाथ बैनर्जी, अरविंद घोष के साथ मिलकर एक राष्ट्रीय आंदोलन खड़ा कर दिया। फलत: सत्ता को झुकना पड़ा।
अंग्रेज सरकार ने लाला को गिरफ्तार कर वर्मा भेज दिया। पर छह महीने बाद कारागार से मुक्त होते ही वह पुनः लोक जागरण में सक्रिय हो गये। 1914 में कांग्रेस प्रतिनिधि मंडल में शामिल होकर इंग्लैंड गये।
प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ हो जाने से देश वापस न आ सके और 1917 में अमेरिका पहुंच कर न्यूयॉर्क में इंडियन होम रूल लीग आफ अमेरिका की स्थापना की। 20 फरवरी, 1920 को भारत लौटे तो नायक बन चुके थे।
कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन 1920 में महात्मा गांधी का समर्थन कर असहयोग आंदोलन में सहयोगी बने। आप अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस का भी नेतृत्व कर वहां राष्ट्रीय चेतना का संचार किया। समाज जीवन का कोई क्षेत्र अछूता न था। आपने 1925 में हिंदू महासभा के कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता कर समाज को शक्ति, साहस, सहकार संस्कार सम्पन्न बनने का आह्वान किया। अपने विचारों को यंग इंडिया, अनहैपी इंडिया आदि पुस्तकों में समाहित किया।
पराजय एवं असफलताओं को नैराश्य नहीं बल्कि विजय प्राप्ति के लिए संघर्ष पथ का एक क्षणिक पड़ाव मानने वाले लाला की जन्मशती 28 जनवरी, 1965 को भारत सरकार ने 15 पैसे का स्मारक डाक टिकट जारी कर अपने भाव पुष्प समर्पित किये। देश के तमाम शहरों में सड़कें, मोहल्लों एवं पार्कों के नाम लाला के नाम पर रखे गये साथ ही मेरठ के मेडिकल कालेज एवं हिसार के इंजीनियरिंग कालेज के नाम लाला लाजपत राय पर आधृत हो उनकी यश पताका फहरा रहे हैं। बस स्टैंड जगरांव एवं अन्य शहरों के चौराहों में स्थापित मूर्तियां दर्शकों में ओज एवं ऊर्जा भर रही हैं। पुण्य तिथि के अवसर पर लोक उनकी स्मृतियों की स्नेहिल छांव में श्रद्धा अर्पित कर रहा है।
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Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."