सुरेन्द्र प्रताप सिंह की रिपोर्ट
जयपुर। इन गांवों में सदा सुहागन का आशीर्वाद 8-10 साल से ज्यादा टिक नहीं पाता। अब तो आसपास के लोग भी इन गांवों को विधवाओं का गांव कहने लगे हैं। डर ऐसा कि औरतें इन गांवों में शादी के नाम से डरती हैं।
भीलवाड़ा से 55 किलोमीटर दूर काछियों का बाडिया गांव। एक श्मशान पर नजर पड़ी, जहां से धुआं उठ रहा था। सोनू बोला- ‘सुबह ही एक आदमी का अंतिम संस्कार हुआ है।’ उम्र पूछी तो बोला- ‘जवान ही था।’
श्मशान से थोड़ी दूर आगे चलने के बाद गांव में घुसे तो गलियां सुनसान थीं। एक घर के बाहर टैंट लगा था। घर में 32 साल के युवक की मौत हो गई थी। घर के अंदर से महिलाओं की रोने की आवाज आ रही थी। कुछ लोग घर के बाहर बैठे थे, जो बीमारी को कोस रहे थे। ‘पता नहीं ये “सिलिकोसिस” गांव का पीछा कब छोड़ेगी।
इन गांवों में घरों में गैस सिलेंडर हो या न हो ऑक्सीजन सिलेंडर जरूर मिल जाएगा। सिलेंडर कितना जरूरी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि लोग इसे खरीदने के लिए जमीन गिरवी रखकर सूदखोर से कर्ज तक लेने को मजबूर हैं। इन गांवों के पुरुष ऐसी बीमारी से लड़ रहे हैं, जो हर साल 30 की जान ले लेती हैं। महज 300 रुपए के लिए जिंदगी दांव पर लगा देते हैं।
5 साल चला पति का इलाज : 35 साल की सुशीला ने बताया 4 बच्चे हैं। 18 की उम्र में शादी हो गई थी। पति प्रभू सिंह 2016 में बीमार हो गए थे, तब 1 लाख रुपए मिले थे। 5 साल तक इलाज चला। काम करना भी बंद कर दिया था। 7 महीने पहले उनकी मौत हो गई। अब बच्चों को पालने के लिए मैं नरेगा में काम करती हूं। पति की मौत के बाद भी सर्टिफिकेट ऑनलाइन नहीं हो सका है।
500 रुपए मिलती है पेंशन : सुनीता बोली कि पति देवी सिंह तीन साल से बीमार थे। तीन बच्चे हैं। जीवित थे तब 1 लाख मिले थे। दो साल पहले ही मौत हो गई। मरने के बाद दो लाख रुपए मिले। अभी 500 रुपए पेंशन मिलती है। 500 रुपए में कुछ नहीं होता है।
बीमारी के इलाज पर हो गया कर्जा : पुष्पा ने बताया कि 16 साल की उम्र में शादी हो गई थी। पति की मौत को सवा तीन साल हाे गए। तीन लड़की व दो लड़के हैं। उनके इलाज के लिए लिया कर्जा अब तक नहीं चुका पाए। 500 रुपए मिलते हैं। उनसे क्या करू। बच्चे भी मजबूरी में होटल पर काम कर रहे हैं।
10 साल से बीमार फिर भी काम करने की मजबूरी
25 साल से माइंस में काम कर रहे देवीसिंह 10 साल से सिलिकोसिस से पीड़ित हैं। देवीसिंह ने बताया- घुटने में दर्द रहता है, सांस की तकलीफ है। डॉक्टर तो दवा लिख देते हैं, लेकिन खरीदें कैसे? परिवार में पांच लोग हैं। 1500 रुपए पेंशन मिलती है। पत्थर नहीं तोड़ूंगा तो कैसे चलेगा?
ऐसी ही कहानी 50 साल के शंकर की है। खुद को सिलिकोसिस है, पिता की मौत भी इसी बीमारी से हुई। बोले- लड़की की शादी की थी, जिसका कर्ज अभी तक नहीं उतरा। अब बीमारी के कारण काम भी छूट गया है। समझ में नहीं आता क्या करें?
ऐसा डर, गांव में कोई बेटी देने काे तैयार नहीं
गांव में 70 से ज्यादा सिलिकोसिस के मरीज हैं। अधिकतर घरों में विधवा महिलाएं। बीमारी का डर ऐसा है कि कोई भी अपनी बेटी की शादी गांव में नहीं करना चाहता। गांव के स्कूल टीचर ने बताया इसी महीने बीरम सिंह (35), प्रेम सिंह (40), सांवर सिंह (42), सुखदेव सिंह (40) की मौत हो गई। पास के ही गुलाब सागर की ढाणी, झाल का बडिया, गुलाब सागर व संग्रामपुरा में हालात काफी बुरे हैं।
हर साल 30 से 32 लोगों की मौत बीमारी से हो रही है। इस साल अब तक 15 तक मौतें हो चुकी हैं। विधवा महिलाओं को केवल 1500 रुपए बतौर पेंशन मिलते हैं, जिसमें घर चलाना मुमकिन ही नहीं है। इसी कारण महिलाएं और उनके नाबालिग बच्चे दोनों मजदूरी करते हैं।
300 रुपए रोज की मजदूरी के लिए जान दांव पर लगा रहे
गांव के देवीसिंह ने बताया कि माइंस में काम करने पर 5 रुपए घन फीट पर मजदूरी मिलती है। रोजाना एक आदमी 50 से 60 घन फीट काट लेता है, जिससे 300 रुपए मिल जाते हैं। वहीं ठेकेदार 350 रुपए एक घन फीट पर काम करता है। राज्य सरकार सिलिकोसिस मरीज को जीवित रहने पर एक लाख रुपए देती है। वहीं, 500 रुपए पेंशन के मिलते हैं।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."