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21 February 2025 8:57 pm

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रोज़गार का सपना, युद्ध की हकीकत: रोज़गार की तलाश में रूस गए, अब तक नहीं लौटे….

89 पाठकों ने अब तक पढा

जगदंबा उपाध्याय की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ ज़िले के कई युवक रोज़गार की तलाश में रूस गए थे, लेकिन उन्हें वहां सुरक्षा गार्ड और कुक की नौकरी के बजाय यूक्रेन के खिलाफ़ युद्ध में भेज दिया गया। इनमें से तीन लोगों की मौत हो चुकी है और आठ लोग अब भी लापता हैं।

रूस में नौकरी का सपना, जंग की हकीकत

आज़मगढ़ के कई परिवारों के सदस्य रूस में बेहतर भविष्य की तलाश में गए थे। उन्हें बताया गया था कि वहां उन्हें सुरक्षा गार्ड और कुक जैसी नौकरियाँ मिलेंगी। लेकिन रूस पहुँचने के बाद उन्हें सेना में जबरन भर्ती कर लिया गया। विदेश मंत्रालय के अनुसार, रूस की सेना में काम कर रहे 126 भारतीयों में से 96 भारत वापस लौट चुके हैं, जबकि 16 अभी भी लापता हैं। इनमें से 12 भारतीयों की मौत हो चुकी है।

पीड़ित परिवारों का दर्द

आज़मगढ़ के बनकटा बाज़ार गोसाईं की गीता देवी के पति कन्हैया यादव और उनके चचेरे भाई की रूस-यूक्रेन युद्ध में मौत हो चुकी है। गीता देवी के भाई भी लापता हैं। उन्हें छह महीने तक अपने पति की मौत की खबर नहीं मिली।

उनके बेटे अजय यादव ने बताया कि रूस सरकार ने उनके पिता के खाते में 30 लाख रुपये भेजे थे, लेकिन दलालों ने पैसे निकाल लिए। अजय ने कहा, “हमें कोई आर्थिक मदद नहीं मिली है।”

अजय के अनुसार, उनके पिता 17 जनवरी 2024 को रूस पहुँचे थे। उन्हें एजेंट सुमित ने रिसीव किया और रूसी भाषा में दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करा लिए। फिर 15 दिनों की ट्रेनिंग के बाद उन्हें युद्ध क्षेत्र में भेज दिया गया। 7 मई को उनके पिता एक रॉकेट हमले में घायल हो गए, लेकिन उचित इलाज नहीं मिला। 25 मई के बाद उनसे कोई संपर्क नहीं हो सका। 22 दिसंबर को प्रशासन ने अजय को बताया कि उनके पिता का शव आ रहा है।

लापता लोगों की तलाश में परिवार

आज़मगढ़ के गुलामी पुरा मोहल्ले की नसरीन बानो का बेटा अज़हरुद्दीन भी लापता है। नसरीन ने सरकार से अपील की है कि उनके बेटे को वापस लाया जाए। अज़हरुद्दीन पहले इलेक्ट्रिशियन का काम करता था और सिर्फ़ एक साल के लिए रूस गया था। उनकी बहन ज़ेबा ने बताया कि 28 अप्रैल 2024 के बाद से उनका भाई लापता है।

पवन नाम के युवक के भाई दीपक भी रूस में लापता हैं। पवन ने बताया कि उन्होंने दिल्ली और पुलिस में शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।

बचकर लौटे राकेश यादव की कहानी

मेहनगर के राकेश यादव उन गिने-चुने लोगों में से हैं, जो रूस से बचकर लौट आए। राकेश ने बताया कि मोटी तनख़्वाह और नौकरी के झाँसे में आकर वह रूस गए थे, लेकिन वहाँ पहुँचने के बाद उनसे ज़बरदस्ती दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर कराए गए और युद्ध के लिए भेज दिया गया।

राकेश ने बताया कि एक रात जब वे गश्त कर रहे थे, तो यूक्रेनी ड्रोन ने उन पर हमला किया। वे ज़ख़्मी हो गए और एक बंकर में पड़े रहे, लेकिन कोई मेडिकल सहायता नहीं मिली। बाद में उन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन ठीक होते ही फिर से युद्ध क्षेत्र में भेजने की तैयारी की गई।

राकेश ने विरोध किया तो उन्हें पीटा गया। बाद में उन्हें किसी तरह भारत वापस भेजा गया। उन्होंने बताया कि उनके खाते में 35 लाख रुपये जमा किए गए थे, लेकिन एजेंट ने उनके परिवार को केवल 40 हज़ार रुपये ही दिए।

सरकार की प्रतिक्रिया

विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्ध्धन सिंह ने संसद में बताया कि भारत सरकार इस मुद्दे को रूस के उच्चतम स्तर पर उठा रही है। अप्रैल 2024 के बाद किसी भी भारतीय को रूसी सेना में भर्ती नहीं किया गया है। लेकिन लापता लोगों की तलाश जारी है।

स्थानीय प्रशासन और समाज की प्रतिक्रिया

आज़मगढ़ के एसपी हेमराज मीणा ने कहा कि उन्हें ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली है, लेकिन यह एक संवेदनशील मामला है। स्थानीय पत्रकार राजीव कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि आज़मगढ़ के लोग पहले खाड़ी देशों में नौकरी के लिए जाते थे, लेकिन रूस में काम की तलाश का यह नया मामला है।

यह मामला दिखाता है कि बेरोज़गारी के कारण लोग झूठे वादों के झाँसे में आकर विदेशों में फँस जाते हैं। पीड़ित परिवार अब भी अपने अपनों की वापसी की उम्मीद में हैं और सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं।

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