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22 February 2025 2:33 pm

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“गुलों” में ‘रंग’, ‘बहार’ की आहट: फ़ैज़ की शायरी का सौंदर्य और संदेश, झूम जाता है मन… 

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अनिल अनूप

गुलों में रंग भरे बादे नौ बहार चले

यह शेर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की प्रसिद्ध ग़ज़ल से लिया गया है, जिसमें उन्होंने एक गहरे भावनात्मक और सामाजिक संदेश को अत्यंत सुंदर तरीके से अभिव्यक्त किया है। इस शेर की समीक्षा साहित्यिक दृष्टिकोण से करने पर हमें इसके भीतर छिपे कई अर्थों और विमर्शों की झलक मिलती है।

शेर का संरचनात्मक एवं सौंदर्यात्मक विश्लेषण

इस शेर की पहली पंक्ति “गुलों में रंग भरे बादे नौ बहार चले” अत्यंत सौंदर्यपूर्ण है। इसमें प्रकृति का उल्लेख करते हुए प्रतीकों का उपयोग किया गया है। गुल (फूल), रंग (रंगत/सौंदर्य), बादे नौ बहार (नई ऋतु की हवा) – ये सभी जीवन, नवीनता और पुनर्जागरण के प्रतीक हैं। यह शेर जीवन के सकारात्मक परिवर्तन और नई आशाओं के संचार का संकेत देता है।

भावनात्मक एवं भावार्थगत विश्लेषण

इस शेर में काव्यात्मक सौंदर्य के साथ-साथ एक गहरे भावनात्मक संदर्भ को भी देखा जा सकता है। इसमें प्रेम, आशा, उत्कंठा और प्रतीक्षा के भाव निहित हैं। फ़ैज़ ने इस शेर में प्रकृति के माध्यम से मानवीय भावनाओं को उजागर किया है।

यहाँ फूलों में रंग भरने का आशय यह है कि उदासी और वीरानी के बाद अब पुनः जीवन में बहार लौट रही है। यह बहार मात्र मौसम की बहार नहीं, बल्कि प्रेम और उमंगों की बहार भी हो सकती है। प्रेमी (या समाज के किसी संघर्षरत वर्ग) के लिए यह संकेत है कि कठिनाइयाँ अब समाप्त होने वाली हैं और नया सवेरा दस्तक दे रहा है।

प्रतीकात्मकता एवं रूपक

फ़ैज़ के इस शेर में कई गहरे प्रतीक और रूपक छिपे हुए हैं।

1. गुल (फूल) – यह प्रेम, सौंदर्य, कोमलता और जीवन का प्रतीक है। गुल की उपस्थिति एक सकारात्मक संदेश देती है।

2. रंग भरना – यह पुनर्जीवन और आशा का संकेत करता है। जब फूलों में रंग भर जाते हैं, तो इसका अर्थ है कि उदासी समाप्त हो रही है और नया जीवन लौट रहा है।

3. बादे नौ बहार (नई बहार की हवा) – यह परिवर्तन और पुनर्जागरण का प्रतीक है। यह सिर्फ़ ऋतु परिवर्तन नहीं, बल्कि एक नए दौर की शुरुआत का संकेत है।

सामाजिक और ऐतिहासिक संदर्भ

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की शायरी हमेशा सामाजिक परिवर्तन, संघर्ष और क्रांति से जुड़ी रही है। इस शेर को केवल प्रेम की दृष्टि से देखना उचित नहीं होगा, बल्कि इसमें एक व्यापक सामाजिक संदर्भ भी है।

फ़ैज़ ने जब यह ग़ज़ल लिखी, तब भारतीय उपमहाद्वीप में सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल का दौर चल रहा था। यह शेर गुलामी, शोषण और अन्याय के विरुद्ध उठती आवाज़ों का प्रतीक बन सकता है। ‘बादे नौ बहार’ का संकेत नए युग के आगमन की ओर है, जो शोषितों और पीड़ितों के लिए नई उम्मीद लेकर आता है।

आह्वान और प्रतीक्षा

शेर की दूसरी पंक्ति “चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले” एक स्पष्ट आह्वान है। यह किसी प्रिय व्यक्ति (प्रेमी) को बुलाने की पुकार हो सकती है, या फिर यह एक क्रांतिकारी स्वर भी हो सकता है, जो समाज में परिवर्तन लाने वाले नेताओं या संघर्षशील व्यक्तियों को प्रेरित कर रहा है।

गुलशन का कारोबार चले – यह पंक्ति अत्यंत महत्वपूर्ण है। गुलशन (बाग़) यहाँ समाज या देश का प्रतीक हो सकता है, जिसका व्यापार या संचालन तभी संभव है जब उसमें प्राणवायु (सक्रियता, जागरूकता, प्रेम, परिवर्तन) का संचार हो। इसका एक अन्य अर्थ यह भी हो सकता है कि जीवन का सौंदर्य और सार्थकता तभी बनी रह सकती है जब उसमें प्रेम, ऊर्जा और आशा का प्रवाह हो।

रस, छंद और अलंकार

1. रस – शेर में शृंगार और वीर रस दोनों का समावेश देखा जा सकता है। यह प्रेम की पुकार भी हो सकती है और सामाजिक बदलाव की चेतना भी।

2. छंद – यह शेर ग़ज़ल की पारंपरिक शैली में लिखा गया है, जिसमें लय और प्रवाह अत्यंत मधुर है।

3. अलंकार – इसमें अनुप्रास (गुलों – गुलशन, चले – चले) और रूपक (गुलों में रंग भरना) जैसे अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया गया है।

समकालीन संदर्भ और प्रासंगिकता

फ़ैज़ की यह शायरी आज भी प्रासंगिक बनी हुई है। वर्तमान समय में जब समाज में अराजकता, अन्याय और अव्यवस्था फैली हुई है, तब इस शेर का संदेश अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। यह हमें याद दिलाता है कि परिवर्तन संभव है और हमें एक नई बहार की प्रतीक्षा करने की बजाय उसे लाने का प्रयास करना चाहिए।

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का यह शेर मात्र एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि एक गहरी सामाजिक और भावनात्मक अनुभूति का प्रतीक है। इसमें प्रेम, प्रतीक्षा, परिवर्तन और नवजागरण के तत्व समाहित हैं। यह शेर हमें सौंदर्य, आशा और बदलाव की शक्ति का एहसास कराता है और एक बेहतर भविष्य की ओर प्रेरित करता है।

इसकी लोकप्रियता और कालातीत महत्ता इस बात का प्रमाण है कि साहित्य की शक्ति सीमाओं से परे होती है और वह युगों-युगों तक लोगों को प्रेरित करती रहती है।

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