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23 February 2025 5:30 am

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वीरता, संघर्ष और आत्ममंथन ; कानून की हिफाजत करते हुए जिसने मिशाल पेश किया ; इंस्पेक्टर मुनेश कुमार

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ब्रजकिशोर सिंह की रिपोर्ट

आगरा। उत्तर प्रदेश पुलिस के जांबाज अधिकारी, इंस्पेक्टर मुनेश कुमार, न केवल अपनी वीरता के लिए बल्कि हालिया जीवन परिवर्तनों के कारण भी चर्चा में हैं। आगरा के बाह क्षेत्र के छोटे से गांव बली का पुरा (मलियाखेड़ा का मजरा) में जन्मे मुनेश कुमार ने 1993 में बतौर कांस्टेबल पुलिस सेवा में प्रवेश किया और अपनी कड़ी मेहनत और निडरता से मेरठ के पल्लवपुरम थाने के प्रभारी तक का सफर तय किया।

एनकाउंटर स्पेशलिस्ट की छवि

इंस्पेक्टर मुनेश कुमार का नाम कई बड़े एनकाउंटर्स से जुड़ा रहा है। 28 मई 2022 को गाजियाबाद में तैनाती के दौरान उन्होंने एक लाख के इनामी बदमाश बिल्लू दुजाना और 50 हजार के इनामी राकेश दुजाना को मुठभेड़ में ढेर कर अपनी बहादुरी का परिचय दिया था। उनकी इसी वीरता के चलते 26 जनवरी 2024 को उन्हें राष्ट्रपति द्वारा वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष

22 जनवरी 2024 को मेरठ के कंकरखेड़ा में एक अपराधी ने कार लूटकर भागने के दौरान उनका पीछा करने पर सीने में गोली मार दी थी। गोली लगने के बाद उन्हें गाजियाबाद के मैक्स अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां 7 घंटे तक चली जटिल सर्जरी के बाद उनके शरीर से गोली निकाली जा सकी। हालांकि, इस घटना के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। ठीक होते ही वे फिर से ड्यूटी पर लौटे और उसी अपराधी को मुठभेड़ में मार गिराया।

जीवन में नया मोड़

इस गंभीर घटना के बाद मुनेश कुमार के जीवन में एक बड़ा परिवर्तन आया। उनके चचेरे भाई सुधीर सिंह ने बताया कि गोली लगने की घटना के बाद से उनकी जीवनशैली पूरी तरह बदल गई। अब वे धर्म और आध्यात्मिकता की ओर अधिक झुकने लगे हैं। हाल ही में वे बाह क्षेत्र में अपने पिता दीवान सिंह के साथ एक विवाह समारोह में शामिल हुए थे और वृंदावन जाने की इच्छा जता रहे थे। वे अपने भीतर एक अजीब तरह की बेचैनी महसूस कर रहे थे और कह रहे थे कि अब ड्यूटी में मन नहीं लगता।

संत प्रेमानंद महाराज की शरण में

अपनी आत्मिक उथल-पुथल को शांत करने के लिए इंस्पेक्टर मुनेश कुमार संत प्रेमानंद महाराज की शरण में पहुंचे। उन्होंने संत से अपनी दुविधा साझा करते हुए कहा, “22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के दिन ही मुझे मुठभेड़ के दौरान गोली लगी थी। मेरी मृत्यु का समाचार तक जारी हो गया था, लेकिन प्रभु कृपा से मैं बच गया। अब मेरा मन विचलित रहता है। मैं अपने पथ पर चलता रहूं या प्रभु की शरण में आ जाऊं?”

मुनेश कुमार ने स्वीकार किया कि अब उनकी निष्ठा और आस्था और अधिक गहरी हो गई है। वे रात में जब भी समय मिलता है, संत प्रेमानंद महाराज के प्रवचन सुनते हैं, और फिर ही उन्हें शांति मिलती है।

कर्तव्य और आध्यात्मिकता के बीच द्वंद्व

एक बहादुर पुलिस अधिकारी का यह आध्यात्मिक परिवर्तन न केवल उनकी व्यक्तिगत यात्रा का संकेत देता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे मृत्यु के करीब जाने के बाद इंसान जीवन के गहरे सवालों से जूझता है। यह कहानी एक ऐसे योद्धा की है जो हमेशा अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान रहा, लेकिन अब अपने जीवन के अगले पड़ाव पर एक नए मार्ग की तलाश कर रहा है।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इंस्पेक्टर मुनेश कुमार अपनी सेवा जारी रखते हैं या आध्यात्मिक मार्ग को अपनाकर समाज की सेवा के लिए कोई नया रास्ता चुनते हैं।

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