मोहन द्विवेदी
रूजवेल्ट ने कहा: वह आदमी जो लिखता है, जो महीने-दर-महीने, हफ्ते-दर-हफ्ते, दिन-रात असबाब जुटाकर लोगों के विचारों को शक्लो-सूरत देता है, दरअसल वही आदमी है, जो किसी अन्य व्यक्ति की बनस्पति, लोगों के व्यक्तित्व या सिफत को तय करता है और साथ-साथ यह भी, कि वे किस तरह के निजाम के काबिल है।
इसका मतलब हुआ पत्रकारों पर महान दायित्व है। जो पत्रकार महीने-दर-महीने, हफ्ते-दर-हफ्ते, दिन-रात साजो-सामान जुटाकर नेताओं को बिना किसी किस्म की जवाबदेही के अपनी कुर्सी पर बनाए रखने के लिए लेख पर लेख लिखते हैं, या फलां नेता या फलां सरकार के गुणगान करने में रात-दिन एक कर देते हैं, या, उनकी काली करतूतों के खिलाफ सबूतों को नजरंदाज करते हैं, ऐसे पत्रकार दरअसल भ्रष्टाचारी, जन-विरोधी और अनैतिक सरकारों के हिमायतियों की गिनती में आते हैं।
ऐसे पत्रकार टीवी माध्यम के प्राइमटाइम एंकर, अखबार के संपादक या बीट रिपोर्टर में से कोई भी हो सकते हैं। समूचे इतिहास में राजनेताओं और सत्ता में बैठे तमाम महानुभाव मीडिया और पत्रकारों को पालतू बनाने को जरूरी मानते आए हैं क्योंकि उनके पास वह ताकत है जिसकी शिनाख्त रूजवेल्ट ने अपने कथन में की थी। कुछ देशों में, अन्य देशों के मुकाबले राजनेता — मीडिया और पत्रकारों को वश में रखने में ज्यादा कामयाब रहे हैं, लेकिन सत्ता पर काबिज एक शक्तिशाली व्यक्ति किसी पत्रकार को किस हद तक वश में कर सकता है, यह बात बहुत हद तक उस पत्रकार विशेष पर भी निर्भर करती है।
आज हम न जाने पिछले आठ सालों में कितनी विषम परिस्थितियों को भोगा है, जीया है लेकिन उन कालखंडों को याद करते हुए आज आत्मिक शांति महसूस कर रहा हूं। यहां बताना चाहता हूं कि हमारे सफर में सैकड़ों लोग आए, कदम से कदम मिलाकर चलने के वादे किए और सीखने सिखाने का दौर जारी रहा। साथ में आए हमसफ़र हमारे कंधों पर से कूद कूद कर जाते रहे और हमने अपने एकलव्य मकसद “जिद है दुनिया जीतने की” को कभी क्षण भर के लिए भी भूल नहीं सके और आज “समाचार दर्पण 24” के साथ आपके सामने पूर्ववत चल रहे हैं।
चर्चा यह भी करना होगा कि आज हमारे हाथों तीन वैबसाइट और चार अखबारों की बुनियाद रखी गई जो अपने शैशवास्था में ही इतराने लगी तो उसे यथावत छोड़कर मुझे “समाचार दर्पण 24” के रुप में एक मील का पत्थर रखना पड़ा। हमारी बराबरी करने लायक कोई बन तो नहीं सके लेकिन नकल करने की कोशिश में आज तक उनकी सांसें तेज चल रही है। खैर…
हमारी टीम को बहुत कुछ झेलना पड़ा। लोगों के आरोप प्रत्यारोप को लेकर भी टीम ने बिखराव को झेला लेकिन सच्चाई कौन छुपा सका है आज तक, हमारी शोहरत, काबिलियत, सहनशीलता और जनमानस में अलग पहचान हमेशा बढ़ती रही जिसके परिणामस्वरूप आज हम कम लोगों के साथ भी बहुत बड़ी भीड़ को भी मीलों दूर करने में सक्षम हो रहे हैं।
अपने सफ़र का हमने दूसरा कदम आज उठाया है। पहले कदम में एक सौ सड़सठ लोगों का हुजूम था हमारे साथ, किसी को पत्रकारिता का गुण लेना था किसी को लेखन का हुनर, कोई आई कार्ड लेने वाले थे तो कोई नाम की भूख मिटाने आए थे लेकिन उन लोगों की नीयत मतलबी थी इसलिए आज सैकड़ों लाइट और बल्बों की रोशनी में उनका चेहरा तक नहीं दिखाई देता और हम कम लोगों के साथ मोमबत्ती की रोशनी में भी सैकड़ों घरों को रौशन कर रहे हैं। यही कारण है कि हम अपने सात लाख पाठकों को दैनिक अपनी खबरों और विचारों से संतुष्ट कर रहे हैं तो दुनिया में नौ देशों में बस रहे हिंदी भाषियों के लिए हम प्रिय बन गए हैं। सत्रह लब्धप्रतिष्ठित लेखकों का अनवरत सहयोग हमें मिल रहा है तो गूगल से भी हमें आशातीत सहयोग प्राप्त हो रहा है। हम पहचाने जाने लगे हैं यही तो हमारे पहले कदम के आहट की गूंज है। आज से शुरू हो रही दूसरे कदम की गूंज न जाने किस-किस के कान खड़े करेगा।
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मैं अपने साथ जुड़े हुए साथियों को कहना चाहूंगा कि, जैसे-जैसे इस पेशे में आपका अनुभव बढ़ता जाएगा, आपको एहसास होगा कि पत्रकारिता का असल में एक सांस्कृतिक पहलू भी है। हर समाज में पत्रकारिता की ताकत में अंतर होता है।
पुलित्जर, ‘वॉशिंगटन पोस्ट’, ‘न्यू योर्क टाइम्स’ ने संयुक्त राष्ट्र अमरीका में, जो दुनिया का सबसे पुराना और सबसे ताकतवर लोकतंत्र है, से टकराने की जुर्रत दिखाई। लेकिन कितने अखबारों ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में पत्रकारों और उनके काम का पक्ष लेते हुए, शक्तिशाली लोगों से टकराने की हिम्मत दिखाई है? जवाब है: बिरले ही।
हालांकि, पत्रकारिका की इस धूमिल छवि को बदला जा सकता है और इसे बदलने का काम आप जैसे होनहार नौजवान पत्रकारों पर निर्भर करता है। बेशक, इस बदलाव के सिपहसलार बनने के लिए आप सभी को व्यक्तिगत स्तर पर मेहनत करनी होगी।
कहते हैं, परिवर्तन अपरिवर्तनीय नियम है। बदलाव के बावजूद अपने बीजभाव को बचाए रखना ही बड़ी बात है। “समाचार दर्पण 24” की पत्रकारीय यात्रा में यह बड़ी बात बहुत अच्छे से रेखांकित दिखती है। माखन लाल चतुर्वेदी की कविता यहां विषयानुकूल है
चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने, जिस पथ पर जावें वीर अनेक!
बस इसी तरह समाचार दर्पण 24 की टीम भी चाहती है कि हमारे पाठक को हमारी खबरें लेख पसन्द आती रहें। समाचार दर्पण अपने नाम की तरह ही स्वछ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचता ।रहे समाज के गुण एव दोष को निर्भीकता से बिना किसी अभिलाषा के आप को दिखाता रहे।
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Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."