अरमान अली की रिपोर्ट
श्रीनगर। कश्मीर की इस बेटी के पांवों में समाज ने बेड़िया डालने का प्रयास किया। काम के लिए बाहर निकलतीं तो बहुत कुछ सहना और सुनना पड़ा पर लोगों के ताने न उसका हौसला कमजोर कर पाए और न समाज में अलग पहचान बनाने का जज्बा। कोई चूल्हा-चौका संभालने की नसीहत देता तो कोई क्षमता पर सवाल उठाने लगता, लेकिन कश्मीर की यह बेटी डटी रही। उसने विज्ञान को अपनी ताकत बनाया और हौसले से उड़ान भरी। आज वह विज्ञान की बदौलत पर्यावरण की गुत्थियों को सुलझा लोगों का जीवन बेहतर बनाने की मुहिम में जुटी है। जो लोग कल तक ताने देते थे वही आज हौसला बढ़ा रहे हैं।
28 वर्षीय उलफत मजीद सोफी पर्यावरण विज्ञानी हैं और ग्लेशियरों के पिघलने से पहाड़ों में बन रही झीलों पर शोध कर रही हैं। लक्ष्य है कि लोग समझें कि क्यों पर्यावरण सबके लिए महत्वपूर्ण है और भविष्य की चुनौती से निपटने के लिए कमर कस लें। इसी तरह की कहानी नशीमन अशरफ की भी है। वह केसर की क्यारी में फिर से खुशियों की खेती लहलहाने की मुहिम में जुटी हैं। पर्यावरण के बदलाव और अन्य कारणों से केसर की महक कुछ वर्षों से फीकी पड़ने लगी थी। आज नसीमन का शोध कई परिवारों को फिर से केसर से जोड़ रहा है।
गांदरबल के सलरू क्षेत्र की युवा विज्ञानी उलफत पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र (विशेषकर जम्मू-कश्मीर) में ग्लेशियर और उनसे निकलने वाले जलस्रोतों पर पड़ने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन कर रही है। भू-सूचना विज्ञान विभाग में कार्यरत उलफत ने शोध के दौरान 330 से अधिक ग्लेशियर और झीलों की मैपिंग की। वह बताती हैं कि बचपन से ही प्रकृति को समझने और उसके रहस्यों से पर्दा हटाने की जिज्ञासा थी। इसीलिए एमएससी के बाद भू-सूचना विज्ञान में ग्लेशियर और हिमालयी झीलों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर शोध आरंभ किया। इसके लिए दूर-दूर तक पैदल ही पहाड़ों को नापना पड़ता था।
उलफत बताती हैं कि सुनने में यह काफी रोमांचक लगता है पर कश्मीर के समाज में एक बेटी के लिए यह कतई आसान नहीं था। पहाड़ों और पथरीली राहों से अधिक दर्द कुछ लोगों के शब्दों के तीर देते थे। कभी फोन नेटवर्क का झंझट और कभी काम में देरी के कारण परिवार की चिंता बढ़ने लगती। लोग कहते चूल्हा-चौका संभालो। शुरुआत में परिवार के लिए भी आसान नहीं था लेकिन वह समझने लगे और उनका सहयोग मिलता रहा तो मेरी राह भी आसान हो गई।
बेटी पर है गर्व
बेटी का काम और नाम देख पिता अब्दुल मजीद सोफी आज खुश हैं। वह कहते हैं कि बेटी पर गर्व है। मजीद पेशे से शिक्षक हैं और उनकी पत्नी शिक्षिका। बताते हैं कि उलफत पढ़ाई में काफी तेज थी। वह विज्ञान और शोध में आगे बढ़ना चाहती थीं, लेकिन हम हिचकिचाते थे। दोस्त रिश्तेदार भी यही सलाह देते थे कि अगर पढ़ाना ही है तो डाक्टर, इंजीनियर बनाओ। इस तरह के काम में समय क्यों बर्बाद करवा रहे हैं। वह कहते हैं कि उलफत चाहती थी कि वह विज्ञान में कुछ नया करे और हमें उसकी बात माननी पड़ी। आज बेटी के फैसले पर खुश हूं।
तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर
उलफत के शोध से सामने आया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और इसकी वजह से हिमालय में अस्थायी झीलों का निर्माण तेजी से हो रहा है। अगर इस प्रक्रिया को न रोका गया तो ये झीलें पूरे क्षेत्र में तबाही का सबसे बड़ा कारण बनेंगी।
उलफत ने कहा कि वह अपने शोध में ऐसी झीलों को बढऩे से रोकने के उपाय की तलाश में लगी हैं। भूसूचना विज्ञान विभाग के प्रमुख शकील अहमद रोमशू कहते हैं कि ग्लेशियर और झीलों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव विषय पर उलफत के शोध ने हमें काफी बेहतर डाटा उपलब्ध करवाया है। अफसोस है कि इस फील्ड में अभी गिनी चुनी लड़कियां ही हैं।
Author: samachar
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