दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
अयोध्या: अयोध्या में इन दिनों एक पुलिसकर्मी एक पेड़ के नीचे बैठे बच्चों को हिंदी, अंग्रेजी और गणित का पाठ पढ़ाते नजर आता है। यह पुलिसकर्मी 2015 के बैच के पुलिस उप-निरीक्षक रंजीत यादव हैं, जो अयोध्या परिक्षेत्र के पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) कार्यालय में तैनात हैं, लेकिन पुलिस दफ्तर से बाहर उनकी पहचान ‘वर्दी वाले गुरुजी’ के रूप में है।
वह भिखारियों और अनाथ बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। रंजीत यादव के ज्यादातर छात्र अयोध्या में सरयू नदी के घाटों, मंदिरों और मठों की संकरी गलियों में घूमने वाले भिखारियों के बच्चे हैं। कुछ अनाथ भी हैं, जैसे 12 वर्षीय महक अपने दूर के रिश्तेदारों के साथ रहती है। यादव ने ‘अपना स्कूल’ का दौरा किया तो उसने कहा, “मैं शुरुआत में सर से डरती थी। डरती थी कि मेरी पिटाई होगी, लेकिन अब मुझे कक्षा में हिस्सा लेने में मजा आता है।” महक अब अक्षरों और संख्या को पहचानने लगी है तथा सरल गणना भी कर सकती है। उप-निरीक्षक यादव का यह मिशन तब शुरू हुआ था, जब उन्हें नया घाट पुलिस चौकी में तैनात किया गया था। इस दौरान उनकी नजर नदी के किनारे भीख मांगने वाले बच्चों पर पड़ी, जो खुर्जा कुंड इलाके में रहते थे। यादव नेकहा, “बच्चों से मिलने के बाद मैंने उनके लिए कुछ करने का फैसला किया। मेरे मन में उनके लिए एक कक्षा चलाने का विचार आया।”
उन्होंने कहा, “मैंने उन बच्चों के माता-पिता को इकट्ठा किया और उनसे पूछा कि अगर मैं उनकी पढ़ाई के लिए कक्षाएं शुरू करूं तो क्या वे अपने बच्चों को भेजेंगे। शुरू में तो उनमें ज्यादा उत्साह नहीं था, लेकिन बाद में वे सहमत हो गए।” यादव ने कहा, “मैंने सितंबर 2021 में कक्षाएं शुरू कीं और अब वहां सुबह सात से नौ बजे के बीच नियमित रूप से संचालित कक्षाओं में 60 से अधिक बच्चे उपस्थित होते हैं।” उन्होंने बताया कि अयोध्या के प्रसिद्ध मंदिरों से कुछ दूरी पर खुर्जा कुंड के पास एक पेड़ के नीचे खुले में कक्षाएं चलती हैं, जिनमें लड़के और लड़कियां दोनों शामिल होते हैं। यादव के मुताबिक, ‘हिजाब’ पहनी कुछ छात्राएं भी पढ़ने-लिखने के लिए उनकी कक्षा में आती हैं। हालांकि, यादव ने यह भी कहा कि उनकी पहली प्राथमिकता पुलिस की नियमित नौकरी है, इसलिए अगर सुबह-सुबह ही काम पर निकलना होता है तो वह कुछ छात्रों को कक्षा के प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपकर जाते हैं। अपने इस कार्य को लेकर वरिष्ठ अधिकारियों के रुख के बारे में यादव ने कहा, “वरिष्ठ लोगों ने इस काम के लिए मेरी सराहना की है। उनका कहना है कि मेरा काम पुलिस बल की छवि में सुधार लाने में अहम भूमिका निभा रहा है।”
यादव के अनुसार, शुरुआत में उन्होंने अपने वेतन से ‘अपना स्कूल’ के विद्यार्थियों के लिए नोटबुक, पेन और पेंसिल की व्यवस्था की, लेकिन जैसे-जैसे अधिक बच्चों का नामांकन हुआ खर्च बढ़ता गया और लोगों का सहयोग मिलना भी शुरू हो गया। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से स्नातकोत्तर यादव ने कहा, “कुछ सामाजिक संगठन और स्थानीय लोग शिक्षा प्रदान करने में सहयोग कर रहे हैं।” यादव ने कहा, “उनकी कक्षा के बच्चों को मोबाइल फोन पर शिक्षा के महत्व से जुड़े वीडियो भी दिखाए जाते हैं, ताकि वे समझ सकें कि पढ़ाई-लिखाई उनके जीवन को कैसे बदल सकती है।”
15 साल का शिव, जो यादव का विद्यार्थी है और करीब एक वर्ष से कक्षा में शामिल हो रहा है, उसने अपना आत्मविश्वास बढ़ने की बात कही है। बकौल शिव, “मैं अब थोड़ा पढ़-लिख सकता हूं। मैं अब गिनती भी गिन सकता हूं। इससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ा है।”
Author: samachar
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